मध्यप्रदेश में धीरेंद्र शास्त्री की कथा के आयोजनों से बीजेपी को फायदे से ज्यादा नुकसान! समझिए क्या है सियासी गणित!

author-image
Harish Divekar
एडिट
New Update
मध्यप्रदेश में धीरेंद्र शास्त्री की कथा के आयोजनों से बीजेपी को फायदे से ज्यादा नुकसान! समझिए क्या है सियासी गणित!

BHOPAL. यशराज मुखाते का नाम तो जानते ही होंगे आप अरे वही सोशल मीडिया इंफ्लूएंजर जिनके मजेदार म्यूजिकल वीडियो आजकल ट्रेंडिंग में रहते हैं। अब अगर आप अचानक ये सोच रहे हैं कि सियासी मुद्दों पर गंभीर चर्चा वाले हमारे इस प्रोग्राम में अचानक यशराज मुखाते की चर्चा क्यों। तो जरा रुकिए मुद्दे पर भी आते हैं यशराज मुखाते का एक ताजा वीडियो जमकर वायरल हो रहा है। इस विडियो में एक रियल्टी शो की कंटेस्टेंट कहती है। एज इज डजंट द मैटर। अंग्रेजी की इस मजेदार गलती के साथ यशराज मुकाते ने पूरा वीडियो तैयार कर दिया।





20 साल से सत्ता पर काबिज दल 26 साल के बाबा के आगे नतमस्तक





अब बताते हैं कि हम इस वीडियो की बात क्यों कर रहे हैं क्योंकि एमपी की सियासत का सारा मुद्दा ही ये है कि उम्र कुछ मायने रखती है या नहीं। खासतौर से तब जब 20 साल से सत्ता पर काबिज एक दल अचानक 26 साल के बाबा के आगे बिछा हुआ नजर आए। हम बात कर रहे हैं बागेश्वर धाम के बाबा धीरेंद्र शास्त्री की। हिंदुत्व का फायरब्रांड चेहरा उमा भारती ने जब मध्यप्रदेश में बीजेपी सरकार की नींव रखी उस वक्त धीरेंद्र शास्त्री की उम्र पांच या छह साल की रही होगी। अब धीरेंद्र शास्त्री उमा भारती की स्थापित उसी सत्ता का सहारा बनते नजर आ रहे हैं और हिंदुत्व की विरासत भी संभालने की कोशिश में हैं।





नेता ही नहीं सरकारी मशीनरी भी धीरेंद्र शास्त्री की भक्ति में जुटा दी गई 





क्या उम्र की सीमा और क्या जन्म का बंधन, धीरेंद्र शास्त्री हर सीमा हर बंधन से परे हैं। राजनीति और ग्लैमर की दुनिया में तो 50-55 साल का नेता अभिनेता भी युवा ही होता है। इस लिहाज से तकरीबन 26 की उम्र के धीरेंद्र शास्त्री ने तो राजनीतिक यौवन की दहलीज पर कदम रखा ही है और शोहरत का आलम देखिए कि बड़े-बड़े धुरंधर राजनेता, तजुर्बेकार राजनेता उनके आगे शीष नवाएं पड़े हैं। सिर्फ नेता ही नहीं सरकार की सारी मशीनरी भी धीरेंद्र शास्त्री की भक्ति में जुटा दी गई है। जिन अधिकारियों पर बीजेपी के अपने कार्यकर्ता ये आरोप लगाते हैं कि वो बेलगाम हो चुकी है। उनकी सुनवाई नहीं होती। वो बाबा की ड्यूटी में खुद को इस कदर फना करने को तैयार हैं कि उनके दातून से लेकर शौच तक का जिम्मा संभालने में कोई ऐतराज नहीं।





कथा के आयोजन में सभी विभागों के अफसरों की ड्यूटी लगाई





मामला बालाघाट का है और इन दिनों काफी हाईलाइट भी है। क्योंकि निर्देश कलेक्टर की दस्तखत के बाद जारी हुए हैं। बालाघाट में धीरेंद्र शास्त्री की कथा का आयोजन करवा रहे हैं शिवराज सरकार के मंत्री राम किशोर कांवरे। जिस आयोजन में पूरी बीजेपी जुटी हो उसके लिए कलेक्टर साहब की तरफ से आयोजन और समन्वय समिति बनाना चौंकाने वाला है। कलेक्टर ने दो मई 2023 को दो पन्ने का एक आदेश निकाल कर अपने मातहत जिले के सभी विभागों के अफसरों की ड्यूटी लगाई है। इन अफसरों को हर तरह की व्यवस्था सौंपी गई है। कुल 19 तरह की जिम्मेदारियां तय की गईं हैं। इसमें पहला नाम जिला पंचायत अधिकारी बालाघाट डीएस रडदा और आखिरी नाम जिले के प्रभारी आयुष अधिकारी डॉक्टर मिलिंद चौधरी का है। डॉक्टर चौधरी को कथा सुनने आए भक्तों को दातून और नित्य क्रिया की सामग्री उपलब्ध कराने का जिम्मा दिया गया है।





