मध्यप्रदेश में कहां गए मामाजी के संकट मोचक, किसके खिलाफ इकट्ठे हुए देशभर के IAS अफसर और कौन से साहब की कार्यशैली से अमला परेशान

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश में कहां गए मामाजी के संकट मोचक, किसके खिलाफ इकट्ठे हुए देशभर के IAS अफसर और कौन से साहब की कार्यशैली से अमला परेशान

BHOPAL. 'छुपा-छुपी खेलें आओ, छुपा-छिपी खेलें आओ...' 1977 की फिल्म ड्रीम गर्ल का ये गाना फिलहाल मौसम पर फिट है। बादल, बारिश, फिर बादलों की ओट से झांकते सूर्य देव, आसमान देखकर काम तय करते लोग... मई में ये मामला कुछ अजब ही है, लेकिन फिर वही कि प्रकृति है। देशभर में मौसम तपिश में ठंडक का अहसास करा रहा है तो सियासी गलियारों में तपिश बढ़ी है। कर्नाटक में इस वीकेंड में वोटिंग है। वहां 'हाथ' ने बजरंग दल को हाथ लगा दिया तो भगवा वालों ने इसे हाथों-हाथ ले लिया। 'बड़े साहेब' ने तो इसे बजरंगबली के नारे से जोड़ दिया। बजरंग दल वालों ने इसे आन-बान-शान के खिलाफ समझा तो कांग्रेस के दफ्तर में तोड़-फोड़ तक कर दी। वहीं, महाराष्ट्र में पवार साहब का पावर गेम चल रहा है। वो पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे चुके हैं, पर पार्टी इस्तीफा लेने को तैयार नहीं। हड़कंप तो देश के दिल में भी कम नहीं है। मध्यप्रदेश में एक पूर्व सीएम के बेटे ने कांग्रेस में 'दीपक' जला दिया है। यही नहीं, मध्यप्रदेश बीजेपी के कई नेता पार्टी के खिलाफ बिगुल फूंके हुए हैं। खबरियों की खबर है कि मामाजी दिल्ली बुला लिए गए हैं। चुनावी साल में इतनी उठापटक किसके पक्ष में जाएगी और किसके विपक्ष में, ये तो वक्त ही बताएगा। वैसे इस बीच कई खबरें पकीं, कई की खुशबू बिखरी, कुछ गुम हो गईं, आप तो बस सीधे अंदरखाने चले आइए...



मामाजी कहां गए आपके संकट मोचक



दीपक जोशी के बीजेपी को अलविदा कहने के बाद पार्टी के छोटे-बड़े नेताओं में इस बात की चर्चा है कि हमारी पार्टी और सरकार के संकट मोचक कहां हैं। अब तक कांग्रेस के नेताओं की तोड़-फोड़ करके सरकार बनाने वाले संकट मोचक भी गायब हैं। दीपक जोशी ने पार्टी छोड़ने का ऐलान 5 दिन पहले किया था, लेकिन पार्टी और सरकार का एक भी संकट मोचक दीपक को मनाने में सफल नहीं हो पाया। छोटी-सी मांग थी स्मारक बनाने की, सरकार पूरी नहीं कर पाई। चुनाव से पहले खुली मैनेजमेंट की खुली पोल। अंदरखानों की माने तो संकट मोचक चाहते थे कि दीपक पार्टी छोड़कर चले जाएं, जिससे हाईकमान को इस बात का अहसास हो कि सत्ता और संगठन के मुखिया अपनी जमीन खो रहे हैं।



आनंद मोहन राय की रिहाई के खिलाफ मैदान में IAS अफसर



गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे आनंद मोहन राय की रिहाई शुरू से ही विवादों में है। इसके पीछे विवाद का कारण है कि एक IAS की हत्या के दोषी बाहुबली की रिहाई के लिए बिहार सरकार को अपने ही कानून में संशोधन करना पड़ा था। हालांकि इस मामले में देशभर के IAS उतर आए हैं। IAS सुरेश चंद्र ने बिहार सरकार को चुनौती देने के लिए मुहिम छेड़ रखी है। सुरेश चंद्र देशभर के अफसरों से सहयोग राशि एकत्रित कर बिहार सरकार के इस फैसले को चुनौती देने के लिए कानूनी कदम उठाने जा रहे हैं। सुरेश चंद्र को अपनी इस मुहिम के लिए मध्यप्रदेश से भी अच्छा खासा समर्थन मिला है। मध्यप्रदेश के IAS अफसरों ने 5 लाख रुपए की राशि सुरेश चंद्र को सौंपी है। इससे एक बात तो साफ है कि अफसरों को जनता का दुख दिखे न दिखे, लेकिन अपने एक साथी के साथ हुआ अन्याय तुरंत दिखा। हम तो ईश्वर से यही प्रार्थना करेंगे कि इन अफसरों के मन में जनता के प्रति भी इसी तरह का सहयोग का भाव जागे जैसा अपने साथी के लिए जगा।



