BHOPAL: मध्यप्रदेश में चुनावी साल है और एक्सपर्ट्स का मानना हैं कि इस मिशन 2023 में पार्टियों का राजनैतिक भविष्य युवा और महिला वोटर तय करेंगे। ऐसे में सरकार अलग–अलग योजनाएं चलाकर जनता को लुभाने की कोशिश कर रही हैं। फरवरी में लाड़ली बहना योजना के बाद अब सरकार ने ऑन द जॉब ट्रेनिंग यानि मुख्यमंत्री सीखो और कमाओ योजना लॉन्च कर एक और बड़ा दांव खेल दिया है। निशाने पर हैं 2023 के विधानसभा चुनाव में निर्णायक भूमिका रखने वाला 52 प्रतिशत का तगड़ा युवा वोटबैंक। जिसका एक बड़ा तबका बेरोजगार है और जो आगामी 2023 के विधानसभा चुनाव में उसके गले की हड्डी बन सकता हैं। बस इसी समस्या के मद्देनज़र सरकार ले आई है मुख्यमंत्री सीखो और कमाओ योजना। अब सरकार ने योजना लांच तो कर दी, पर योजना को जमीन पर सफलतापूर्वक लागू करने में अफसरों के पसीने छूट गए हैं। दरअसल, सरकार ने योजना को यह कहकर भुनाने की कोशिश की हैं कि इसमें बेरोजगार युवाओं को विभिन्न्न कंपनियों में स्किल्स सिखाने के साथ ही 10 हज़ार तक का स्टाइपेंड भी दिया जाएगा। लेकिन अब इन्हीं कंपनियों को योजना में साथ लाना अधिकारियों के लिए एक बड़ा चैलेंज बन गया है क्योंकि अगर कंपनियां ही योजना में हिस्सेदारी नहीं करेंगी, तो कैसी नौकरी और कैसा स्टाइपेंड! पढ़िए ये पूरी रिपोर्ट....
पहले जानिये क्या है योजना
सीखो और कमाओ योजना लर्न एण्ड अर्न की तर्ज पर काम करेगी। इसमें पढ़े-लिखे बेरोजगार युवा उद्योगों और सर्विस सेक्टर के साथ स्किल ट्रेनिंग (कार्य/कौशल) लेंगे। काम सीखने (प्रशिक्षण) के साथ ही उन्हें स्टाईपेंड भी दिया जायेगा। युवाओं को स्किल ट्रेनिंग देने के लिए कंपनियों और सर्विस सेक्टर को योजना के आधिकारिक पोर्टल पर जोड़ा जाएगा। MPSEDC यह पोर्टल अभी तैयार कर रहा है और जल्द ही पंजीकरण हेतु लॉन्च किया जायेगा। इसके बाद ऑनबोर्ड आने वाले संस्थान द्वारा अपना कोर्स सिलेक्शन करेंगे जिसकी वो ट्रेनिंग देंगे। युवा भी पोर्टल पर ही कोर्स का सिलेक्शन कर आवेदन करेंगे। संस्थान युवाओं का सिलेक्शन कर ऑफर देंगे। युवा संस्थान और सरकार के लिए ऑनलाइन ट्राइपरटाइट एग्रीमेंट साइन होगा। इसके बाद मासिक स्टायपेंड के साथ ऑन-द- जॉब ट्रेनिंग शुरू होगी। प्रशिक्षण के बाद युवाओं का मूल्यांकन होगा और मध्यप्रदेश राज्य कौशल विकास एवं रोजगार निर्माण बोर्ड द्वारा स्टेट कॉउंसिल फॉर वोकेशनल ट्रेनिंग का प्रमाण पत्र दिया जाएगा। इस योजना के लिए राज्य सरकार ने 1 हज़ार करोड़ रुपए का बजट तय किया हैं। इस योजना के तहत एक युवा की ट्रेनिंग पर सरकार हर साल कम-से-कम 96 हजार रुपए और अधिकतम 1 लाख 20 हज़ार रुपए खर्च करेगी। इस योजना से सरकार ने फिलहाल 1 लाख युवाओं का टारगेट तय किया हैं।
अफसरों के पास 1 हफ्ते से भी कम का वक़्त
