क्या अब मध्य प्रदेश के लिए अपरिहार्य है ब्रांड शिवराज!

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Jayram Shukla
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क्या अब मध्य प्रदेश के लिए अपरिहार्य है ब्रांड शिवराज!

BHOPAL. मकर संक्रांति की खिचड़ी के मेले के पहले इंदौर में प्रवासी भारतीय सम्मेलन और विश्व निवेशक समागम (ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट) की मेले जैसी चहलपहल रही। बतौर अखबारनवीस हम भी उस मेले में शामिल हुए। इंदौर अनूठा शहर है, सभी को अपनी बांहों में भरने के लिए हर वक्त बेताब रहता है। ऐसे साफसुथरे जीवंत शहर और यहां के लोगों के आतिथ्यभाव से प्रवासी भारतीयजन प्रफुल्लित दिखे। सीएम शिवराज सिंह चौहान की भावप्रवणता का कहना ही क्या। जिसने उन्हें देखा-सुना वो मुदित और मोहित हुए बिना नहीं रहा। सीएम चौहान की विशेषता ही यही कि वे हर काम दिल से और डूबकर करते हैं। कुछ ऊंचनीच हुआ तो उसे भी विनम्रता से स्वीकार करने में पीछे नहीं हटते। अब तक मेरी समझ में उनके लिए पद कभी प्रतिष्ठा का विषय नहीं रहा। 





भोपाल को इन्टलैक्चुअल कैपिटल बनाने का आह्वान





प्रवासी और निवेशक महाकुंभ से निकले तो अब सामने जी-20 का आयोजन मिला। समूह के देशों के प्रतिनिधियों के स्वागत के लगे हाथ भोपाल को इन्टलैक्चुअल कैपिटल बनाने का आह्वान कर दिया। इसके बाद पीएम मोदी का ड्रीम इवेंट 'खेलोइंडिया' भी भोपाल में शुरू होने जा रहा है। आगे ओंकारेश्वर में आदिशंकराचार्य की गगनस्पर्शी प्रतिमा की प्राणप्रतिष्ठा भी होनी है और उज्जैन में भव्य महाकाल लोक के दूसरे चरण का काम चल ही रहा है। कुल मिलाकर फिलहाल पार्टी के भीतर और बाहर के उन जलकटुओं को निराशा ही हाथ लगने वाली है जो ये उम्मीद सजाए बैठे हैं कि मध्यप्रदेश में भी चुनावपूर्व 'गुजरात मॉडल'  लागू होगा और श्री चौहान समेत सत्ता के कई दिग्गज भूतपूर्व हो जाएंगे। 



 





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शिवराज सिंह अबूझ और कलाकौशल संपन्न व्यक्ति 





राजनीति का कोई सांचा नहीं होता, बल्कि सांचा ही राजनीति के मुताबिक ढ़ल जाता है। और यदि इस सियासत के कुम्हार की भूमिका में शिवराज सिंह जैसे अबूझ और कलाकौशल संपन्न व्यक्ति हो तो सामने वाले तुर्रमखांओं के पास सिर्फ कयास ही बचता है। और ऐसे कयासों को डिफ्यूज करने में शिवराज सिंह चौहान को महारत हासिल है, यकीन न हो तो बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के पहले दिन दिल्ली में दिए इकोनामिक टाइम्स के इन्टरव्यू को जूम करके पढ़ लें।





ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट की देश-दुनिया में तारीफ





बहरहाल मैं बात इंदौर की ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट का कर रहा था। वैसे नाम तो हर बार ग्लोबल ही रहता था लेकिन इस बार विशाल इलेक्ट्रॉनिक पंडाल में सजे स्टॉल्स को निहारते हुए हर किसी को कहना पड़ा कि ये वाकई ग्लोबल है। पंडाल में जापान, कनाडा, आस्ट्रेलिया से लेकर यूरोपियन यूनियन के देशों के स्टॉल्स थे ही, अफ्रीकी देशों की खास रुचि देखने को मिली। सरकारी प्रेसनोट से अपडेट हुआ कि 84 देशों की बिजनेस डेलीगेट की सहभागिता के साथ 10 देश पार्टनर कंट्री थे, 35 देशों के दूतावासों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। लगभग 15.47 लाख करोड़ रुपए के निवेश पर चर्चा हुई। इससे पहले की समिट्स तक एमओयू (मोड आफ अंडरस्टैंडिंग) कहा जाता था। इस बार शब्दावली बदलकर 'इन्टेशन आफ इनवेस्टमेंट' हो गई। यानी की पहले उद्योग लगाने की सहमति के आधार पर करार होते थे, इस मर्तबा निवेश जानने की पैमाइश इरादा या संकल्प रखी गई। 





