ASHOKNAGER. साल में एक बार लगने वाला प्रसिद्ध करीला मेला रंगपंचमी यानी रविवार (12 मार्च) से शुरू हो गया है। मप्र के अशोकनगर जिले के अंतर्गत आने वाले ललितपुर गांव में बीजेपी सांसद केपी यादव ने झंडा चढ़ाकर मेले के शुभारंग किया। यहां स्थित करीला धाम की गुफा रंगपंचमी के दिन 24 घंटे दर्शनों के लिए खुली रहेगी। रंगपंचमी के दिन से शुरू हुआ मेला यहांं तीन दिन तक रहेगा। जिसमें लाखों श्रद्धालुओं का जनसैलाब दिखाई देगा। पहले दिन से यहां नृत्यांगनाओं के घुंघरू और ढोलक की आवाज से पूरी पहाड़ी गूंज रही है। ऐसी मान्यता है कि यहां लव-कुश का जन्म हुआ था।
शुरुआती परंपरा आज भी लागू
वर्षों पुराने करीला में मेले का लगातार विकास हो रहा है। वाल्मीकि आश्रम मां जानकी धाम में जब मेला शुरू हुआ था तो आसपास के लोग यहां व्यवस्थाएं जुटाते थे, लेकिन अब इसकी पूरी व्यवस्था प्रशासन करता है। मेले में हर साल की तरह इस बार भी लाखों श्रद्धालु जुटेंगे। जिसकी तैयारियां कर ली गई हैं। जिस परंपरा से मेला प्रारंभ हुआ था, आज भी वहीं परंपरा निभाई जा रही है। मेले में राई नृत्य का सबसे अधिक महत्व है। मेला तीन दिन यहां चलेगा।
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करीला धाम में हुआ था लव-कुश का जन्म
मान्यता है, जब सीता माता को वनवास में छोड़ा गया था। उस वक्त सीता माता, महर्षि वाल्मीकि के आश्रम करीला धाम पर ही रूकी थीं। इसी आश्रम में मां जानकी ने लव-कुश को जन्म दिया था। लव-कुश के जन्म के वक्त स्वर्ग से अप्सराओं ने आकर यहां पर नृत्य किया था। इसी मान्यता को लेकर यहां पर नृत्यांगनाओं के द्वारा नृत्य करने की परंपरा चली आ रही है। रंगपंचमी की रात को सैकड़ों नृत्यांगनाएं बधाई नृत्य करती हैं। यहां परंपरा है कि लोगों कि जब मन्नत पूरी हो जाती है तो वे नृत्य करवाते है।
रंगपंचमी को 24 घंटे के लिए खुली गुफा
मान्यता के अनुसार जिस गुफा में सीता माता ने लव-कुश को जन्म दिया था। उस गुफा को केवल रंगपंचमी के दिन ही खोला जाता है। यानी आज (12 मार्च) पूजा पाठ बाद गुफा को 24 घंटे के लिए खोल दिया गया है। इसके बाद गुफा के दरवाजे बंद कर दिए जाएंगे। श्रद्धालु रंगपंचमी के दिन इस गुफा के दर्शन कर रहे हैं। इस गुफा में प्रज्लवित अग्नि की भभूति की सबसे अधिक मान्यता है।
'घेरा की राई' के साथ होगा मेले का समापन
रंगपंचमी को सुबह से ही पूरी पहाड़ी पर राई नृत्य शुरू हो गया है। यह राई नृत्य दिन-रात यहां चलते हैं। और अगली सुबह तक नृत्यांगनाएं नृत्य करती हैं। नृत्यांगना मंदिर परिसर में आकर सबसे पहले नृत्य करती हैं। जिसके मेले में श्रद्धाुलओं के कहने पर नाचतीं हैं। इसके बाद छठ तिथि के दिन मेले के समापन पर सामूहिक नृत्य होता है। जिसमें सभी नृत्यांगनाएं एक साथ नृत्य करती हैं। जिसे 'घेरा की राई' कहा जाता है। इस नृत्य के बंद होने के साथ ही मेले का समापन होता है।
तपसी महाराज का स्वप्न आया और बन गया करीला धाम
इस धाम के इतिहास की बात करें, तो आज से लगभग 200 वर्ष पहले महंत तपसी महाराज को रात में स्वप्न आया कि करीला गांव में टीले पर स्थित आश्रम में मां जानकी और लव-कुश कुछ समय रहे थे। लेकिन यह वाल्मीकि आश्रम वीरान पड़ा हुआ है। तुम वहां जाकर इस आश्रम को जागृत करो। इसके बाद अगले ही दिन सुबह होते ही तपसी महाराज करीला पहाड़ी को ढूढ़ने के लिए निकल पड़े। जैसा उन्होंने स्वप्न में देखा और सुना था, वैसा ही आश्रम उन्होंने करीला पहाड़ी पर पाया। जिसके बाद महाराज इस पहाड़ी पर ही रूक गए और सेवा में जुट गए। इसके बाद आस-पास के ग्रामीणजनों ने भी उनका सहयोग किया था। और आज करीला धाम मध्यप्रदेश का प्रसिद्ध धाम स्थान बन गया।