Manoj Jain, Bhind. यह सुंदर सा दिखने वाला पक्षी इंडियन स्किमर है, जिसे पनचिरा भी कहते हैं। यह पानी को चीरते हुए शिकार करता है, जो इसकी विशेषता है। इसकी चोंच की बनावट ही कुछ इस प्रकार से होती है कि जिसका निचला हिस्सा बड़ा और ऊपरी हिस्सा छोटा होता है। जिससे यह पानी की सतह पर पानी को चीरते हुए शिकार करता है।
लगातार घट रही संख्या
दुनिया मे लगभग 4000-6700 इंडियन स्किमर्स बचे हैं। हाल ही में स्टेट ऑफ इंडियाज बर्ड्स 2020 रिपोर्ट में इंडियन स्किमर्स को लेकर देश में अधिक संरक्षण चिंता व्यक्त की गई। इकोसिस्टम में इनकी घटती संख्या के बावजूद ऐसा लगता है की इन को लेकर कोई गंभीरता नहीं है।
चंबल नदी के टापूओं में देते हैं बच्चे
मार्च से इंडियन स्किमर्स चंबल की रेत में पानी के बीच में बने हुए टापुओं पर अपने घोंसले बनाते हैं। जिनमें मई के महीने में बच्चे हो जाते हैं और मई के आखिरी हफ्ते तक बच्चे उड़ने लग जाते हैं। इस साल भी चंबल में लगभग 50 स्थानों पर इंडियन स्किमर्स ने घोंसले बनाए थे। एसडीओ चंबल सेंचुरी प्रतीक दुबे के अनुसार, लगभग 50 स्थानों पर इंडियन स्किमर्स के घोसले थे। जिसमें एक स्थान पर अनुमानित 20 अंडे रहे होंगे।
प्रशासन की अनदेखी
यदि टाइगर के 10 बच्चे भी किसी कारण से मारे जाते हैं, तो पूरी दुनिया में हड़कंप मच जाता है लेकिन चंबल में लगभग एक हजार के करीब इंडियन स्किमर के बच्चे मारे गए हैं, और किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ा। सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि वाइल्डलाइफ प्रोटक्शन एक्ट 1972 हैबिटेट को नष्ट करने या कोआर्डिनेशन नहीं होने पर किसी भी गंभीर घटना के बारे में कुछ नहीं कहता है। इंडियन स्किमर्स को गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजाति माना जाता है। उसके बाद भी इनके संरक्षण को लेकर प्रशासन की तरफ से कोई पहल नहीं की गई है। चंबल में बढ़ते हुए जल स्तर को लेकर कोई कोआर्डिनेशन नहीं है यह बात जिम्मेदार अधिकारी भी स्वीकारते हैं।
सख्त कानून लाने की जरूरत
कोटा बैराज और वाइल्ड लाइफ अधिकारियों के बीच तालमेल नहीं होने पर अहमदाबाद के वाइल्डलाइफ एक्टिविस्ट मनीष वैद का कहना है कि इंडियन स्कीमर चंबल में ही मिलते हैं और इनके संरक्षण के लिए अप्रैल-मई में पानी छोड़ते समय बहुत कोआर्डिनेशन की जरूरत है। कटक उड़ीसा के बैलेंस एक्टिविस्ट संदीप मिश्रा का कहना है कि कोआर्डिनेशन ना होने पर वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं किए गए हैं जबकि यह बहुत आवश्यक है, इस प्रकार का प्रावधान किया जाना चाहिए।
सवालों के घेरे में जिम्मेदार
सवाल यह है कि वन्य जीव संरक्षण के लिए टैक्सपेयर का अरबों रुपए खर्च किया जाता है और जरा सी लापरवाही में हर साल वन्य जीवन को गंभीर क्षति पहुंचती है। आखिर इसका जिम्मेदार कौन है ? भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने 2 मार्च 2020 को अधिसूचना जारी कर राष्ट्रीय चंबल अभ्यारण्य को ईको सेंसेटिव जोन घोषित कर दिया था। इसके तहत केंद्र सरकार ने मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में राष्ट्रीय चंबल अभ्यारण्य के आसपास के क्षेत्र को शून्य से 2 किलोमीटर के दायरे में ईको सेंसेटिव जोन घोषित किया है। फिर भी कोटा बैराज डैम और मध्य प्रदेश वन विभाग के बीच तालमेल ना होना पर्यावरण की दृष्टि से गंभीर खतरे का विषय है।