BHPAL. राजा भोज ने मध्यप्रदेश के धार में साल 1034 में माता वाग्देवी (माता सरस्वती) का मंदिर बनवाया था, जो मां सरस्वती के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। 1305 में अलाउद्दीन खिलजी ने उस मंदिर पर आक्रमण कर उसे नष्ट करने का प्रयास किया। साल 1401 में दिलावर खान ने उस पर आक्रमण किया और मंदिर के प्रवेश द्वार पर एक मस्जिद बनवाई। 1875 में अंग्रेजों के समय इस स्थान पर खुदाई में वाग्देवी की मूर्ति मिली थी, जिसे इंग्लैंड के म्यूजियम में रखा गया। इसे वापस लाने की मांग लंबे समय से चल रही है। आज यानी 29 अक्टूबर को इंदौर में शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि जल्द ही मूर्ति आएगी।
भोजशाला का अब तक का इतिहास
- धार शासक परमार वंश के राजा भोज ने वर्ष 1034 में सरस्वती सदन और वाग्देवी मूर्ति की स्थापना की थी। तब वहां महाविद्यालय संचालित होता था।
वर्ष 1456 में महमूद खिलजी ने सरस्वती सदन में मौलाना कमालुद्दीन का मकबरा और दरगाह बनाई।
वर्ष 1857 में सरस्वती सदन की खुदाई में वाग्देवी की मूर्ति मिली।
वर्ष 1880 में भोपावर पॉलिटिकल एजेंट मेजर किनकेड इस मूर्ति को लंदन ले गया। तब से मूर्ति वहीं है। इस मूर्ति की प्रतिकृति भोजशाला में है।
वर्ष 1909 में धार रियासत ने एन्शिएंट मोन्यूमेंट एक्ट लागू करते हुए भोजशाला परिसर को संरक्षित स्मारक घोषित किया था। आजादी के बाद ये पुरातत्व विभाग के अधीन हो गया।
वर्ष 1935 में धार रियासत के दीवान ने भोजशाला को कमाल मौला की मस्जिद बताते हुए शुक्रवार की नमाज पढ़ने की अनुमति दी।
भोजशाला में सरस्वती जन्मोत्सव की शुरुआत वर्ष 1952 में केशरीमल सेनापति, प्रेमप्रकाश खत्री, बसंतराव प्रधान, ताराचंद अग्रवाल ने की।
4 फरवरी 1991 से प्रति मंगलवार सत्याग्रह शुरू किया गया। यह सत्याग्रह भोजशाला की मुक्ति के नाम पर भोजशाला उत्सव समिति ने शुरू किया था।
सत्याग्रह में हर मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ किया जाता था।
वर्ष 1995 में भोजशाला में विवाद हुआ. इसके बाद मंगलवार को यहां पूजा करने और शुक्रवार को नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई।
12 मई 1997 को धार कलेक्टर ने भोजशाला में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन सत्याग्रह जारी रहा। बैरिकेड्स के बाहर से हनुमान चालीसा का पाठ किया जाता रहा।
6 फरवरी 1998 को पुरातत्व विभाग ने भी यहां आम लोगों के प्रवेश पर रोक लगा दी।
बाद में भोजशाला में शुक्रवार को दोपहर 1 से 3 बजे तक नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई।
वर्ष 2003 में मंगलवार को बगैर फूलमालाओं के पूजन की अनुमति दी।
6 फरवरी 2003 को बसंत पंचमी के दिन नमाज को लेकर भोजशाला में विवाद हुआ। इससे तनाव बढ़ा और 18 फरवरी 2003 को धार में दंगे हुए।
इस हिंसा के बाद केंद्र की तत्कालीन अटल बिहारी सरकार ने 3 सांसद शिवराज सिंह चौहान, एएसएस आहलूवालिया और बलवीर पुंज की कमेटी से जांच करवाई।
8 अप्रैल 2003 में अंदर जाकर प्रति मंगलवार हनुमान चालीसा का पाठ करने की इजाजत मिली।
3 फरवरी 2006 को भी शुक्रवार और बसंत पंचमी एक साथ आए थे, जिसके बाद विवाद की स्थिति बन गई थी। उस समय हवन बंद करवाकर प्रशासन ने 13 लोगों से नमाज पढ़वाई। इसमें धार के तत्कालीन प्रभारी मंत्री कैलाश विजयवर्गीय से लोगों ने विरोध किया था।
12 फरवरी 2016 को बसंत पंचमी और शुक्रवारएक ही दिन होने पर विवाद की स्थिति बनी। पूजन और नमाज को लेकर दोनों पक्ष अड़ गए, जिसके कारण धार सहित आसपास के जिलों में हाई अलर्ट रहा।
12 फरवरी 2016 को पुलिस ने बसंत पंचमी पर दर्शन करने पहुंचे लोगों को दोपहर में जबरदस्ती बाहर निकाल दिया था। इस दौरान लाठीचार्ज हुआ। बाद में पुलिस सुरक्षा में 25 लोगों को पुलिस वाहन में लाकर नमाज पढ़वाई गई। यह मामला भी काफी विवादित रहा।
भोपाल भी मानी जाती है राजा भोज की नगरी
राजा भोज का विशाल साम्राज्य था। धार में परमार वंश के राजा भोज ने 1010 से 1055 ईसवी तक 44 वर्ष शासन किया। कहा जाता है कि भोपाल को राजा भोज ने ही बसाया था। इसका पुराना नाम भोजपाल नगर ही माना जाता है। कहीं-कहीं भूपाल का भी उल्लेख मिलता है। भोपाल के बड़े तालाब पर राजा भोज की विशाल प्रतिमा लगाने के पीछे यही मान्यताएं रही हैं। तालाब का निर्माण भी राजा भोज काल का ही बताया जाता है। इसकी सीमा भोजपुर के शिव मंदिर तक थी। तालाब का पानी बहुत पवित्र और बीमारियों के उपचार में कारगार माना जाता था। शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने भोपाल के अलावा धार में भी राजा भोज की प्रतिमा स्थापित की है। लेकिन धार के लोगों को इंतजार वाग्देवी का है।