रुचि वर्मा, HARDA. मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले द सूत्र एक मुहिम चला रहा है। मूड ऑफ एमपी-सीजी (mood of mp cg) के तहत हमने जाना कि विधानसभा में मौजूदा हालात क्या हैं, जनता क्या सोचती है। अगले विधानसभा चुनाव में क्षेत्र का गणित क्या रहेगा। इसी कड़ी में हमारी टीम हरदा विधानसभा सीट पर पहुंची....
हरदा विधानसभा को जानें
हरदा विधानसभा सीट हरदा जिले के अंतर्गत आती है। हरदा जिला 1988 में अस्तित्व में आया। इससे पहले ये नर्मदापुरम (होशंगाबाद) जिले में आता था। हरदा में वोटर्स 4 लाख के करीब हैं। हरदा में मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही रहता है। फिलहाल हरदा विधानसभा सीट पर फाइल बीजेपी का कब्जा है और राज्य के कृषि मंत्री कमल पटेल यहां से विधायक हैं।
हरदा का सियासी हाल
वैसे तो ज्यादातर हरदा बीजेपी का गढ़ बना हुआ है। लेकिन यहां के मतदाता कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस के उम्मीदवार को जिताते आए हैं। इस सीट पर 7 बार कांग्रेस और 6 बार बीजेपी ने जीत हासिल की है। 1951 में यहां पर हुए पहले चुनाव में किसान मजदूर प्रजा पार्टी के महेश दत्त ने जीत हासिल की। 1957 में ये सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई। इसके बाद कांग्रेस के गुलाब रामेश्वर ने चुनाव जीता। 1962 में यह सीट एक बार फिर सामान्य हो गई। सीट पर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रहा। 1993 में बीजेपी के कमल पटेल पहली बार चुनाव जीते और 20 साल तक इस सीट पर जीतते रहे। कमल पटेल शिवराज सरकार में मंत्री हैं।
मध्य प्रदेश पुलिस की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए राम किशोर दोगने ने 2013 के चुनाव में बीजेपी के दिग्गज कमल पटेल को हराया। दोगने को 74607 वोट मिले थे तो वहीं बीजेपी के कमल पटेल को 69956 वोट मिले थे। इससे पहले 2008 के चुनाव में बीजेपी के कमल पटेल ने जीत हासिल की थी। उन्होंने कांग्रेस के हेमत ताले को 8 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। 2018 के चुनावों में बीजेपी के कमल पटेल कांग्रेस के दोगने को हराकर फिर हरदा से विधायक बने। 2018 में हरदा विधानसभा क्षेत्र में कुल 214359 मतदाता थे। कुल वैध मतों की संख्या 1 लाख 74 हजार 782 रही। कमल पटेल को कुल 85 हजार 651 वोट मिले। कांग्रेस के उम्मीदवार दोगने 78 हजार 984 मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। हरदा में कांग्रेस में गुटबाजी 2018 के विधानसभा चुनाव में हार का एक कारण बनी। 2013 में 28 साल बाद कांग्रेस सीट पर वापसी की थी लेकिन 2018 में फिर हार गई।
हरदा में जातिगत समीकरण
हरदा सीट में सामान्य वोटर्स बड़ी भूमिका निभाते हैं। गुर्जर समाज भी काफी प्रभाव रखता है। यहां के सत्ता निर्धारण में। हरदा जिले की बात करे तो यहां क्षत्रिय ब्राह्मण करीब 35 हजार हैं।
हरदा के मुद्दे
- हरदा को पिछड़ा तो नही कहा जा सकता, पर विकास क्षमता के अनुरूप नहीं हुआ है। मॉल बन रहा है, लेकिन मूलभूत सुविधाओं की परेशानी है। हरदा में सड़क और ट्रैफिक की बड़ी समस्या है। हरदा शहर में से बड़े वाहनों की आवाजाही से यातायात व्यवस्था गड़बड़ाई है। शहर में ओवरब्रिज बनने का मामला अटका है। हरदा कृषि मंत्री का कमल पटेल गृह क्षेत्र है और गेहूं और सोयाबीन की फसल के लिए जाना जाता है, लेकिन फिर भी यहां की मांग के अनुरूप यहां एग्रीकल्चर कॉलेज नहीं है
फिलहाल किसका पलड़ा भारी?
कुल मिलाकर हरदा में विकास के वादे कुछ पूरे हुए तो कुछ अधूरे रह गए। बीजेपी मजबूत स्थिति में तो लग रही है। अगर कांग्रेस गुटबाजी से ऊपर उठ सके तो बीजेपी को टक्कर दे सकती है। रामकिशोर दोगने के अलावा कांग्रेस में लक्ष्मीनारायण पंवार का भी काफी बोलबाला है। अभी कांग्रेस की हरदा की भारत जोड़ों यात्रा की उपयात्रा उन्हीं के संरक्षण में है। विकास का मुद्दा बनना तय है।
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