मप्र में 5 साल में 154 करोड़ खर्च, फिर भी ASI-पुरातत्व विभाग नहीं बचा पा रहे खंडहर होती धरोहरें, विभाग में 82% टेक्नीकल पद खाली

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Ruchi Verma
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मप्र में 5 साल में 154 करोड़ खर्च, फिर भी ASI-पुरातत्व विभाग नहीं बचा पा रहे खंडहर होती धरोहरें, विभाग में 82% टेक्नीकल पद खाली

BHOPAL. आज अंतरराष्ट्रीय धरोहर दिवस है। और भारत का दिल कहे जाने वाला मध्य प्रदेश एक ऐसी जगह है जहां पर ऐतिहासिक महत्व वाली ऐसी कई सारी धरोहरें मौजूद हैं,  जिन्होंने राज्य की सभ्यता और संस्कृति को हज़ारों सालों से संरक्षित करके रखा है। लेकिन अब इन्हीं धरोहरों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। दरअसल, जिन ऐतिहासिक विरासतों के बात हम कर रहें हैं, इनमें से कई जगहें ऐसी है जो कागजों पर तो राज्य सरकार द्वारा संरक्षित हैं, परन्तु असलियत में वो अतिक्रमण, आपदा प्रबंधन की कुव्यवस्था और मेंटेनेंस की कमी के कारण खस्ताहाल होकर खंडहर में तब्दील होती जा रहीं हैं। राज्य की विरासतों की कमजोर हो रही बुनियाद के जिम्मेदार भी ASI (भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण) और मध्य प्रदेश पुरातत्व विभाग (संचालनालय पुरातत्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय) और राज्य प्रशासन ही हैं....जिनकी अनदेखी के चलते ऐसा हो रहा है। वो भी तब जब पिछले 5 सालों में स्मारकों के संरक्षण के नाम पर करीब 154.69 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए। विश्व धरोहर दिवस के अवसर पर देखिये भोपाल के नज़दीक जगदीशपुर में स्थित गोंड किला, चंदेरी के रामनगर महल, मंदसौर के नज़दीक हिंगलाजगढ़ का किला और ग्वालियर के ऐतिहासिक गूजरी महल से द सूत्र की ग्राउंड रिपोर्ट.....





11वीं सदी का गोंड महल विभागीय रस्साकस्सी के बीच फंसा, चारों तरफ अतिक्रमण, गन्दगी और टूटफूट का नज़ारा





जिम्मेदार:  राज्य पुरातत्व विभाग





जगदीशपुर, जो इस्लाम नगर के नाम से भी जाना जाता है, में मौजूद है 11वीं सदी पुराना गोंड महल। इस महल के की खासियत हैं कि अनेक जगहों पर किले, महल पहाड़ियों पर बने हुए पाए जाते हैं, लेकिन यह महल किला समतल भूमि पर बना हुआ हैं। कभी गोंड राजवंशों की बुलंदी को बताता गोंड महल, अब बेकदरी की मार झेल रहा है। द सूत्र की टीम जब गोंड महल पहुंची तो पाया कि पूरे महल में बेतरतीब घासफूंस उगी हुई है और चमगादड़ उड़ रहें हैं। रखरखाव के अभाव में महल की दीवारे दरक गईं हैं और खिड़की दरवाज़े या तो गायब हैं या फिर टूटे पड़े हैं। महल में असामाजिक तत्व कितनी आसानी से आ-जा रहे हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पहले से ही जर्जर महल की दीवारों पर जहाँ-तहाँ दिलनुमा चित्र बनाए हुए हैं और नाम उकेरे हुए हैं। यहां तक की असामाजिक तत्वों ने इस महल का मुख्य मार्ग पर लगा सूचना बोर्ड तक गिरा दिया है।







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गोंड महल, जगदीशपुर







यहीं नहीं इस महल की एक और खासियत - इसका जल सुरक्षा घेरा यानी कि महल/किले के चारों तरफ से नदी और नहरों के द्वारा किए गए सुरक्षा के इंतजाम - भी अब बेतरतीब प्रबंधन और देखरेख की कमी की बलि चढ़ गया हैं। पानी के इस घेरे में या तो अब जंगल उग आया हैं या फिर ये सूखा पड़ा हैं। पहले से ही वजूद का संकट झेल रहे गोंड महल के आसपास की जमीन पर अतिक्रमण भी हो गया हैं। जबकि नियम साफ़ कहते हैं किसंरक्षित इमारत के 100 मीटर के दायरे में किसी भी तरह का कंस्ट्रक्शन गलत हैं।





