बागियों के लिए मशहूर भिंड सीट पर कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस जीती, ठाकुर और ब्राह्मण मतदाताओं का है वर्चस्व   

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Vivek Sharma
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बागियों के लिए मशहूर भिंड सीट पर कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस जीती, ठाकुर और ब्राह्मण मतदाताओं का है वर्चस्व   

BHIND. चंबल का ये वो इलाका है जो बागियों के लिए मशहूर रहा है। ये भिंड जिला है। ऋषि भिंडी के नाम पर भिंड का नाम पड़ा है। एक समय यहां डाकुओं का ऐसा आतंक था कि पुलिस और सुरक्षा बल चंबल के बीहड़ों में जाने से कतराते थे। सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक 1959 से 1963 के दौरान अकेले भिंड जिले में पुलिस ने 216 डाकू मार गिराए थे और  697 गिरफ्तार किए  थे। अब भिंड में बागी नहीं बल्कि सैनिक ज्यादा हैं। यहां के ज्यादातर युवा सेना में भर्ती होते हैं। सियासी रूप से देखें तो भिंड विधानसभा सीट काफी अहमियत रखती है। 2018 के चुनाव में यहां से बहुजन समाज पार्टी के संजीव सिंह कुशवाह ने जीत दर्ज की।



सियासी मिजाज



भिंड का सियासी मिजाज देखें तो यहां बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों के उम्मीदवार जीत दर्ज करवाते रहे हैं। 1957 में पहले चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर नरसिंहराव जबरसिंह चुनाव जीते थे इसके बाद 1980 के चुनाव तक ये सीट कांग्रेस, जनता पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी के कब्जे में रही। 1980 में बीजेपी के टिकट पर चौधरी दिलीप सिंह ने यहां से जीत दर्ज की। 80 के चुनाव के बाद से बीजेपी को इस सीट पर जीत दर्ज करने के लिए तीन चुनावों का इंतजार करना पड़ा। 1993 में बीजेपी के रामलखन सिंह ने यहां से जीत दर्ज की लेकिन इसके बाद इस सीट के मतदाताओं ने एक बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस को मौका दिया यानी 1998 में कांग्रेस, 2003 में बीजेपी, 2008 में कांग्रेस फिर 2013 में बीजेपी के उम्मीदवार जीतते रहे लेकिन 2018 में यहां भारी उलटफेर हो गया न बीजेपी, न कांग्रेस मतदाताओं ने बीएसपी को चुन लिया।



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जातिगत समीकरण



भिंड विधानसभा सीट पर ठाकुर और ब्राह्मण मतदाताओं का वर्चस्व है और चुनाव में इसी वर्ग के मतदाता असर डालते हैं। 2018 के चुनाव में यहां के जातिगत समीकरण गड़बड़ा गए थे क्योंकि बीजेपी के पूर्व विधायक नरेंद्र  कुशवाह ने बागी होकर समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा बीजेपी ने कांग्रेस से चौधरी राकेश सिंह को टिकट दिया। बीएसपी ने बीजेपी के टिकट से चार बार सांसद का चुनाव जीते रामलखन सिंह के बेटे संजीव सिंह को टिकट दिया था। कांग्रेस ने जिला अध्यक्ष डॉक्टर रमेश दुबे को टिकट दे दिया। इस तरह से ब्राह्मण ठाकुर वोटर बंट गया था सारी कमान वैश्य और एससी वर्ग के वोटरों के हाथ में थी। जिसका फायदा बीएसपी के संजीव कुशवाह को मिला। 



सियासी समीकरण



अब भिंड का सियासी समीकरण फिर बदल गया है। माना जा रहा है कि संजीव कुशवाह बजाए बीएसपी के बीजेपी से चुनाव लड़ेंगे क्योंकि जब कांग्रेस की सरकार थी तब कुशवाह कांग्रेस के साथ थे और जब बीजेपी की सरकार बनीं तो कुशवाह ने बीजेपी को समर्थन दे दिया वैसे ही संजीव कुशवाह के पिता रामलखन बीजेपी से चार बार सांसद रहे लेकिन वो भी बागी होकर चुनाव लड़े थे। चौधरी राकेश सिंह अब बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आ चुके हैं और अब कांग्रेस से टिकट मांग रहे हैं। वहीं नरेंद्र कुशवाह के सामने एसपी और बीएसपी से चुनाव लड़ने का रास्ता खुला है। ऐसे में जनता किसे सर माथे बैठाएगा ये चुनाव से कुछ दिनों पहले पता चलेगा।



मुद्दे



भिंड में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य को लेकर भी जनता परेशान है। साथ ही रोजगार भी एक बड़ा मुद्दा है। 



इसके अलावा द सूत्र ने इलाके के प्रबुद्धजनों, वरिष्ठ पत्रकारों और आम जनता से बात की तो कुछ सवाल निकलकर आए।




  • 4 साल में क्षेत्र में किए गए कामों के बारे में बताएं


  • स्वास्थ्य शिक्षा के क्षेत्र में विधायक निधि से कितना खर्च किया

  • युवाओं के रोजगार के लिए क्या कोशिशें की

  • पेयजल की व्यवस्था दुरूस्त करने के लिए क्या किया

  • चुनाव में जो वादे किए वो कितने पूरे हुए



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