सीहोर में नए साल पर चिंतामन गणेश मंदिर पहुंचे भक्त, भगवान गणेश की पूजा-अर्चना कर लिया आशीर्वाद, सुख-समृद्धि की कामना की 

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Vijay Choudhary
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सीहोर में नए साल पर चिंतामन गणेश मंदिर पहुंचे भक्त, भगवान गणेश की पूजा-अर्चना कर लिया आशीर्वाद, सुख-समृद्धि की कामना की 

कवि छोकर. SEHORE. सीहोर के प्रसद्धि स्वयंभू श्री चिंतामन गणेश गणेश मंदिर में स्थित प्रतिमा का हर दिन रूप बदलता है। यहां उल्टे स्वास्तिक से हर मन्नत पूरी होती है। ये मंदिर सीहोर जिला मुख्यालय से करीब तीन किलोमीटर दूरी पर स्थित है। स्वयंभू श्री चिंतामन गणेश गणेश मंदिर देशभर में अपनी ख्याति और भक्तों की अटूट आस्था को लेकर पहचाना जाता है। नए साल में भगवान गणेश के दर्शनों के लिए भक्त पहुंचे हैं। 1 जनवरी पर भक्तों ने भगवान गणेश  के दर्शन कर आशीर्वाद लिया। इसके साथ ही सुख-समृद्धि की कामना की।



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चिंतामन गणेश मंदिर विश्व प्रसिद्ध



राजधानी भोपाल के पास बसे सीहोर जिला मुख्यालय से करीब तीन किलोमीटर दूरी पर बने स्वयंभू श्री चिंतामन गणेश मंदिर देशभर में अपनी अलग ख्याति है। ये मंदिर भक्तों की अटूट आस्था को लेकर पहचाना जाता है। स्वयंभू श्री चिंतामन गणेश यानी भगवान गणेश की देश में 4 स्वयं भू-प्रतिमाएं हैं। इनमें से एक रणथंभौर सवाई माधोपुर राजस्थान, दूसरी उज्जैन स्थित अवन्तिका, तीसरी गुजरात में सिद्धपुर और चौथी सीहोर में स्वयंभू श्री सिद्धनाथ गणेश मंदिर में विराजित हैं। 



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देश के 4 स्वयंभू प्रतिमाओं में से एक हैं सीहोर के चिंतामन गणेश, यहां उल्टा स्वास्तिक बनाकर मन्नत मांगी जाती है



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साल भर भक्तों का लगा रहता है तांता



स्वयंभू श्री सिद्धनाथ गणेश मंदिर में साल भर लाखों श्रद्धालु भगवान गणेश के दर्शन करने आते हैं। इतिहासविदों की माने तो करीब मंदिर का जीर्णोद्धार और सभा मंडप का निर्माण बाजीराव पेशवा प्रथम ने करवाया था। शालीवाहन शक, राजा भोज, कृष्ण राय और गौंड राजा नवल शाह समेत कई लोगों ने मंदिर की व्यवस्था में सहयोग किया। नानाजी पेशवा विठूर के समय मंदिर की ख्याति और प्रतिष्ठा में बढ़ोत्तरी हुई।



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चिंतामन गणेश मंदिर में हर मनन्नत होती है पूरी



मान्यता अनुसार श्रद्धालु भगवान गणेश के सामने अपनी मन्नत के लिए मंदिर की दीवार पर उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं और मन्नत पूरी होने के बाद सीधा स्वास्तिक बनाते हैं। पार्वती नदी के कमल पुष्प से बने हैं चिंतामन प्राचीन चिंतामन सिद्ध गणेश को लेकर पौराणिक इतिहास है। इस मंदिर का इतिहास करीब 2 हजार साल पुराना है। युति है कि सम्राट विक्रमादित्य पार्वती नदी से कमल पुष्प के रूप में प्रगट हुए भगवान गणेश को रथ में लेकर जा रहे थे। सुबह होने पर रथ जमीन में धंस गया। रथ में रखा कमल पुष्प गणेश प्रतिमा में परिवर्तित होने लगा। प्रतिमा जमीन में धंसने लगी। बाद में इसी स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया गया। आज भी यह प्रतिमा जमीन में आधी धंसी हुई है।

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