हाल ही में जनवरी-फरवरी के दौरान सरकार ने इस्लाम नगर का नाम बदलकर जगदीशपुर कर दिया। कारण ये रहा कि जगदीशपुर 11वीं सदी के दौरान परमारों केअधीन था। इसके बाद यह क्षेत्र गोंड राजा संग्राम शाह के बावन गढ़ों में से एक रहा। गोंड शासकों के बाद इस गढ़ और किले पर देवड़ा राजपूतों का शासन हुआ। कहा जाता है कि राजपूत नरसिंह देवड़ा के शासन के दौरान 1718 में मुगल शासक औरंगजेब के सैनिक दोस्त मोहम्मद खान ने जगदीशपुर पर शासन कर लिया और उसने इसका नाम बदलकर इस्लाम नगर कर दिया। इसलिए ये कहते हुए कि इसका असली नाम जगदीशपुर हैं, जगह का नाम परिवर्तन कर दिया गया। अब जगहों के नाम तो बदल दिए गए, पर नाम बदलने के इन सभी सियासी दांवपेंचों के बीच गोंड महल उपेक्षित ही रह गया।





गोंड महल की इस हालत के पीछे एक कारण विभागीय खींचतान भी कही जाती हैं। पुरातत्व विभाग ने रानी और चमन महल के साथ ही गोंड महल को भी संरक्षित किया था। विभाग ने रानी और चमन महल में तो समय-समय पर मरम्मत कार्य कराया, लेकिन गोंड महल पर ज्यादा ध्यान नहीं गया। इस वजह से इसकी रौनक चली गई और यह एक खंडहर में तब्दील होता चला गया। या महल मध्य प्रदेश शासन के अंतर्गत संचालनालय द्वारा संरक्षित हैं। और पुरातत्व विभाग की माने तो गोंड महल को पर्यटन विकास निगम को सौंपा जाना है, तो अब वही इसको उपयोग के अनुसार विकसित करेगा। पर अभी तक ऐसा कुछ होता नज़र नहीं आ रहा।





आपको बता दें कि ASI मध्य प्रदेश के 290 स्मारकों को संरक्षित करता है, जबकि मध्य प्रदेश शासन के अंतर्गत संचालनालय 526 अन्य स्मारकों को संरक्षित करता है। संचालनालय के अतिरिक्त कुछ अन्य सरकारी संस्थाएँ स्मारकों की सुरक्षा के लिए प्राथमिक रूप से उत्तरदायी नहीं होने के बाद भी ऐतिहासिक महत्व के प्राचीन स्मारकों से संबंधित कार्य करती हैं जैसे- शहरी विकास और आवास विभाग, मध्य प्रदेश के अंतर्गत सात स्मार्ट सिटी कॉर्पोरेशन अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में कुछ विरासत भवनों के नवीनीकरण और जीर्णोद्धार का कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त, मध्य प्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम (MPSTDC) ने स्मारकों को विरासत होटलों में परिवर्तित करने के लिए हस्तांतरण की प्रक्रिया भी शुरू की हैं - जिसके तहत निगम ने पिछले दस वर्षों की अवधि में संचालनालय से सात स्मारकों का अधिग्रहण भी किया है। लेकिन अब गोंड महल की ये प्रक्रिया कब पूरी होगी और कब उसका उद्धार होगा ये तो भगवान ही जाने...फ़िलहाल, इसके चारों तरफ दीवार उठाकर इसके मुख्य द्वार पर ताला डालकर बंद कर दिया है।





