शेख रेहान, KHANDWA. खंडवा में खरगोश और कछुए वाली वर्षों पुरानी कहानी साकार हो गई। यह कहानी खंडवा में विशेष जनजाति समुदाय के लिए वन रक्षकों की भर्ती की शारीरिक दौड़ परीक्षा के दौरान साकार हुई। खंडवा में इन जनजातियों के युवकों के लिए वनरक्षक भर्ती प्रक्रिया में 24 किलोमीटर दौड़ने के दौरान एक युवक सबसे तेज दौड़ते हुए इतना आगे निकल गया कि उसके दूसरे प्रतियोगी कई किलोमीटर पीछे छूट गए। इस दौरान युवक आराम करने के लिए बैठ गया और उसके नींद लग गई। जब नींद खुली तब तक वह परीक्षा से बाहर हो गया।
96 नंबर जर्सी में पहाड़सिंह ढाई घंटे में ही दौड़ लिए थे 21 किमी
मंगलवार को खंडवा में विशेष जाति समुदायों के लिए वन रक्षक भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई। इसमें विशेष जनजातियों के 61 प्रतिभागियों ने भाग लिया इसमें से 52 पुरुष थे, जिन्हें 24 किलोमीटर दौड़ना था और 9 महिलाएं थी जिनके लिए 14 किलोमीटर की दौड़ 4 घंटे में पूरी करना थी। पुरुष वर्ग में 96 नंबर की जर्सी पहने डबरा के सहरिया जनजाति समुदाय के पहाड़सिंह 21 किलोमीटर का सफर पहले लगभग ढाई घंटे में ही पूरा कर लिया। जब उसने पीछे मुड़कर देखा तो कई किलोमीटर दूर तक भी उसके प्रतियोगी दिखाई नहीं दिए। इस दौरान उसने आराम करने की सोची और वह सड़क किनारे खड़े एक डंपर की छांव में लेट गया। यहां उसकी नींद लग गई। जब सारे प्रतियोगी आखरी पॉइंट पर पहुंच गए तब उसमें एक प्रतियोगी दिखाई नहीं दिया।
16 जिलों के युवक-युवतियों ने लिया हिस्सा
श्योपुर, मुरैना, दतिया, गुना, अशोकनगर, ग्वालियर, भिंड, शिवपुरी, मंडला, डिंडोरी, उमरिया, शहडोल, बालाघाट, अनूपपुर, छिंदवाड़ा और सिवनी क्षेत्र में रहने वाले बेगा, सहरिया व भारिया जनजाति के युवक-युवतियों के लिए यह परीक्षा थी। इसमें पहला चरण दौड़, दूसरे चरण में मेडिकल फिर तीसरे चरण में पढ़ाई की मेरिट लिस्ट के आधार पर सिलेक्शन होगा।
जब पहाड़सिंह को जगाया तब तक दौड़ का समय पूरा हो गया
इस मामले में वन मंडल खंडवा के रेंज अधिकारी जय प्रकाश मिश्रा ने बताया कि भर्ती प्रक्रिया में लगे अधिकारियों-कर्मचारियों ने जगह-जगह लगे पॉइंट पर जांच की तब पता चला कि 21 किलोमीटर तक तो वह सबसे आगे था। फिर उसे उसे ढूंढा गया तो वह सड़क किनारे डंपर की छांव में सोता नजर आया। जब उसे जगाया तब तक परीक्षा दौड़ का समय पूरा हो गया था। इस तरह पहाड़ सिंह सक्षम होते हुए भी इस दौड़ प्रतियोगिता में बाहर हो गया। अधिकारी कहते हैं कि यह उसका दुर्भाग्य था कि सक्षम होते हुए भी वह बाहर हो गया।
जो सोयेगा वो खोएगा यह कहावत और कछुए खरगोश की कहानी अनुभव के आधार पर बुजुर्गों ने बनाई होगी वह इस घटना से एक बार और सिद्ध हो गई।