साय कांग्रेस के, लेकिन फोटो बीजेपी कार्यालय में



छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के बड़े चेहरे नंद कुमार साय ने बीजेपी छोड़ कांग्रेास का दामन भले ही थाम लिया हो, लेकिन एमपी बीजेपी चाहकर भी नंद कुमार साय की फोटो अपने कार्यालय से नहीं हटा सकती। दरअसल, साय अविभाजित मध्यप्रदेश के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं। बीजेपी कार्यालय में सभी प्रदेश अध्यक्षों की फोटो लगी है, ऐसे में एमपी बीजेपी संगठन की मजबूरी है कि एक कांग्रेसी की फोटो अपने कार्यालय में लगी रहने दें। अंदरखाने से जानकारी मिली है कि प्रदेश संगठन ने इस मामले में दिल्ली से मार्गदर्शन मांगा है कि साय की फोटो का क्या करें, अब देखना है कि दिल्ली से हाईकमान का क्या संदेशा आता है।



बिकाऊ लाल पोस्टर की बलि चढ़े सुशील



हे प्रभु, एक मंत्री के यहां करे कोई ओर भरे कोई वाली कहावत को चरितार्थ किया जा रहा है। दरअसल, मंत्री के बंगले के बाहर युवा सेना ने बिकाऊ लाल चौधरी के पोस्टर क्या लगाए, मंत्री जी की भद पिट गई। मामले में प्रदेश संगठन से लेकर महाराज ने नाराजगी क्या जताई। मंत्री ने अपनी गर्दन बचाने अपने होनहार पीए सुशील पर भ्रष्टाचार का ठीकरा फोड़कर विदा कर दिया। सुशील जब तक पीए थे तब तक शांत थे, लेकिन अब वे खुद ही अपने लोगों को फोन कर करके बात रहे हैं कि अकेले मंत्री नहीं पूरा घर बिकाऊ लाल है।



आशीष पर किसका आशीष



ग्वालियर बीजेपी पदाधिकारी आशीष अग्रवाल का मीडिया अध्यक्ष बनना पार्टी में चर्चा का विषय बना हुआ है। उनकी लंबी छलांग को लेकर चर्चा है कि चुनावी साल में आशीष को इतनी बड़ी जिम्मेदारी देने में किसका आशीष मिला। कोई केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर का नाम ले रहा है तो कोई पूर्व मीडिया अध्यक्ष लोकेन्द्र पाराशर का। इन सबके साथ युवा तूर्क सह-मीडिया प्रभारी जुगल किशोर शर्मा का नाम भी चर्चा में है कि उनकी पैरवी पर वीडी शर्मा ने आशीष के नाम पर मुहर लगाई है।



वोट बड़ी चीज है



कहते हैं राजनीति में सिर्फ अपना स्वार्थ देखा जाता है, उसके आगे सभी चीजें छोटी होती है। इस बात को सत्य कर दिखाया केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और दिमनी विधायक रविंद्र सिंह तोमर ने। पिछले दिनों पूरे देश और प्रदेश को हिलाकर रख देने वाले मुरैना हत्याकांड के बाद स्थानीय सांसद और केंद्रीय मंत्री इस हत्याकांड के पीड़ितों से मिलने की बजाय दिल्ली निकल लिए। बताया जा रहा है कि मरने वाले और मारने वाले दोनों ही तोमर हैं। ऐसे में किसी एक का पक्ष लेने से बेहतर है पल्ला झाड़कर दिल्ली चल दो। वहीं प्रभारी मंत्री भरत सिंह कुशवाह भी पीड़ितों से मिलने नहीं पहुंचे। इसलिए ये कहने में कतई संदेह नहीं है कि राजनीति में वोट बड़ी चीज है, उसके आगे मानवीय संवेदना और जनप्रतिनिधि की जिम्मेदारी दोनों ही छोटी बात है।



साहब सेडेस्टिक हैं क्या?



प्रमुख सचिव स्तर के एक साहब की कार्यशैली से पूरा अमला परेशान हैं। साहब किसी अफसर को फाइल भेजते हैं, फाइल संबंधित तक पहुंचे उसके पहले उनका व्हाट्सएप पर संदेशा पहुंच जाता है कि फाइल का क्या हुआ। संबंधित अफसर फाइल देखकर बताने का जवाब देते हैं कि थोड़ी देर में उनका बंदा रिपोर्ट लेने पहुंच जाता है। इतना ही नहीं साहब अपने अधिनस्थों को प्रताड़ित करने के नए-नए तरीके ढूंढते रहते हैं। साहब की पदस्थापना मंत्रालय से बाहर एक प्रशिक्षण संस्थान में हैं। संस्थान के लोग दुआ कर रहे हैं कि साहब की पोस्टिंग वापस मंत्रालय में हो जाए तो उनकी जान छूटे। वैसे आपको बता दें साहब जहां भी रहे हैं वहां उनका अमला इसी तरह प्रताड़ित रहा है, अब लोग उनके बारे में पूछने लगे हैं कि साहब सेडेस्टिक हैं क्या?


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