सिंगरौली में कोयला, काले हीरे के बाद अब मिट्टी उगलेगी सोना, जाने यहां की मिट्टी में आईआईटी क्यों कर रहा रिसर्च

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Neha Thakur
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सिंगरौली में कोयला, काले हीरे के बाद अब मिट्टी उगलेगी सोना, जाने यहां की मिट्टी में आईआईटी क्यों कर रहा रिसर्च

देवेंद्र पांडे, SINGRAULI. मध्यप्रदेश की ऊर्जाधानी सिंगरौली में अचूक खनिज संपदा का भंडार है । यहां सोने की खदान के साथ काले हीरे का भी भंडार है। जल्द ही यहां की रेत भी सोना उगलेगी, क्योंकि यहां की रेत से जल्द ही सिलिका निकलेगा। इसके लिए एनसीएल यानी कोयले का उत्पादन करने वाली भारत सरकार की मिनी रत्न कंपनी ने सिलिका निकालने की पूरी तैयारी कर ली है। एनसीएल जनसंपर्क अधिकारी रामविजय सिंह ने बताया- ओबी में सिलिका की मात्रा काफी अधिक है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के साथ मिलकर इस पर शोध कार्य चल रहा है। पूरी संभावना है कि शोध सफल रहेगा। प्राथमिक आंकलन में पर्याप्त मात्रा में सिलिका प्राप्त होने की संभावना जताई गई है। अभी ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता है।



आईआईटी ने शोध किया शुरू



एनसीएल ने आईआईटी खड़गपुर के साथ शोध शुरू किया है। इस शोध में रेत की गुणवत्ता, लागत और लाभ से लेकर कई बिन्दुओं पर वैज्ञानिकों द्वारा शोध कार्य किया जाएगा। कंपनी के अधिकारियों की मानें तो सफलता मिलने की पूरी संभावना है। सिलिका का प्रयोग सोलर प्लांटों में लगने वाले प्लेट व शीशे के बर्तन बनाने सहित अन्य कई उत्पाद में प्रयोग होता है। रेत की प्राथमिक परीक्षण में मिले नतीजों के मुताबिक ओबर बर्डन (ओबी) यानी खदान की रेत में सिलिका की पर्याप्त मात्रा मिलने की संभावना है। माना जा रहा है कि जिस तरह से सोलर ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ रही है। ऐसे में ओबी से सिलिका का उत्पादन कंपनी के लिए बड़ी उपलब्धि होगी। चूंकि सिलिका का उपयोग सोलर प्लेट के अलावा दूसरे उत्पाद तैयार करने में भी किया जाता है। इसलिए इसकी मांग देश व विदेश दोनों में है।



जल्द ही दूसरी परियोजनाओं में भी होगी शुरूआत



कंपनी वर्तमान में अमलोरी परियोजना में हर रोज एक हजार घन मीटर रेत तैयार कर रही है। अमलोरी का प्लांट अगले 5 वर्ष तक चलेगा। इससे पहले कंपनी जयंत या निगाही परियोजना में एम सेंड प्लांट स्थापित करने की तैयारी कर रही है। माना जा रहा है कि अमलोरी का प्लांट बंद होने से पहले दूसरी परियोजनाओं प्लांट शुरू हो जाएगा। तैयार रेत निविदा के जरिए एक निर्माण एजेंसी प्राप्त कर रही है।



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शोध में वक्त लगने की संभावना



कंपनी के अधिकारियों के मुताबिक शोध में लंबा वक्त लग सकता है। फिर भी कोशिश है कि अधिक से अधिक दो से तीन वर्ष में प्लांट की शुरूआत की जाए। गौरतलब है कि ओबी से रेत बनाने के लिए एनसीएल ने तीन वर्ष तक प्रयोग किया था। इसके बाद इस वर्ष जनवरी में उत्पादन कार्य शुरू हो पाया। वर्तमान में कंपनी के अमलोरी परियोजना में रेत बनाया जा रहा है।


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