योजना में युवाओं को प्रशिक्षण देने वाले प्रतिष्ठानों का पंजीयन 7 जून से और काम सीखने के इच्छुक युवाओं का पंजीयन 15 जून से शुरू होगा और प्लेसमेंट 15 जुलाई से आरंभ होगा। कार्य सीखाने वाले प्रतिष्ठान और राज्य शासन के बीच 31 जुलाई से अनुबंध की कार्यवाही होगी। और 1 अगस्त से युवा, कार्य आरंभ कर देंगे। 31 अगस्त को युवाओं के खाते में स्टाइपेंड की पहली किश्त डिपॉज़िट हो जाएगी। यानि कि योजना का काउंटडाउन शुरू हो चुका है। और अफसरों के पास योजना को चुनावों से पहले फंक्शनल करने के लिए 1 हफ्ते से भी कम वक़्त बचा है। इस एक हफ्ते में उन्हें इस योजना के सबसे जरुरी और अहम हिस्से को पूरा करना है, और वो है ऑन-द-जॉब ट्रेनिंग और स्टाइपेंड देने वाली कंपनियों और संस्थानों को ऑनबोर्ड लाना। क्योंकि योजना की सफलता इसी बात पर टिकी है कि ज्यादा से ज्यादा कम्पनियाँ और इंडस्ट्रीज योजना का हिस्सा बने और युवाओं को ट्रेनिंग के साथ स्टाइपेंड दें।
कंपनियों को ऑनबोर्ड लाना ही सबसे बड़ा चैलेंज: जी एन अग्रवाल, जॉइंट डाइरेक्टर, कौशल विकास संचालनालय
द सूत्र ने जब इस मुद्दे पर कौशल विकास संचालनालय के जॉइंट डाइरेक्टर जी एन अग्रवाल से बात की तो उन्होंने कहा, "योजना को लेकर अधिकारियों के सामने सबसे बड़ा चैलेंज यही हैं कि कैसे कंपनियों और इंडस्ट्रीज को ऑनबोर्ड लाया जाए/ मनाया जाए कि वो इस योजना में सरकार का साथ दें।" जी एन अग्रवाल का कहना हैं, "इसके लिए कौशल विकल संचालनालय ने राज्य के कई संस्थानों को मेल भेजा हैं।"
MPSEDC 10,000 संस्थानों को मेल करने की तैयारी में
द सूत्र की जानकारी के अनुसार ज्यादा से ज्यादा कंपनियां और प्रतिष्ठान ऑनबोर्ड हो इसके लिए 4,500 हजार संस्थानों को मेल किये गए हैं। और 5 हजार कंपनियों को और मेल भेजे जाने हैं। सूत्रों के अनुसार कुछ कम्पनीज इन्कवायरी कर भी रहीं हैं, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई है। असल हालत 7 जून के बाद ही पता चलेंगे।
कंपनियों में योजना को लेकर हिचक: 'कैंडिडेट्स सर्टिफिकेट मिलते ही कंपनी छोड़कर चले जाते हैं, भरवाएं 2 साल का बॉन्ड'
वहीं द सूत्र ने जब योजना के सभी पहलुओं की पड़ताल की तो कंपनियों और इंडस्ट्रीज में इस योजना को लेकर हिचक साफ़ नज़र आई। साथ ही कंपनियों ने योजना के क्रियान्वयन से पहले एक मांग और भी की है। दरअसल, द सूत्र ने इस मामले में बात की एसोसिएशन ऑफ़ ऑल इंडस्ट्रीज मंडीदीप के वाइस प्रेजिडेंट एन के सोनी से और जाना कि मुख्यमंत्री सीखो और कमाओ योजना को लेकर उनकी क्या समस्याएँ हैं। एन के सोनी ने बातचीत में कहा, "योजना इस तरह से तो अच्छी है कि स्टाइपेंड का 75% हिंसा सरकार देगी। लेकिन इंडस्ट्रीज के लिए एक बहुत बड़ी दिक्कत ये है कि ऐसी योजनाओं में हमारे पास जो कैंडिडेट्स आते हैं, हम उनको स्किल्स सिखाने में अपना काफी समय, एनर्जी और पैसा खर्च करते हैं। इस उम्मीद से कि वो हमारे लिए आगे काम करेगा। लेकिन ऐसे ज्यादातर मामलों में ये कैंडिडेट्स सर्टिफिकेट मिलते ही कंपनी छोड़कर चले जाते हैं। इस तरह से कंपनियां तो नुक्सान में रह जाती हैं। यही कारण है कि कई बार इंडस्ट्रीज ऐसी योजनाओं में सिर्फ नाम के लिए ही हिस्सा होती हैं।"
