BHOPAL. मध्यप्रदेश में चुनावी साल में आदिवासी वोट बैंक को लुभाने की हर राजनीतिक दल कोशिश कर रहा है और इस कवायद में नए समीकरण सामने आ रहे हैं। हाल ही में सिवनी में एनसीपी प्रमुख शरद पवार और कांग्रेस के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने आदिवासी सम्मेलन में शिरकत की। बिरसा ब्रिगेड के बैनर तले ये नेता इकट्ठे हुए। अब कयास यही लगाए जा रहे हैं कि आदिवासी सीटों पर एक्टिव आरएसएस कैडर के मुकाबले में बिरसा ब्रिगेड मैदान में उतर आया है। क्या कांग्रेस एनसीपी और बिरसा ब्रिगेड तीनों मिलकर आदिवासी वोटों में सेंध लगाने में कामयाब होंगे।
हैरान करती हैं सियासत की कुछ तस्वीरें
सियासत की कुछ तस्वीरें अक्सर हैरान करती हैं मगर इन तस्वीरों के पीछे बड़ी सोची-समझी रणनीति छुपी होती है। जैसे एनसीपी प्रमुख शरद पवार का मध्यप्रदेश के सिवनी में आदिवासी सम्मेलन में हिस्सा लेना। शरद पवार का सिवनी आना, यूं ही इत्तेफाक नहीं है। उनके साथ खड़े दिग्विजय सिंह खुद उन्हें नागपुर लेने गए थे और दोनों साथ ही सिवनी पहुंचे। सिवनी के आदिवासी सम्मेलन में शरद पवार ने आदिवासियों के अधिकारों की बात की और सभी से एक साथ आकर लड़ने की अपील भी की।
एनसीपी और कांग्रेस मिलकर लड़ सकते हैं चुनाव
दूसरी तरफ दिग्विजय सिंह ने एक बार फिर ईवीएम मशीनों में गड़बड़ी का मुद्दा उठाया और कहा कि पवार साहब के नेतृत्व में आदिवासियों की लड़ाई लड़ी जाएगी। यानी एनसीपी और कांग्रेस दोनों मिलकर आदिवासियों की लड़ाई लड़ेंगे और इस बात से इनकार नहीं कि ये चुनावी लड़ाई में भी तब्दील हो सकती है। खासतौर पर महाराष्ट्र से सटी हुई आदिवासी सीटें, महाराष्ट्र से मध्यप्रदेश के 8 जिलों की सीमा आती है, जहां आदिवासी सीटों की संख्या है 13। सूत्र बताते हैं कि इन 13 सीटों पर एनसीपी और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं और पीछे से सपोर्ट रहेगा बिरसा ब्रिगेड, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और जयस का। अलीराजपुर, बड़वानी, खंडवा, बुरहानपुर और खरगौन में जयस का प्रभाव है, जबकि बैतूल, छिंदवाड़ा और बालाघाट में गोंडवाना ज्यादा सक्रिय है। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस सम्मेलन में गोंडवाना, जयस के कार्यकर्ता भी शामिल हुए थे, जिनका बकायदा जिक्र किया गया था।
बिरसा ब्रिगेड की भूमिका अहम
अब बिरसा ब्रिगेड की भूमिका अहम कैसे है? दरअसल बिरसा ब्रिगेड वैसे ही है जैसे कि आरएसएस के कार्यकर्ता जिस तरीके से बीजेपी नेताओं को ट्रेनिंग देने का काम करते हैं। ठीक उसी तरह बिरसा ब्रिगेड आदिवासी क्षेत्रों में ट्रेनिंग देने का काम करता है। मध्यप्रदेश में जयस के कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग देने के पीछे बिरसा ब्रिगेड का हाथ है। बिरसा ब्रिगेड के प्रमुख सतीश पेंदाम, शरद पवार के करीबी माने जाते हैं। ऐसे में एनसीपी की महाराष्ट्र से सटी हुई सीटों पर चुनाव लड़ने की संभावनाओं को बल मिलता है। 2023 के चुनाव में आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए ये नए समीकरण हैं।
2018 में कांग्रेस ने जयस से मिलाया था हाथ
2018 के चुनाव में कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में उभरते जय युवा आदिवासी शक्ति संगठन यानी जयस से हाथ मिलाया था। जयस ने कांग्रेस के पक्ष में जमीन तैयार की और नतीजा ये रहा कि आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से कांग्रेस ने 31 सीटें जीती थीं और बीजेपी के खाते में केवल 16 सीटें आई थीं। बीजेपी के लिए ये बहुत बड़ा झटका था। उसी का नतीजा है कि बीजेपी ने जोड़-तोड़ से सरकार बनाने के बाद पूरा फोकस आदिवासी सीटों पर कर लिया है। बीजेपी जिस तरीके से आदिवासी क्षेत्रों में फोकस किए हुए है खास तौर पर आरएसएस के कार्यकर्ता पैठ जमाने में जुटे हैं तो जाहिर तौर पर आरएसएस का मुकाबला कोई कैडर बेस संगठन ही कर सकता है और बिरसा ब्रिगेड इस पर खरा उतरता है, क्योंकि आदिवासी वर्ग की आरक्षित 47 सीटें, सभी राजनीतिक दलों के लिए अहम हैं।