मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण में नहीं चलेगी शिवराज-सिंधिया की सिफारिश, संगठन के विश्वासपात्र को मिली जिम्मेदारी!

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण में नहीं चलेगी शिवराज-सिंधिया की सिफारिश, संगठन के विश्वासपात्र को मिली जिम्मेदारी!

BHOPAL. मध्यप्रदेश में अब बीजेपी की नियति संघ के हाथ में है। पिछले कुछ दिनों से कार्यकर्ता की नाराजगी की खबरों को संघ ने अब गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है। इस नाराजगी के अलावा नेताओं के गुटों में बंट चुकी बीजेपी का मध्यप्रदेश में हाल-बेहाल है। इन हालातों को भांपकर संघ ने प्रदेश में पैरलल काम शुरू कर दिया है। जिसका असर उस वक्त दिखाई देगा जब पार्टी टिकट बांटने का काम शुरू करेगी। ये भी मुमकिन है कि खुद सीएम शिवराज अपने चहेते उम्मीदवारों को टिकट ना दिलवा सकें और ये भी संभव है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास दावेदार टिकट से दूर कर दिए जाएं। हर बड़े नेता के दावों और गुट की काट बनने का जिम्मा मध्यप्रदेश में अब खुद आलाकमान ने संभाल लिया है। जिनके विश्वासपात्र नेता हर जिले में डबल लेयर चर्चा कर रहे हैं। इस चर्चा का डर बीजेपी हलकों में नजर भी आने लगा है। प्रदेश में बीजेपी की बुरी स्थिति को भांपकर आलाकमान ने पहली बार इस तरह का सख्त कदम उठाया है।



टिकट वितरण से पहले होगा सर्वे



चुनाव नजदीक आते हैं तो टिकट के दावेदारों की भीड़ जुटना, टिकट वितरण से पहले सर्वे कराना आम प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में अक्सर वो नेता बाजी मारते हैं जो सर्वे में अच्छी रिपोर्ट तो हासिल करते ही हैं, दिग्गज नेताओं के करीबी भी होते हैं। लेकिन मध्यप्रदेश में इस बार बड़े नेताओं से करीबी कोई खास कमाल नहीं दिखाने वाली है। क्योंकि इस बार सत्ता की नहीं संघ की रिपोर्ट पर फाइनल फैसला होगा। जिसे तैयार करने  के लिए संघ का सबसे विश्वासपात्र सिपहसालार मैदान में उतर चुका है। ये सिपहसालार हैं क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल। जिनकी रिपोर्ट के आगे शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया, वीडी शर्मा और नरोत्तम मिश्रा सरीखे दिग्गज नेताओं के दावे और सिफारिशें धरी रह जाएंगी। जामवाल के काम करने का तरीका अलग है। संगठन को मजबूत करने की अपनी शैली के साथ जामवाल मैदान में उतर चुके हैं, जिसकी वजह से बीजेपी के दिग्गजों में भी खलबली मची हुई है।



संगठन में कसावट लाने के लिए जाने जाते हैं अजय जामवाल



अजय जामवाल उन नेताओं में से हैं जो गुटबाजी खत्म कर संगठन में कसावट लाने के लिए ही जाने जाते हैं। अब वो मैदान में उतरे हैं और एक आम योद्धा की तरह जंग के मैदान के हर हिस्से को आंक रहे हैं, जिनके साथ भारी दलबल नहीं चल रहा और ना ही स्वागत में वंदनवार सज रहे हैं। जामवाल अकेले ही अलग-अलग जिलों में जा रहे हैं और कार्यकर्ता को खुलकर बोलने की छूट दे रहे हैं। इन बैठकों में जामवाल प्रदेश से अपना नाता बताना भी नहीं भूलते। अपने पिता से मिले आर्मी के अनुशासन का जिक्र फैमिली बैकग्राउंड के बहाने करते हैं और जबलपुर में हुई स्कूली शिक्षा के 3 साल के बारे में भी बताते हैं ताकि कार्यकर्ता उनसे कनेक्ट कर सके। बीजेपी के ही एक विधायक की मानें तो जब कार्यकर्ताओं को बोलने का मौका मिलता है वो दूध का दूध और पानी का पानी कर देते हैं। जिसे जामवाल पूरे इत्मिनान से सुन और समझ रहे हैं। मैदानी हकीकतों से रूबरू होने के बाद जामवाल की ये रिपोर्ट सीधे हाई कमान के सामने होगी। माना जा रहा है कि उस रिपोर्ट के आधार पर प्रत्याशी चयन हुआ तो शिवराज, सिंधिया, तोमर, विजयवर्गीय और भी जितने बड़े नेता हैं, वो अपने खास पट्ठों को टिकट नहीं दिलवा सकेंगे।



हर जिले का दौरा कर रहे अजय जामवाल



मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव सिर पर है, लेकिन संघ की पेशानी पर बल तो उसी दिन पड़ गए थे जब नगरीय निकाय चुनाव के नतीजे सामने आए थे। इन चुनावों में दिग्गज नेताओं की सिफारिश या सलाह पर टिकट तय हुए। कई सीटों पर वीडी शर्मा की चली, ग्वालियर चंबल में नरेंद्र सिंह तोमर हावी रहे। इस तरह टिकट का बंटवारा हुआ, लेकिन किसी भी दिग्गज का खास, जीत हासिल नहीं कर सका। उल्टे पहले जीती जिताई सीटें भी गंवानी पड़ी। पार्टी आलाकमान और संघ को समझते देर नहीं लगी कि दिग्गज नेताओं का ईगो पार्टी को ले डूबेगा। गुटबाजी के मामले में मध्यप्रदेश में बीजेपी का कांग्रेस जैसा हाल हो जाए उससे पहले संघ एक्टिव हो चुका है। हर गुट को बेअसर करने के लिए संघ के नुमाइंदे अजय जामवाल एक आम कार्यकर्ता की तरह हर जिले का दौरा कर रहे हैं। उनका बस एक ही मकसद है कार्यकर्ता की नाराजगी को दूर ऐसे प्रत्याशी का चयन करना जो बाहुबल से नहीं बल्कि कार्यकर्ता के समर्थन से टिकट हासिल कर सके। जामवाल अब तक छत्तीसगढ़ के अलावा भिंड, मुरैना, मंदसौर, नीमच, रतलाम, अनूपपुर और सिंगरौली सीटों का दौरा कर चुके हैं।



