ग्वालियर-चंबल के 38 रणबांकुरों ने दी थी शहादत, पाक सेना से छीने हथियार आज भी सुरक्षित

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Vijay Choudhary
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ग्वालियर-चंबल के 38 रणबांकुरों ने दी थी शहादत, पाक सेना से छीने हथियार आज भी सुरक्षित

देव श्रीमाली, GWALIOR. आज पूरा देश विजय दिवस मना रहा है। यह भारत की पाकिस्तान पर विजय का 51 वां साल है। इस मौके पर ग्वालियर-चंबल समेत पूरे देश में कई कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है। इस युद्ध से जुड़ी कई यादें अभी भी न केवल ग्वालियर में बल्कि चंबल अंचल के गांव-गांव में सुरक्षित हैं। इस विजययुद्ध के दौरान जांबाज भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सैनिकों से हथियार छीने थे, जो ग्वालियर में बने मुरार केंट एरिया में सुरक्षित रखे हैं।



मुरार की ब्रिगेड ने कब्जा कर छीन लिए थे पाक सेना से हथियार



भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत की शानदार जीत में वेरा भूमि चंबल के सैनिकों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। पूर्व सैनिको संगठनों से जुड़े लोग बताते हैं कि पाकिस्तान से युद्ध के समय भारतीय सैनिकों में जबरदस्त जोश था। इस लड़ाई में मुरार से सैनिकों की तीन ब्रिगेड गईं थी और युद्ध में जबरदस्त वीरता का प्रदर्शन किया था। इस ब्रिगेड ने पश्चिम पाकिस्तान (जो पाकिस्तान आज है) के चक अमरू,मरियाल, और अटल गढ़ किले जैसे महत्वपूर्ण इलाकों से पाक सैनिकों को खदेड़कर और मारकर कब्जा कर लिया था। इनकी इमारतों पर विजयी पताका फहरा दी थी। पाकिस्तान सेना से छीने गए हथियार आज भी मुरार की सैन्य छावनी में हमारीं सेना की वीरता की कहानी कहने के लिए आज भी सुरक्षित रखे हैं। 



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चंबल के रणबांकुरे थे पूर्वी पाकिस्तान के फ्रंट पर



ग्वालियर के अलावा चंबल-अंचल के बड़ी संख्या में युवा सैनिकों ने इस युद्ध मे हिस्सेदारी की थी। रिटायर सूबेदार हनुमत सिंह बताते हैं कि चंबल का शायद ही कोई ऐसा कोई बड़ा गांव हो जिसका कोई न कोई लड़का उस समय युद्ध पर ना गया हो। चंबल के युवाओं को खासतौर पर निर्णायक स्थल यानी पूर्वी पाकिस्तान में लगाया गया था। इसे अब बंग्लादेश के नाम से जाना जाता है। यहां चंबल के युवा सैनिकों ने पाकिस्तानी सेना की कमर तोड़ने के लिए सबसे पहले स्टेशनों पर कब्जा करके पटरियां उखाड़ दीं थी। मुरार केंट के पास वीरता के 76 मेडल हैं। 



आज भी जेहन में जिंदा है पाकिस्तान पर विजय का अक्स



1971 में हुए भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध और उसमें भारतीय सेना के अपने अदम्य साहस और वीरता से फहराई गई विजय पताका के अक्स आज भी कई लोगों के जेहन में जिंदा है। इस युद्ध में फ्रंट पर रहे रिटायर हवलदार राम बहादुर सिंह भदौरिया कहते हैं कि मैंने 1970 में सेना ज्वाइन की और 71 में युद्ध शुरू हो गया। हमारीं टुकड़ी युद्ध में धर्मपुर सीमा से पाकिस्तान में घुसे थी। हम 7 राजपूताना राइफल्स में तैनात थे। हमारीं ब्रिगेड ने पाकिस्तानी सैनिकों को मारते, खदेड़ते हुए अपनी विजय यात्रा जारी रखी थी और पाकिस्तान में ढाई सौ किलोमीटर अंदर घुसकर उसकी कोमिला पहाड़ी और फिर पूरे शहर पर कब्जा कर लिया था। 



सबसे ज्यादा शहीद जवान भिंड के थे



पाकिस्तान के खिलाफ विजयी युद्ध में चंबल के युवाओं की वीरता के किस्से सुनाने के लिए इसमें शहीद हुए सैनिकों के स्मारक आज भी गांव-गांव में मौजूद है। इनसे प्रेरणा लेकर ही आज भी बड़ी संख्या में युवा फौज में भर्ती होने जाते हैं। भारत पाक युद्ध में मुरार की तीन ब्रिगेड के अलावा चंबल के लगभग 80 सैनिक और अफसर शामिल हुए थे जिनमें से 38 ने देश के लिए अपनी शहादत दी थी। इनमें सबसे ज्यादा 22 जवान भिण्ड जिले के थे।



आज भी सीमा की रक्षा पर तैनात हैं चम्बल के बेटे



चम्बल अंचल डकैतों के लिए भले ही कुख्यात हो लेकिन सच ये है कि देश की सीमाओं की रक्षा हो या आंतरिक सुरक्षा चंबल के युवा आज भी इसमें अपना महती योगदान देते हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार वर्तमान में चंबल अंचल के लगभग 65 हजार से ज्यादा युवा भारतीय सेना, वायुसेना, नेवी में सेवारत है जबकि, बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी,समेत कई पैरा मिलिट्री फोर्स में 15 हजार जवान कार्यरत हैं।



शहीदों के पांच सौ परिवार



ग्वालियर चम्बल संभाग में सीमा की रक्षा में अपना प्राणोत्सर्ग करने वालों की बड़ी संख्या है। अकेले ग्वालियर शहर में ही ढाई सौ से ज्यादा शहीदों के परिवार रहते हैं जबकि भिंड, मुरैना, दतिया और और श्योपुर में भी इतने ही परिवार निवास करते हैं जिनके परिजनों ने देश की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया है। 



विजय दिवस पर होते हैं कई आयोजन



हर साल विजय दिवस पर ग्वालियर में कई आयोजन होते हैं। इस बार भी यहां 2 दिवसीय आयोजन हो रहे हैं। इसके तहत शहीदों को सेना बैंड और शस्त्रों के साथ श्रद्धांजलि दी जाएगी, सेना ने 2 दिवसीय प्रदर्शनी लगाई है, शहीदों के सम्मान में मैराथन होगी और बीएसएफ एकेडमी टेकनपुर में कार्यक्रमों का आयोजन होगा।


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