संजय गुप्ता, INDORE. भूमाफिया दीपक मद्दा आखिरकार दो साल बाद पुलिस की पकड़ में आ गया है, लेकिन मददा के कब्जे से जो जमीन शासन- प्रशासन ने भूमाफिया अभियान में मुक्त कराई उस पर अभी तक पीड़ितों को आईडीए से मुक्ति नहीं मिल रही है। पीड़ित बार-बार यही कह रहे हैं कि आखिर असली भूमाफिया कौन है, मद्दा या आईडीए? दरअसल इस पीड़ा की वजह है, स्कीम 171 जिसमें पुष्पविहार सहित 13 कॉलोनियों की जमीन शामिल है। उसे आईडीए स्कीम से मुक्त करने का बोर्ड में सैंदधातिक प्रस्ताव 13 मार्च 2020 को ही पास कर चुका है। इसमें सामने आया था कि यहां पर आईडीए ने पांच करोड़ 84 लाख की राशि विकास कामों में खर्च की है। इसके लिए शासन नियम बना रही हैं। यह नियम आते ही बोर्ड इस पर यथासमय विचार कर फैसला लेगा। मप्र शासन ने स्कीम लैप्स के संबंध में 28 सितंबर 2020 में नोटिफिकेशन कर नियम भी जारी कर दिए। इसके तहत दो अखबारों में सूचना जारी कर प्रारूप जारी कर क्षतिपूर्ति राशि ली जाएगी और इसके बाद स्कीम लैप्स हो जाएगी। इसमें दो माह का समय लिया जाएगा। लेकिन नोटिफिकेशन के बाद भी आईडीए ने इस क्षतिपूर्ति के संबंध में 30 माह बाद भी सूचना ही जारी नहीं की है। जब तक यह प्रक्रिया नहीं होगी, कॉलोनी स्कीम से मुक्त नहीं होगी और जब तक आईडीए से मुक्ति नहीं होगी, तब तक नगर निगम इसे अवैध से वैध कॉलोनी का दर्जा भी नहीं देगा।
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द सूत्र के पास मौजूद बोर्ड संकल्प की कॉपी
द सूत्र के पास 13 मार्च 2020 को आईडीए बोर्ड के पास किए गए प्रस्ताव की कॉपी मौजूद है। इसमें लिखा गया है कि– प्राधिकारी की योजना 171 (पूर्व नाम 132) के संबंध में प्राधिकारी बोर्ड अवगत हुआ है कि योजनांतगर्त प्राधिकारी ने मास्टर प्लान रोड एमआर-10 का निर्माण किया है और विकास काम पर राशि 5.84 करोड़ रुपए व्यय की गई है। योजना की शेष भूमि प्राधिकारी को प्राप्त ना हो पाने के कारण शेष अधोसंरचना विकास काम शुरू नहीं किया जा सका। इसलिए संपूर्ण वस्तुस्थिति के बाद प्राधिकारी ने निर्णय लिया है कि चूंकि इन योजना में विकास काम शुरू नहीं किया गया है, लेकिन अधोसंरचना विकास काम पर व्यय राशि दस फीसदी से कम है। इसलिए मप्र नगर और ग्राम निवेश (संशोधन) अधिनियम 2019 के तहत योजना नियम प्रारूपित किए जाने की कार्रवाई शासन स्तर पर प्रचलित है। इसलिए शासनस्तर से नियम अंतिम होने के पश्चात इन योजना के संबंध में प्रकरण प्राधिकारी बोर्ड के समक्ष यथासमय विचारार्थ प्रस्तुत किया जाए।
अयोध्यापुरी की फाइल भी 22 साल से दबी मिली
आईडीए में सालों साल फाइल दबना नई बात नहीं है। द सूत्र के मुद्दा उठाने के बाद आईडीए ने अयोध्यापुरी की फाइल भी निकलवाई। इसमें पता चला कि 2001 में ही आईडीए हाईकोर्ट के 1996 के फैसले के तारतम्य में अयोध्यापुरी के खसरों को स्कीम 77 से मुक्त कर एनओसी जारी कर चुका है, लेकिन इसके बाद भी कॉलोनी को वह अपनी स्कीम के दायरे में बताकर नगर निगम को एनओसी देने से इंकार करता रहा। जब चेयरमैन जयपाल सिंह चावड़ा ने अधिकारियों से पूछताछ कर यह फाइल निकलवाई तो वह खुद चौंक गए, कि 22 साल से क्यों एनओसी दबी हुई थी। इस तरह अब चैयरमैन स्कीम 171 की फाइल खुलवाएंगे तो यह भी पता चलेगा कि तीन साल पहले ही कॉलोनियों से 5.84 करोड़ लेकर मुक्त करने का सैंद्धातिक फैसला लिया जा चुका है।
6 हजार पीड़ित में से 200 से ज्यादा की हो चुकी मौत
सभी पीड़ित इसी जाहिर सूचना को जारी करने की मांग कर रहे हैं। यहां छह हजार पीडित प्लाट धारक है, जो 2002-03 से लड़ाई लड़ रहे हैं। दुखद है कि इसमें लडाई लड़ते हुए 200 से ज्यादा सदस्यों की मौत हो चुकी है और उनके परिजन प्लाट का इंतजार कर रहे हैं। एक सदस्य बताते हैं कि वह जब नौकरी में पीक पर थे, जवान थे तब जमापूंजी से प्लाट लिया था, लेकिन अब वह रिटायर हो गए हैं, प्लाट पर केवल वह कब्जा ले पाए हैं, लेकिन इस पर मकान नहीं बना सकते हैं। 30 साल से ज्यादा का लंबा समय हो गया है इतंजार करते-करते।