बाबा पर जुबानी हमले पर सफाई देने बीजेपी के नेता खड़े नजर आते हैं





चुनाव से पहले धीरेंद्र शास्त्री और उनके भक्तों की आवभगत में कोई कमी न रह जाए। सरकारी अधिकारियों का एकमात्र उद्देश्य, कम से कम बालाघाट में तो यही नजर आता है। जहां जल्द ही बाबा की कथा होने वाली है। बाबा धीरेंद्र शास्त्री की ये आवभगत धर्म के प्रति सरकार का लगाव या झुकाव है या फिर कोई मजबूरी। क्योंकि बिना नाराजगी और बिना शिकवे शिकायत वाली भीड़ जुटाना है तो धीरेंद्र शास्त्री हैं जरूरी। जो बीजेपी के बिना चाहे ही हिंदुत्व और सनातन का चेहरा बन चुके हैं और अब उन्हें बीजेपी ने गोद ले लिया है। बीजेपी लाख इससे इंकार करे लेकिन धीरेंद्र शास्त्री के प्रति अपने झुकाव और लगाव को छुपा नहीं पा रही है। बाबा पर जुबानी हमला होता है तो उसकी सफाई देने बीजेपी के नेता ही खड़े नजर आते हैं। ये तो छोड़िए खुद सीएम शिवराज सिंह चौहान धीरेंद्र शास्त्री के साथ मंच साझा करते हैं। गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा उनके दरबार में माइक थामे नजर आते हैं। अब उन्हें ये कौन याद दिलाए कि सियासत में उन्होंने जितने साल गुजार दिए हैं उतनी तो धीरेंद्र शास्त्री की उम्र भी नहीं हुई है, लेकिन आंके बांके से धीरेंद्र शास्त्री पर इन तजुर्बेकार सियासतदानों का इतना भरोसा है कि बाबा की महिमा उनका सियासी बाल भी बांका नहीं होने देगी।





बाबा के बयानों से एक समाज को इंप्रेस करने में बीजेपी दूसरे समाजों से हाथ न धो बैठे





ये भरोसा नया नया है, ये भरोसा बना रहेगा या नहीं बस इसी बात का डर सताता है। क्योंकि बाबा पर भरोसा कर सकते हैं, लेकिन उनकी जुबान पर तो शायद वो खुद भरोसा नहीं कर पाते होंगे। उम्र कम है, लेकिन जुबान लंबी है जो कब लड़खड़ा जाए पता ही नहीं चलता। अपनी कथा के बहाने बाबा भीड़ तो जुटा लेते हैं, लेकिन ये भीड़ वोट में तब्दील होगी इसकी गारंटी तो कोई भी दिव्य दरबार नहीं दे सकता। उल्टे कहीं ये न हो कि बाबा के बयानों से एक समाज को इंप्रेस करने के चक्कर में बीजेपी दूसरे समाजों से हाथ धो बैठे। बाबा की शोहरत की शुरूआत लोधी समाज की नाराजगी से हुई। इसके बाद सांई भक्तों के निशाने पर बाबा आए। फिलहाल हैहय क्षत्रियवंशियों को नाराज कर दिया। कथा बांचते हुए भावनाओं में बहकर धीरेंद्र शास्त्री कुछ न कुछ कह जाते हैं। सियासत में उसके नफा नुकसान का अंदाजा उन्हें शायद बाद में होता है। मासूमियत इतनी है कि वो माफी मांगने में न देर लगाते हैं न गुरेज करते हैं। पर उनकी माफी का फोहा क्या वोट के चोट का दर्द भर सकेगा।





धीरेंद्र शास्त्री को नाम मिल रहा है और बीजेपी को हिंदुत्व का एक फेस





धीरेंद्र शास्त्री के पास आज वो सबकुछ है जिसकी ख्वाहिश उन्हें शायद बचपन से रही है। जिस बच्चे का बचपन 12 बाय छह के घर में बीत गया वो अब दरबार सजाता है। आलीशान गाड़ियों में चलता। प्रदेश के नामी गिरामी मंत्री और नेता रेड कार्पेट सजा कर उसका इंतजार करते हैं। उसके गुणगान करते हैं। अपने दादा को बागेश्वर धाम के एक कोने में संत की तरह जीवन बिताते देख चुके और भागवत कथा लगे तो जीभर कर खाना मिले की उम्मीदों के साथ बचपन गुजार चुके धीरेंद्र शास्त्री ने कहां सोचा होगा कि पिताजी की भागवत से दो वक्त की रोटी नसीब होती थी। अब वही भागवत उनके दरवाजे पर दौलत और शोहरत लेकर आएगी। मंच पर मुस्कुराते और नेताओं की आवभगत का लुत्फ उठाते हुए धीरेंद्र शास्त्री कभी कभी इस पॉलीटिकल प्रिवेलेज को भरपूर इंजॉय करते हुए भी दिखाई देते हैं। उनके केस में ताली दोनों हाथों से जम कर बज रही है। धीरेंद्र शास्त्री को नाम मिल रहा है और बीजेपी को हिंदुत्व का एक फेस।





