संजय गुप्ता, INDORE. मप्र सरकार सरकारी भर्तियों में अनुसूचित जनजाति यानि एसटी वर्ग को 20 फीसदी आरक्षण देती है लेकिन क्या इसके अंदर भी आरक्षण होता है, क्या सभी पद इसमें सहरिया, बैगा, भारिया अत्यंत पिछड़ी जनजातियों को ही जा रहे हैं? यह खबर चौंकाने वाली है और इसे लेकर तब इंदौर से लेकर भोपाल तक हलचल मच गई, जब एक कोचिंग संचालक ने 24 मिनट का वीडियो जारी कर दिया। जिसमें बताया गया कि पटवारी, जेल प्रहरी, वन रक्षक इन सभी की हजारों पदों पर निकली भर्ती में केवल सहरिया, बैगा, भारिया जनजाति के 55 लाख जनसंख्या को ही फायदा होगा और पूरी आदिवासी जनसंख्या 1.58 करोड़ लोग ठगे जा रहे हैं, इन्हें कुछ नहीं मिलेगा। इसे लेकर बाद में सीएम ऑफिस में पदस्थ उप सचिव लक्ष्मण सिंह मरकाम ने फेसबुक पोस्ट कर जानकारी दी। द सूत्र से चर्चा करते हुए बीजेपी में पश्चिमी मप्र में एसटी प्रकोष्ठ का काम देखने वाले डॉ. निशांत खरे ने तकनीकी बिंदु बताकर इस वीडियो के बिंदुओं को खारिज किया। डॉ. खरे ने बाद में एक वीडियो भी जारी कर सच्चाई बताई।
क्या कहा गया है वायरल वीडियो में
वीडियों में कोचिंग संचालक गोपाल द्वारा कहा गया है कि प्रदेश में निकाली गई सरकारी भर्तियों के विविध शर्तों के प्रावधान में है कि बैगा, सहरिया, भारियों को प्रोत्साहित करने के लिए पदों की भर्ती में इनके द्वारा न्यूनतम डिग्री, मानक होने पर सीधे यह दस्तावेज सेंट्रल पर जमा कराएंगे और उन्हें सीधी भर्ती दी जाएगी, परीक्षा की जरूरत नहीं होगी। इसके बाद बाकी पदों के लिए शेष आदिवासी वर्ग के अभ्यर्थियों को एंट्रेस परीक्षा में बैठना होगा और इसमें फिर कटऑफ जारी होगी, जिसके बाद मेरिट में आने पर भर्ती होगी। यदि यह सभी पद सहरिया, बैगा, भारिया से भर जाते हैं तो इन्हें अनारक्षित वर्ग (जनरल) कैटेगरी के पद मेरिट के आधार पर ही मिलेंगे।
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उप सचिव और डॉ. खरे ने द सूत्र को बताया यह है सच
दोनों ने द सूत्र को बताया कि यह गलत फैक्ट है। यह विशेष प्रावधान अकार्यपालिक पद यानि जो चतुर्थ श्रेणी में होते हैं, उनके लिए है और यह आज से नहीं है साल 1998 से ही इसका प्रावधान है। पटवारी, जेल प्रहरी, राजस्व भर्ती आदि में यह लागू ही नहीं होते हैं। अकार्यपालिक पद में भी कुछ सीमित पदों (दस फीसदी) से कम के लिए यह सीधी भर्ती के प्रावधान है। क्योंकि आर्थिक रूप से सबल जनजातियों से वह प्रतिस्पर्धा में चयनित नहीं हो जाएंगे। डॉ. खरे ने यह भी बताया कि अकार्यपालिक पद में भी यह जिले वार रोस्टर के हिसाब से ही भरे जाते हैं, जो जिस जिले का है, वहां जो रोस्टर है, और वह आवेदक उस जिले का मूल निवासी है तो वह वहां यह आवेदन कर अकार्यपालिक पोस्ट ले सकेगा। यह पूरी तरह से भ्रम फैलाया जा रहा है। सभी उम्मीदवार अपनी परीक्षा की तैयारियां करें, सरकार एक लाख सरकारी भर्ती के लक्ष्य पर काम कर रही है।
क्यों तकलीफ हो रही है
इस वीडियो के बाद आदिवासी वर्ग के बीच ही खिंची लकीर को लेकर मरकाम ने अपनी पोस्ट में लिखा है कि- जो लोग एक तीर, एक कमान, आदिवासी एक समान, का नारा लगाने वाले हैं उसे अति पिछड़ी आदिवासियों को उनके तीन जिलों में उनको वर्ग चार की अकार्यपालिक पदों में नौकरी देने में तकलीफ हो रही है। कार्यपालिक पद, पुलिस, राजस्व अन्य विभागों में बैगा, सहरिया, भारिया की सीधी भर्ती सुविधा नहीं है, सभी को इन पदों के लिए चयन प्रक्रिया से गुजरना जरूरी है।
क्यों चिंतित हुई सरकार
पूरी बीजेपी और मप्र सरकार का जोर आदिवासी वोट बैंक पर है, मप्र की आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों पर पूरा फोकस किया जा रहा है। बीते चुनाव में इन पर अधिकांश सीटों पर कांग्रेस ने विजय हासिल की थी, मालवा-निमाड प्रांत की 22 सीटों में से ही कांग्रेस को 15 आदिवासी सीट मिल गई थी। वहीं जयस भी इन सीटों पर जोर मार रहा है। ऐसे में केंद्र से लेकर मप्र सरकार तक का जोर इन्हीं सीटों पर है, इसके लिए नवंबर में पेसा एक्ट भी लागू किया गया है। यदि यह खबर आदिवासी युवाओं को गलत तरह से पहुंचती और वह सही मानते हैं तो ऐसे में बाकी 96 फीसदी आदिवासी परिवार सरकार से नाराज हो सकता है, ऐसे में यह सरकार के लिए चिंता जताने वाली खबर है, इसके चलते पूरी हलचल मच गई है।