5 बार पत्र लिखने की बावजूद नहीं हुआ चन्देरी के रामनगर महल का जीर्णोद्धार





जिम्मेदार: ASI





गोंड महल के बाद द सूत्र की टीम पहुंची, चंदेरी से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित 1698 ईस्वी में निर्मित रामनगर महल। ऐतिहासिक एवं पर्यटन नगर चंदेरी में वर्ष भर देशी विदेशी पर्यटकों को आना-जाना जारी रहता है। जब भी कोई पर्यटक नगर में आता है वह चंदेरी निकटवर्ती स्थित ऐतिहासिक रामनगर महल आदि देखने जरूर जाता है। रामनगर महल प्राचीन तालाब की पार पर स्थित होने के कारण सैलानियों के लिए विशेष रूप से आकर्षण का केंद्र बिंदु भी है। पर आज ये अमूल्य धरोहर रामनगर महल बेहद ही दयनीय एवं जर्जर अवस्था से गुजर रहा है। महल की दीवार में दिखाई देती दरार, दरवाजों के टूटते पत्थर चीख चीख कर कह रहे हैं कि जल्दी ही अगर इनकी ओर ध्यान नहीं दिया गया, तो चंदेरी की इस विरासत को अपूर्णनीय क्षति होने से कोई रोक नहीं सकता। बता दें कि ग्वालियर रियासत के तत्कालीन महाराजा माधौंराव सिंधिया द्वारा 1925 ईस्वी में रामनगर महल का जीर्णोद्धार कराया गया था। पर आज इस महल को जीर्णोद्धार की दोबारा दरकार है। यदि रामनगर महल हर हाल में आगामी पीढ़ी हेतु सुरक्षित रखना है, तो ये जरुरी हैं कि महल की दीवारों-दरवाजों को मजबूत किया जाए, महल का रसायनिक संरक्षण हो, परिसर स्थित उद्यान को जीवित रखा जाए।







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रामनगर महल, चन्देरी 







ऐसा भी नहीं है कि पुरातत्व विभाग का इस ओर ध्यान आकर्षित न किया गया हो। 1 या 2 बार नहीं बल्कि 4 से 5 बार रामनगर महल की ख़राब हालत के बारे में शासन को लिखा गया लेकिन आज दिनांक तक कोई नतीजा सामने नहीं आ सका है। पहला पत्र जून, 2013 में इस संबंध में पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय भोपाल को और जिलाधीश अशोक नगर को लिखा गया था। आवेदन पत्र पर जिलाधीश अशोकनगर ने संज्ञान लेते हुए अगस्त, 2013 को अभिलेखागार एवं संग्रहालय भोपाल को आवश्यक कार्रवाई करने के लिए लिखा। इसके बाद एक आवेदन पत्र नवंबर-2019 को अभिलेखागार एवं संग्रहालय भोपाल/जिलाधीश अशोकनगर/ अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व), चन्देरी/ उपसंचालक पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय ग्वालियर को भी लिखा गया। यही नहीं रामनगर महल की चन्देरी पर्यटन में उपयोगिता इत्यादि तथ्यों का उल्लेख करते हुए एक और आवेदन पत्र फरवरी, 2022 में  म.प्र. पर्यटन बोर्ड भोपाल को लिखकर रामनगर महल की सुध लेने का निवेदन किया था। पर इतनी सारी कोशिशें, शिकायतें और पत्राचार के बावजूद रामनगर महल की ख़राब हालत को लेकर आज तक कुछ हुआ नहीं।





अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भारत को वाहवाही दिला चुके हिंगलाजगढ़ के किले की नहीं पूछपरख





जिम्मेदार: राज्य पुरातत्व विभाग







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हिंगलाजगढ़ का किला, मंदसौर







गोंड महल और रामनगर महल के बाद चलते हैं मंदसौर। मध्य प्रदेश-राजस्थान की सीमा से लगे भानपुरा तहसील के नावली गांव की  गहरी खाईयों के बीच पहाड़ियों पर बसा हुआ हैं हिंगलाजगढ़ का किला। हिंगलाजगढ़ का किला भी परमारकालीन हैं। यह किला 800 वर्ष तक मूर्ति शिल्प कला का केंद्र रहा है। किले में गुप्त और परमार काल की मूर्ति शिल्प और कलाकृतियाँ आज भी मौजूद है। किले में मिली सबसे पुरानी मूर्ति करीब 1600 साल पुरानी है जो चौथी-पांचवी शताब्दी की मानी जाती है। इतिहासकार बताते हैं कि चंद्रावत शासन काल के दौरान धीरे-धीरे यह किला खण्डरो में तब्दील हो गया था। साल 1773 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने लक्ष्मण सिंह चंद्रावत को पराजित किया और इस किले पर आधिपत्य जमा लिया और इसका नवीनीकरण किया गया। पर अब फिर से हिंगलाजगढ़ किला जर्जर हालत में हैं। किले में मौजूद सूरजकुंड की बात करें, तो वह बहुत ही खस्ताहाल है।  जानने लायक बात हैं कि इस किले और यहां मौजूद कलाकृतियों की महत्वता इतनी हैं कि इसकी प्रतिमाओं को फ्रांस और वाशिंगटन मैं हुए इंडिया फेस्टिवल में भेजा गया था। भारत को काफी वाहवाही भी मिली। पर इसके बावजूद किले की देखरेख के जिम्मेदार राज्य पुरातत्व विभाग के कानों पर जून नहीं रेंग रही।





