BUDNI. मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले द सूत्र एक मुहिम चला रहा है। मूड ऑफ एमपी-सीजी (mood of mp cg) के तहत हमने जाना कि विधानसभा में मौजूदा हालात क्या हैं, जनता क्या सोचती है। अगले विधानसभा चुनाव में क्षेत्र का गणित क्या रहेगा। इसी कड़ी में हमारी टीम बुधनी विधानसभा सीट पर पहुंची-
बुदनी को जानें
बुदनी में बौद्ध स्तूप कई जगहों पर स्थित हैं। इसी कारण से इस नगर का नाम बुदनी पड़ा। बुदनी को बुद्ध की नगरी भी कहा जाता है। मध्य प्रदेश की राजनीति में बुदनी का अहम स्थान है। क्योंकि यहां से विधायक शिवराज सिंह चौहान चौथी बार प्रदेश की कमान संभाल रहे हैं।
बुदनी का सियासी मिजाज
बुदनी विधानसभा सीट 1957 में अस्तित्व में आई थी। यहां से पहली जीत कांग्रेस की राजकुमारी सुरजकला को मिली थी। यहां हुए अब तक के 14 चुनावों में 5 बार कांग्रेस, 5 बार बीजेपी, निर्दलीय दो बार, भारतीय जनसंघ एक बार, जनता पार्टी को एक बार सफलता मिली है। साल 1990 में पहली बार शिवराज सिंह चौहान यहां से विधायक का चुनाव लड़े और सदन में पहुंचे। उसके बाद से इस इलाके में शिवराज का नाम ही काफी है।
बुदनी का सियासी समीकरण
यहां शिवराज सिंह चौहान से बड़ा कोई चेहरा नहीं है। शिवराज के आगे न कोई समीकरण काम करता है और न कोई मुद्दा प्रभावी है। यहां की जनता के दिल और दिमाग पर शिवराज सिंह की छवि सबसे ज्यादा भारी है। शिवराज सिंह चौहान यहां से 5 बार विधायक रह चुके हैं। साल 2018 में कांग्रेस ने यहां से अरुण यादव को मैदान में उतार कर शिवराज को कड़ी चुनौती देने जैसी भूमिका बांधी थी। चुनाव के दौरान यहां से शिवराज की पत्नी साधना सिंह और पुत्र कार्तिकेय सिंह ने प्रचार की कमान संभाली थी। शिवराज यहां से 59 हजार वोटों की बंपर जीत दर्ज कर विधायक बने थे। 15 महीने की कमलनाथ सरकार के बाद मार्च 2020 में बुदनी के पांव-पांव वाले भैय्या प्रदेश की सत्ता के फिर से सिरमौर बन गए थे।
बुदनी में जातिगत समीकरण
बुदनी में वैसे तो जातिगत समीकरण कोई मायने नहीं रखता। यहां शिवराज का चेहरा ही सबसे ज्यादा प्रभावी है। यहां 40 हजार वोट हरिजन-आदिवासी समाज के हैं, तो वहीं यादव, रघुवंशी, ग्वाला समाज के 32 हजार वोट हैं। शिवराज सिंह चौहान यहां अन्य पिछड़ा वर्ग के होने के बाद भी सभी वर्गों के बीच लोकप्रिय हैं।
बुदनी के मुख्य मुद्दे
बुदनी भले ही सीएम शिवराज सिहं चौहान का इलाका हो लेकिन फिर भी समस्याएं तो हैं। यहां रोजगार के अवसरों की कमी और अस्पताल में दवा नहीं मिलने से लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, तो वहीं किसानों को खाद और बीज के लिए भी कई तरह की समस्याओं से रूबरू होना पड़ता है। इलाके में लगे उद्योगों में स्थानीय लोगों को कम और बाहरी लोगों को अधिक काम मिल रहा है।
बुदनी का सियासी इतिहास
बुदनी विधानसभा बीजेपी के सबसे बड़े चेहरे और सत्ता के सिंहासन पर काबिज मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सीट है। बुधनी शिवराज के लिए राजनीतिक तौर पर 'जन्मस्थान' रहा है। यही वह जगह है, जहां से वो एक नेता के तौर पर उभरे थे। बुधनी से ही वह पहली बार 1990 में विधानसभा पहुंचे थे। एक साल बाद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा छोड़ी गई विदिशा सीट से सांसद चुने गए। इसके बाद 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही शिवराज बुधनी सीट से लड़ते आए हैं। 2008, 2013 और 2018 में वह लगातार बुधनी से विधानसभा पहुंचे। अब तक वो यहां से 5 बार विधायक रह चुके हैं। वर्ष 2013 में भी सीएम शिवराज सिंह चौहान ने यहीं से चुनाव लड़ा और उन्होंने कांग्रेस के अपने नजदीकी प्रतिद्वंद्वी डॉक्टर महेंद्र सिंह चौहान को बड़े अंतर से हराया था। शिवराज को कुल 1,28,730 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी को महज 43,925 मत ही प्राप्त हुए थे। कुल 2,29,396 मतों में से शिवराज सिंह चौहान को 70% मत प्राप्त हुआ था। वहीं, कांग्रेस के महेंद्र चौहान के पक्ष में 23.88% लोगों ने मत डाले थे। 2018 में भी शिवराज सिंह चौहान ने 58,999 वोटों के अंतर से जीत हासिल की। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी अरुण सुभाष चंद्र को हराया था।
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