इंडस्ट्रीज एसोसिएशन की तरफ से एन के सोनी ने इसीलिए ये मांग की हैं कि, "योजना में एक क्लॉज़ और जोड़ा जाए। जिसके तहत कैंडिडेट्स से कम-से-कम 2 साल का बॉन्ड भरवाया जाए। जिससे कि वो सर्टिफिकेट लेते ही नौकरी न छोड़े और कम्पनीज का भी नुकसान न हो।"
अर्न एंड लर्न जैसी पुरानी सरकारी योजनाओं में प्लेसमेंट का प्रतिशत बेहद कम
कंपनियों की कैंडिडेट्स से बॉन्ड भरवाने की मांग जायज इसलिए भी नजर आती है, क्योंकि अबतक अर्न एंड लर्न जैसी जितनी सरकारी योजनाएं चली आ रही है उसमें प्लेसमेंट का प्रतिशत बेहद कम है। जैसे, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 1.0 जो 2015 में लॉन्च हुई थी -इसमें 1 लाख 68 हजार 868 युवाओं को ट्रेनिंग दी गई और इसमें से केवल 21 हजार 624 का प्लेसमेंट हुआ। इसी तरह प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 2.0 जो 2016 को लॉन्च की गई थी - इसमें शॉर्ट टर्म कोर्स के लिए 4 लाख 6 हजार 464 युवाओं को ट्रेनिंग दी गई और प्लेसमेंट हुआ 1 लाख 89 हजार 236 का यानी सिर्फ 25 फीसदी का।
सरकार का प्लान B!
साफ है कि योजना को जमीन पर सफलतापूर्वक उतारना है तो कंपनियों का ऑनबोर्ड होना जरूरी है। क्योंकि कंपनियां ही दिलचस्पी नहीं दिखाएंगी तो कैसे 1 लाख युवाओं को योजना से जोड़ा जाएगा, ये सबसे बड़ा सवाल है।और यही वजह है कि कौशल विकास विभाग ने सरकारी विभागों को भी कहा है कि वो भी अपने यहां सीखो कमाओ योजना के लिए तैयारी रखें। जी एन अग्रवाल के अनुसार, "MP शासन के सभी विभाग जैसे - MSME, इंडस्ट्रीज, PHE, PWD और अन्य भी - के प्रमुखों को बाकायदा हिदायत दी गई हैं कि सभी इस पोर्टल पर अपने-अपने विभाग से जुड़े स्टेकहोल्डर्स और कॉन्ट्रैक्टर्स या कम्पनीज को पोर्टल पर रजिस्टर करवाने के लिए तैयार रहें।" यानी प्राइवेट कंपनियां या इंडस्ट्रीज नहीं आती है तो सरकार का प्लान बी तैयार है। क्योंकि चुनावी साल है और इस साल में योजना की नाकामी सरकार किसी भी कीमत पर नहीं चाहेगी।
योजना की जरुरी बातें
- 703 क्षेत्रों में मिलेगा प्रशिक्षण मुख्यमंत्री सीखो-कमाओ योजना में प्रशिक्षण के लिए 703 कार्य क्षेत्र चुने गए हैं। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स, मैकेनिकल, सिविल आदि। प्रबंधन (मैनेजमेंट एवं मार्केटिंग क्षेत्र) । ऐसे क्षेत्र जिनमें प्रशिक्षण के बाद छात्र गिग इकोनॉमी /ब्लू कॉलर जॉब्स के लिए योग्य होंगे। सर्विस सेक्टर में होटल मैनेजमेंट, टूरिज्म, ट्रैवल अस्पताल और रेलवे आदि। आईटी सेक्टर में आईटी और सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट क्षेत्र । फाइनेंस सेक्टर में बैंकिंग, बीमा, लेखा, चार्टड अकाउंटेंट और अन्य वित्तीय सेवाएं। मीडिया और कला। कानूनी एवं विधि सेवाएं। शिक्षा व प्रशिक्षण | विनिर्माण, सेवाओं, व्यापार आदि के अंतर्गत बाकी अन्य क्षेत्र ।