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जामवाल की रिपोर्ट को सर्वे रिपोर्ट से ज्यादा तरजीह



अजय जामवाल बिना किसी लाव-लश्कर और बड़े नेताओं के हुजूम के बगैर हर जगह का दौरा कर रहे हैं। शुरुआत उस स्थान विशेष के मंदिर में दर्शन से होती है। उसके बाद बारी आती है डबल लेयर मीटिंग की हर जगह वो कार्यकर्ताओं को संबोधित करने के अलावा क्लोज डोर मीटिंग्स भी कर रहे हैं। पहली लेयर में कार्यकर्ताओं के साथ और दूसरी लेयर में पदाधिकारियों का साथ मीटिंग हो रही है। इन मीटिंग्स से पहले दीवारों के कान भी काट दिए गए हैं ताकि चर्चा की कोई बात बाहर न आ सके। बस इतना सुनने में आ रहा है कि जामवाल कार्यकर्ताओं और जिला पदाधिकारियों को अपनी बात रखने का भरपूर मौका दे रहे हैं। उनके निशाने पर 4 नेता हैं शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया, वीडी शर्मा और नरोत्तम मिश्रा। जिनके बारे में सवाल पूछते हैं और आम कार्यकर्ता की राय जान रहे हैं। बीजेपी के गलियारों में चर्चा है कि जामवाल की रिपोर्ट को हर सर्वे की रिपोर्ट से ज्यादा तरजीह दी जाएगी।



चुनाव में जनता VS बीजेपी होने का डर



नगरीय निकाय चुनाव के नतीजे देखते हुए आलाकमान और संघ दोनों को डर है कि आने वाला चुनाव जनता वर्सेज बीजेपी ना हो जाए। एंटीइन्कंबेंसी का फैक्टर जबरदस्त तरीके से नाराज हैं, जिसका शिकार खुद बीजेपी का कार्यकर्ता भी है। इसके अलावा बीजेपी में अब कांग्रेस की तरह ही गुट पनपने लगे हैं। दिग्गजों की भीड़ में पार्टी का कॉमन कार्यकर्ता अलग-थलग पड़ गया है, जिसकी सुनवाई कहीं नहीं हो रही। ऐसे कार्यकर्ताओं को जब अपनी बात रखने का मौका मिला तो उन्होंने दिल खोलकर अपनी ही सरकार और संगठन की पोल खोलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कुछ मोटी-मोटी बातें जो इस बैठक में निकल कर आईं वो इस तरह हैं।



जामवाल से कार्यकर्ताओं ने की 'मन का बात'




  • हर जिले से एक कॉमन शिकायत मिली, सरकार पर अफसरशाही हावी


  • जनप्रतिनिधियों की भी नहीं होती सुनवाई

  • कलेक्टर-एसपी नहीं करते स्थानीय नेताओं की पूछ-परख, सिर्फ भोपाल से मिले निर्देशों की सुनवाई

  • कुछ जिले से मिली बड़े स्थानीय नेताओं के बीच गुटबाजी की शिकायत

  • जिला पदाधिकारियों की सलाह- नेता मिलकर काम करें तो कार्यकर्ता भी एक्टिव होगा

  • कुछ कार्यकर्ताओं की शिकायत डिजिटल पर ज्यादा जोर होने की वजह से मैदानी स्तर पर कम हो रही सक्रियता



  • बीजेपी को भारी पड़ सकती है कार्यकर्ताओं की नाराजगी



    कार्यकर्ताओं की ये नाराजगी बीजेपी पर भारी पड़ सकती है। जामवाल की चली तो मध्यप्रदेश से गुटों का सफाया हो सकता है। नई और पुरानी बीजेपी के अंतरद्वंद में उलझी बीजेपी का तानाबाना सुलझ सकता है और शायद जमीनी हालात बेहतर हो सकते हैं। इस बार बीजेपी के सामने कांग्रेस ही नहीं और भी दल खड़े हैं, लेकिन सबसे बड़ा मुकाबला अपने ही कार्यकर्ता से है। जिन्हें साधने अब बीजेपी ने संघ के बूते ये फाइनल दांव खेला है।



    चुनाव जीतने के लिए बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक!



    अजय जामवाल की रिपोर्ट को कितनी तवज्जो दी गई। इसका अंदाजा टिकट की लिस्ट जारी होने के बाद ही होगा। हो सकता है कि इन लिस्ट में शिवराज, सिंधिया और वीडी शर्मा के किसी करीबी को जगह ही ना मिले। बल्कि कुछ चौंकाने वाले नाम और चेहरे दिखाई दें। पार्टी ये सख्ती दिखा सकी तो यकीनन गुटबाजी की हवा निकल जाएगी। बड़े नेताओं का ईगो हवा होगा और जिताऊ उम्मीदवार को टिकट मिल सकेगा और चुनावी जीत के लिए यही बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक भी साबित होगा।


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