बाबा के बयानों से जरूर बीजेपी की सांसें थम जाती होंगी





बीजेपी भले ही धीरेंद्र शास्त्री को अपना माने या न माने लेकिन धीरेंद्र शास्त्री पर बीजेपी के बाबा होने का पॉलीटिकल ठप्पा लग चुका है। खबर है कि मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी उनकी भागवत आयोजित करवाना चाहते थे। बाबा मान भी गए, लेकिन फिर जनवरी तक के लिए समय न होने का बहाना बना दिया। खबर तो ये भी है कि वो पूर्व सीएम और कमलनाथ को भी इंकार कर चुके हैं। जिसके मायने यही हैं कि फिलहाल धीरेंद्र शास्त्री ऐसे किसी शख्स के साथ नजर नहीं आना चाहते जो बीजेपी विरोधी है या बीजेपी से अलग है। इस पॉलीटिकल प्रिफरेंस से धीरेंद्र शास्त्री के तो वारे न्यारे हैं, लेकिन उनके बयानों से जरूर बीजेपी की सांसें थम जाती होंगी।





बाबा के बोल, बोल का ‘झोल’





1 भगवान सहस्त्रार्जुन को कुकर्मी, बलात्कारी और राक्षस बताया, देशभर के 15  करोड़ हैहय क्षत्रियवंशी नाराज।





2 दिव्य दरबार को चुनौती मिली तो कथा का शेड्यूल दो दिन कम कर गायब  होने का आरोप।





3 शाहरूख खान की फिल्म पठान के लिए कहा जिनके नाम खान लगा है उनकी पिक्चर मत देखो।





4 एक सभा में कहा जो तुम्हारे घर पत्थर फेंके उसके घर जेसीबी लेकर चलो क्योंकि भारत सनातनियों का है।





5 मई 2022 में वायरल 25 सेकंड के वीडियो में कहा संत  तुकाराम को उनकी पत्नी डंडे से मारती थी। बाद में माफी भी मांगी।





6 अप्रैल 2023 में कहा सांई बाबा संत हो सकते हैं, लेकिन भगवान नहीं। बवाल मचा तो सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए माफी मांगी।





7 राजस्थान की एक सभा में खुद को हनुमानजी का अवतार बताकर खुद को हिंदुओं का रक्षक बताया। 





8 इसी सभा में एक शख्स को पैर छूने से रोका तो छुआछूत का आरोप भी लगा।





9 प्रीतम लोधी के बयान पर कहा ‘वो मुझे मिल जाए तो मसल कर रख दूं’।





भीड़ बीजेपी का वोट बैंक बनी तो समझो कथा का फल मिल गया





धीरेंद्र शास्त्री के ये बयान साबित करते हैं कि वो सियासी दुनिया में फायदेमंद की जगह नुकसानदायी भी हो सकते हैं. उनके दरबार में सजने वाली भीड़ बीजेपी के लिए वोट बैंक बनी तो समझिए कि कथा का फल मिल गया। पर, कहीं ऐसा न हो कि जिससे बीजेपी को सबसे ज्यादा उम्मीद है। वही नया-नया चिराग चुनावी शामियाने में आग लगा दे। कथा बीजेपी करवाए और प्रसाद कांग्रेस के खाते में चला जाए। ये मुद्दा इस कदर संजीदा है कि खुद जेपी नड्डा एक बार अपने नेताओं को ये हिदायत दे चुके हैं कि हर कोई धर्म के मामले में बात न करे। इस पर निर्धारित प्रवक्ता ही बात करेंगे। नेता धीरेंद्र शास्त्री के मंच पर जा सकते हैं, लेकिन सियासी बात करने से बचे। जब सरकार और सरकारी मशीनरी टॉयलेट की जिम्मेदारी तक के लिए जिम्मेदारी तय कर देगी। तब बयान दे या न दे उसे पॉलीटिकल होने से कैसे बचाया जा सकेगा।





चुनावी साल में बीजेपी को फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाना जरूरी है





धीरेंद्र शास्त्री बीजेपी के लिए हिंदुत्व के फिल इन द ब्लैंक का श्योरशॉट जवाब बन कर आए हैं। उन्हें सनातन और हिंदुत्व का चेहरा बनने से एतराज नहीं है। बयानों में उमा भारती या साध्वी ऋतंबरा के भाषणों जैसी धार भले ही न हो, लेकिन उबाल बहुत है। बस इस उबाल को पतीले में संभालना मुश्किल है। यही उबाल कहीं बेलगाम होकर बह निकला तो बीजेपी के लिए मुश्किल न बन जाए। चुनावी साल में फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रही बीजेपी को इस पर भी गंभीरता से गौर करने की जरूर नजर आती है।



Dhirendra Shastri in Madhya Pradesh organizing Katha more loss than profit to BJP understand what is political math मध्यप्रदेश में धीरेंद्र शास्त्री कथा के आयोजन बीजेपी को फायदे से ज्यादा नुकसान समझिए क्या है सियासी गणित