ग्वालियर का 15वीं  सदी का गूजरी महल जीर्णशीर्ण, पर्यटकों के लिए सुविधाओं का नितांत अभाव





जिम्मेदार: राज्य पुरातत्व विभाग





ग्वालियर के ऐतिहासिक किले पर स्थित पन्द्रहवी सदी का गूजरी महल ग्वालियर पहुंचने वाले पर्यटकों के सबसे बड़े आकर्षण का केंद्र है। यह एक राजा और जंगल मे रहने वाली एक युवती निन्नी जिसे मृगनयनी भी कहा जाता है के प्रेम की अद्भुत कहानी है। राजा मान सिंह तोमर ने अपनी रानी की इच्छा के अनुसार किले पर एक खास महल बनवाया। इसी महल को गूजरी महल कहा जाता है। लेकिन भारतीय इतिहास की यह प्रमुख धरोहर पर्याप्त संरक्षण के अभाव में खराब होती जा रही है। हालांकि पुरातत्व विभाग इसके संरक्षण के लिए काफी प्रयास करने का दावा कर रही है। मृगनयनी की चीजों को संरक्षण के लिए यहां एक गैलरी भी बना रही है। लेकिन यह महल लापरवाही के चलते जर्जर हो रहा है और वहां रखी कीमती ऐतिहासिक वस्तुएं भी जीर्णशीर्ण हो रहीं हैं । इसके अलावा यहां आने वाले पर्यटकों के लिए सुविधाओं का नितांत अभाव है।





पुरातत्व विभाग में स्टाफ की भरी कमी, टेक्निकल डिपार्टमेंट के 82% पद खाली





मानव संसाधन किसी भी विभाग के सभी गतिविधियों को सीधे-सीधे प्रभावित करता है। अगर स्टाफ होता है तो विभाग संरक्षण के कार्य तो वक़्त पर पूरे कर ही पाता है...साथ ही  उसके सिस्टम में मौजूदा कमियों को खोजने में भी उसको मदद मिलती है, जिससे वो भविष्य के लिए ऐतिहासिक धरोहरों के प्रबंधन की बेहतर योजना बना सकता है। पर मध्य प्रदेश के पुरातत्व विभाग में स्टाफ की कमी की हालत ये है कि उसके पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए जो राशि आवंटित होती है...उस आवंटित धनराशि में से काफी अमाउंट प्रति वर्ष सरेंडर कर दिया जा रहा है। स्टाफ की ये कमी वैसे तो सभी  कैडर में हैं, पर टेक्निकल डिपार्टमेंट में का बेहद कम होने से विभाग के परफॉरमेंस और   आउटपुट पर असर साफ़ नज़र आ रहा हैं। CAG रिपोर्ट अनुसार सितंबर 2021 तक विभाग में 61 स्वीकृत पदों (22 तकनीकी और 39 गैर-तकनीकी) के विरुद्ध केवल 25 पद (4 तकनीकी एवं 21 गैर तकनीकी) पर अधिकारी/कर्मचारी ही भरे हुए थे। तो वहीं अप्रैल 2022 तक तकनीकी पदों के कुल 82% पद खाली ही पड़े हुए थे। स्टाफ की इस कमी के वजह से विभाग कई महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक स्थलों का उचित रख-रखाव  सुनिश्चित करने की स्थिति में नहीं है।





