परमीशन की आड़ में जंगल को काटकर खोद रहे पूरी पहाड़ी

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Rahul Sharma
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परमीशन की आड़ में जंगल को काटकर खोद रहे पूरी पहाड़ी



Bhopal.





मिट्टी बचाओ मुहिम (Soil Save Campaign) के दौरान हाल ही में 9 जून को सद्गुरु जग्गी वासुदेव राजधानी भोपाल आए। इस अवसर पर भोपाल के नेहरू स्टेडियम में बड़ा आयोजन कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सद्गुरू के मिट्टी बचाओ अभियान में जन-सहयोग करने के साथ—साथ भरोसा दिलाया कि मध्यप्रदेश भी उनके इस अभियान में कदम से कदम मिलाकर चलेगा। सरकार मिट्टी की गुणवत्ता को लेकर कितनी गंभीर है, द सूत्र ने इसका खुलासा 8 जून के सूत्रधार में किया था। द सूत्र ने बताया था कि किस तरह करोड़ों रूपए फूंक देने के बाद भी तहसील स्तर पर खुली मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाएं धूल खा रही है। अब हम द सूत्र की पड़ताल में आपको बताएंगे कि क्या वाकई में मध्यप्रदेश सरकार मिट्टी बचाने को लेकर चिंति​त है या सद्गुरु जग्गी वासुदेव की मुहिम से जुड़कर मिट्टी बचाने के लिए जो बड़ी—बड़ी बाते की गई, वह महज कोरे दावे थे। जमीनी हालात कुछ और ही हैं। दरअसल अचारपुरा इंडस्ट्रीयल एरिए में परमीशन की आड़ में जंगल को काटकर पूरी पहाड़ी खोद दी गई और यह सब राजधानी भोपाल से महज 20 किमी की दूरी पर हो रहा है।





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पहाड़ के बिना मिट्टी का अस्तित्व नहीं





सवाल उठता है कि आखिर पहाड़ का मिट्टी से क्या संबंध? इसका जवाब बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी के अर्थ साइंस डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ. डीसी गुप्ता देते हैं। डॉ. गुप्ता के अनुसार पहाड़ के बिना मिट्टी का कोई अस्तित्व ही नहीं है। यदि पहाड़ खत्म हो गए तो धीरे—धीरे मिट्टी के पोषक तत्व खत्म होंगे और उसके बाद मिट्टी के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा हो जाएगा। डॉ. गुप्ता ने बताया कि ​पहाड़ के क्षरण से ही मिट्टी बनती है, मिट्टी में जो पोषक तत्व हैं, वह भी बारिश के समय या नदियों के माध्यम से पहाड़ से बहते हुए ही मिनरल के रूप में मिले है। डॉ. डीसी गुप्ता ने पहाड़ों पर हो रहे अंधाधुंध खनन पर चिंता भी व्यक्त की।







पहले समझिए क्या है टीएन गोधावर्मन रिपोर्ट





अचारपुरा के पीछे मस्तीपुरा इलाके में जिस पहाड़ पर दिन रात खुदाई चल रही है, दरअसल पहाड़ का वह क्षेत्र निजी भूमि के अंतर्गत आता है जो भोपाल के किसी लक्ष्मीनारायण के नाम पर दर्ज है। पहाड़ पर लगे हजारों पेड़ों को सरकारी रिकॉर्ड में जंगल नहीं कहा गया है, फिर सवाल उठता है कि हम उसे जंगल क्यों कह रहे हैं। इसका कारण टीएन गोधावर्मन डब्ल्यूटी 202/1996 के आदेश में देखने को मिलता है। पर्यावरणविद् राशिद नूर खान का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गए इसी आदेश की बदौलत आज उत्तराखंड में प्राकृतिक संसाधन बचे हुए हैं। क्योंकि उत्तराखंड में 50 फीसदी से अधिक प्राकृतिक संसाधन तो निजी भूमि पर ही है। राशिद नूर खान ने बताया कि टीएन गोधावर्मन डब्ल्यूटी 202/12—12—1996 के मामले में आए आदेश में यह बात स्पष्ट हो गई थी कि यदि कोई जगह देखने में जंगल लगे, एक हेक्टेयर में 200 पेड़ लगे हो और 10 हेक्टेयर पर पेच दिखाई देता हो उसे डीम्ड फॉरेस्ट ही माना जाएगा। ऐसी जगह पर निर्माण या कोई भी कार्य करने के लिए पर्यावरण मंत्रालय की सशर्त अनुमति लेना जरूरी होगी, भले ही उस जमीन का टाइटल या स्वामी प्राइवेट या निजी क्यों न हो। अचारपुरा की पहाड़ी के मामले में गोधावर्मन का यह तथ्य पूरी तरह से फिट बैठता है।







पहाड़ खोदने से पहले हजारों पेड़ों की दी बलि!





अचारपुरा में जिस जगह पहाड़ी खोदी जा रही है, वहां टीएन गोधावर्मन रिपोर्ट के अनुसार जंगल था। द सूत्र के पास इसे लेकर दो तथ्य है। पहला करीब 3 साल पुरानी उसी साइट की फोटो जहां आज खुदाई की जा रही है। 2019 में इस जगह पेड़ थे। वहीं आज जिस जगह आधी पहाड़ी पर माइनिंग हो रही है, बची आधी पहाड़ी पर आज भी बड़ी संख्या में पेड़ देखे जा सकते हैं, जो इस बात की ओर इशारा करते हैं कि शेष आधी पहाड़ी जहां माइनिंग हो रही है, वहां पर भी पेड़ थे। जाहिर सी बात है पहाड़ को खोदने के लिए इन पेड़ों को काटा गया।







मास्टर प्लान—2031 में नगर वन के रूप में चिन्हित





भोपाल के मास्टर प्लान—2031 में अचारपुरा के पीछे की ओर कुछ हिस्से को जी—5 कैटेगिरी में रखा है, इसे डार्क ग्रीन कलर से चिन्हित किया है। जी—5 कैटेगिरी का अर्थ है कि इस जगह को नगर वन या वनीकरण के रूप में वर्गीकृत किया गया है। एनजीटी के वरिष्ठ वकील धर्मवीर शर्मा ने कहा कि यह वही इलाका है जो पहाड़ी क्षेत्र में आता है। क्योंकि इतनी ग्रीनरी यहां कहीं और नही हैं। गूगल मैप में भी इसे देखा जा सकता है। ऐसे में यहां पेड़ काटकर पहाड़ खोदने की परमीशन देना ही गलत है। धर्मवीर शर्मा ने कहा कि शासन को तत्काल इस खदान पर रोक लगानी चाहिए, यदि ऐसा नहीं होता है तो वह इस मामले को एनजीटी लेकर जाएंगे।







अनुमति की शर्तों का भी नहीं किया पालन





2020 में जब माइनिंग के लिए स्टेट इंवायरमेंट इंपेक्ट असेस्मेंट अथॉरिटी एमपी से जब अनुमति ली तो उसमें स्टेंडर्ड कंडीशन के बिंदु क्रमांक 13 में यह बात स्पष्ट की गई थी कि माइनिंग के लिए खुूद से कोई पेड़ नहीं गिराया जाएगा, यदि ऐसे करना भी पड़े तो इसके लिए विशेष अनुमति की आवश्यकता होगी। जबकि इस केस में पूरा का पूरा जंगल ही साफ कर दिया गया। इसके अलावा स्पेशिफिक कंडीशन के बिंदु क्रमांक 5 तीन रो में प्लांटेशन, बिंदु क्रमांक 6 पांच हजार पौधों का रोपण जैसे अन्य नियमों को भी दरकिनार किया गया।







पहाड़ को पूरी तरह से खोदना कितना सही?





जब माइनिंग के लिए इंवायरमेंट क्लीयरेंस दिया गया तब स्टेंडर्ड कंडीशन के बिंदु क्रमांक 31 में 2 मीटर गहराई से अधिक गड्ढा नहीं खोदने की बात का जिक्र है। वहीं स्पेशिफिक कंडीशन के बिंदु क्रमांक 4 में भी स्पष्ट किया गया है कि यदि किसी पहाड़ी को एक बार किसी कार्य या किसी प्रोजेक्ट के तहत एक बार काट दिया जाता है तो उस पहाड़ी को दोबारा नहीं काटा जा सकता। यह नियम पहाड़ के संरक्षण के लिए बनाया गया, ताकि पहाड़ का अस्तित्व पूरी तरह ही खत्म न हो जाए। वहीं यदि अचारपुरा के पहाड़ की बात करें तो 2019 में इसे पहले ही माइनिंग के नाम पर काटा जा चुका है। राशिद नूर खान की शिकायत के बाद कुछ समय तक यहां माइनिंग बंद रही, पर अब दोबारा शुरू हो गई है।







लैंड यूज चेंज नहीं कर किया लाखों के राजस्व का नुकसान...





अचारपुरा के जिस खसरे 136 एस में यह पहाड़ी है, उसका लैंड यूज राजस्व विभाग ने कृषि है। जमीन का उपयोग कृषि होने से इस पर लगने वाला टैक्स महज 84 रूपए 40 पैसे प्रति वर्ष है और वर्तमान में इस खसरे का टैक्स बकाया 379 रूपए 78 पैसे है। जबकि नियमानुसार यदि यहां कृषि के अलावा कुछ भी हो रहा है तो उस मद के अनुसार लैंड यूज चेंज कराकर टैक्स भरना चाहिए। जानकारों के मुताबिक माइनिंग में यह सबसे अधिक है। भूमि स्वामी लक्ष्मीनारायण यहां 4 खदानों को चलाकर लाखों करोड़ों का मुनाफा तो कमा रहे हैं, लेकिन लैंड यूज चेंज नहीं कराकर शासन को लाखों रूपए के टैक्स का नुकसान भी कर रहे हैं।







माइनिंग इंस्पेक्टर का गैर जिम्मेदाराना रवैया





माइनिंग इंस्पेक्टर प्रभा शर्मा का पूरे मामले में गैर जिम्मेदाराना रवैया देखने को मिला। उन्होने इस बात को तो स्वीकार किया कि 4 खदानों की परमीशन दी गई है, लेकिन जब पेड़ों की कटाई और परमीशन की शर्तों पर बात की तो वह गोलमोल जवाब देने लगी। द सूत्र ने जब टीएन गोधावर्मन की रिपोर्ट का हवाला दिया तो उन्होंने यह कहा कि आप हमें रिपोर्ट लाकर दिखा देना। जब उनसे पूछा गया कि यदि सबकुछ सही था तो शिकायत होने पर पहले इन खदानों को बंद क्यों किया गया था। इस पर प्रभा शर्मा ने सिर्फ इतना कहा कि वह उस समय नहीं थी, इसलिए उन्हें इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है।



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