असंरक्षित स्मारकों पर खर्च कर दिए 38.26 लाख





पुरातत्व विभाग के अस्तव्यस्त काम का आलम तो ये हैं कि जो धरोहरें कागजों में संरक्षित हैं, उन्हें तो विभाग जर्जरता से बचा नहीं पा रहा...लेकिन ताज महल के पास प्राचीन दरवाजा और दाखिल दरवाजा, सिकंदरी दरवाजा, जुमेराती दरवाजा और नवीन नगर ऐशबाग स्थित प्राचीन बावड़ी के संरक्षण पर कुल मिलाकर 38.26 लाख खर्च करने पर भी आपत्ति जताई गई है। जबकि ये सभी स्मारक असंरक्षित केटेगरी के हैं।





क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स





पुरातत्व विभाग का हेरिट्ज संरक्षण को लेकर एप्रोच गलत: मीरा ईश्वर दास, संयोजक, INTACH - भोपाल चैप्टर





द सूत्र ने मध्य प्रदेश के महत्वपूर्ण समराखों की बुरी हालत को लेकर बात की इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज - भोपाल चैप्टर की संयोजक मीरा ईश्वर दास से। दास ने कहा कि राज्य को और समुदाय को ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण में अभी काफी काम करने की जरूरत हैं। उन्होंने कहा, "किसी भी जगह के ऐतिहासिक इमारतें और हेरिटेज वहां की और वहां के लोगों की पहचान होती हैं। हेरिटेज हमारी जड़ें हैं, जिन्हे सुरक्षित रखना बड़ी जिम्मेदारी का काम हैं। इन्हें समय रहते बचाना जरुरी हैं। शासन और पुरातत्व विभाग का हेरिट्ज संरक्षण को लेकर जो एप्रोच हैं वो मेनस्ट्रीम हैं। यानी संरक्षित जगहों में से सिर्फ बड़े और ज्यादा फेमस जगहों का ही संरक्षण करना। बाकी जगहों के कंज़र्वेसन पर पैसा खर्च करने से विभाग बचता रहा हैं, जबकि वो भी संरक्षित केटेगरी में हैं। पर ये काफी गलत तरीका हैं। हमें सभी संरक्षित धरोहरों के संरक्षण पर बराबर ध्यान देना होगा। साथ ही मध्य प्रदेश में टूरिज्म पर काफी जोर तो दिया जा रहा हैं, पर ये समझने की जरुरत हैं कि टूरिस्ट आपके यहाँ तभी आएगा जब या तो आपके यहाँ बहुतायत में नेचुरल ब्यूटी हो या फिर आपके पास एक रिच कल्चर यानी वेल-मेंटेंड ऐतिहासिक स्मारक या जगहें हों। ASI या पुरातत्व विभाग में स्टाफ की कमी को दूर किये जाने की जरुरत हैं। साथ ही लोकल स्मारकों और हेरिटेज के संरक्षण के लिए हमें एक थर्ड लेयर ऑफ़ प्रोटेक्शन के भी जरुरत हैं, जिसको की संवैधानिक मंजूरी मिली हों।"





मध्य प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार तमाम प्रयास कर रही है। अलग-अलग माध्यमों से टूरिस्ट स्थलों का प्रचार-प्रसार करने की कवायद की जा रही है। साल 2019-20 से 2022-23 तक करीब 692 करोड़ रुपए टूरिज्म पर खर्च किये गए हैं। लेकिन दूसरी ओर कभी राजाओं-महाराजाओं से आबाद रहने वाले किले और कई और ऐतिहासिक धरोहरों की नींव कमजोर होती जा रही है। वे अपना अस्तित्व खोने की कगार पर है। जरुरत हैं इन सभी धरोहरों को जल्द-से-जल्द संरक्षित करने की। 





जानिये विश्व धरोहर दिवस का इतिहास







  • विश्व धरोहर दिवस पहली बार 1983 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा मनाया गया था। यूनेस्को के 22वें आम सम्मेलन के दौरान इसे विश्व आयोजन के रूप में मान्यता मिली थी।



  • विश्व धरोहर दिवस को मनाने का उद्देश्य ग्रह पर सांस्कृतिक विरासत और विविधता के बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाना है।






  • (इनपुट्स: ग्वालियर- देव श्रीमाली/ मंदसौर- विजय रीटूडिया/ चंदेरी- दिनेश प्रजापति)



    CAG ग्वालियर का गूजरी महल हिंगलाजगढ़ का किला चन्देरी का रामनगर महल WORLD HERITAGE DAY Archives and Museums Directorate of Archaeology ASI गोंड महल MP State Tourism Development Corporation (MPSTDC)