2007 में शुरू हुआ था इनवेस्टर्स समिट्स





इस तरह की इनवेस्टर्स समिट्स करने का विचार 2005 के वायब्रेंट गुजरात से मिला था। मध्यप्रदेश में ऐसा आयोजन 2007 में इसी इंदौर से शुरू हुआ। दो या तीन समिट खजुराहो में भी हुई। कुछेक को छोड़कर मैं प्रायः इस तरह की प्रत्येक ग्लोबल समिट का चक्षुदर्शी रहा। पहली ग्लोबल समिट में उद्योगपतियों के सम्मुख मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भाषण में कातरता कोई भी महसूस कर सकता था। 





उद्योगपति पूरी ठसक के साथ आते थे और सरकार के मंत्री अफसर उनकी मान मनौवल की मुद्रा में रहते थे। कारण साफ था। मध्यप्रदेश 2004 के पहले तक की उस बदहाली से उबरने की दिशा में कदम आगे बढ़ा रहा था। ऐसी बदहाली जहां गड्ढों में सड़क थी और रात में लालटेन जुगनुओं की भांति टिमटिमाने लगे थे। 





पहले उद्योगपति मप्र का उड़ाते थे मजाक





ऐसे में किसी उद्योगपति से मध्यप्रदेश में धन लगाने की बात करना वैसे ही था जैसे कि गरीब बाप अपनी बेटी के सगुन की बात करते हुए सहमें और सकुचाए। इस दशक के निवेशक सम्मेलनों में उद्योगपति मंच से ही मध्यप्रदेश का मजाक उड़ाने में भी संकोच नहीं करते थे, मुख्यमंत्री चौहान उनके मंत्री साथी और अधिकारी मनमसोस कर रह जाते थे। 





शिवराज ने प्रदेश की वैश्विक-राष्ट्रीय उपलब्धियों को ठोस तरीके से सामने रखा





लेकिन इस बार मामला उल्टा दिखा। शिवराज सिंह चौहान पूरे आत्मविश्वास और जोश के साथ मध्यप्रदेश की वैश्विक और राष्ट्रीय उपलब्धियों को ठोस तरीके से सामने रखकर उन्हें चकित कर रहे थे। वे बता रहे थे कि बिजली के मामले में हम सरप्लस स्टेट हैं। हाइवेज और सड़कों की अधोसंरचना विश्वस्तरीय है, इस मामले में हम अमेरिका-इंग्लैंड से कमतर नहीं। हमारे पास लैन्डबैंक है, अथाह जलसंग्रहण है, सस्ता और सुलभ मैनपॉवर है, सरकारी प्रक्रियागत पेंचीदगियों को सरल बनाने जा रहे हैं। वे वह सभी ठोस आधार गिना रहे थे कि इसलिए मध्यप्रदेश में निवेश करना हर दृष्टि से लाभ का सौदा है। इसबार विनीत और कृतज्ञता का भाव निवेशक उद्योगपतियों में था कि उन्हें इस समिट में महत्व के साथ पूछा गया।





अब तक की समिट्स में कितने लाख करोड़ रुपए के निवेश के करार





अबतक की समिट्स में कितने लाख करोड़ रुपए के निवेश के करार हुए, उसके एवज में कितना यथार्थ के धरातल पर उतरा, कितने रोजगार की बात की गई थी कितनों को रोजगार मिला, यह आंकड़ों की मगजमारी की बात है। आंकड़े बेजान और नीरस होते हैं, मुश्किल से ही वे सर्वांगतः धरती पर उतरते हैं। यह सरकार भी जानती है और उद्योगपति भी। फिर भी ऐसे उपक्रम उम्मीद जगाए रखने का काम तो करते ही हैं भले ही एक रुपए के एवज में पंद्रह पैसे काम के निकलें। आखिर हम उस देश के हैं कि तमंचा रखने की ख्वाहिश के लिए तोप की बात करते हैं। 





कई उद्योगपति व्यवसायिक सम्मेलनों में तमाशबीन बनकर आते हैं 





उद्योगपति ऐसी समिट में करार या व्यक्त संकल्प के मुताबिक निवेश करें ही ऐसी कोई कानूनी बाध्यता भी तो नहीं। उदाहरण बताते हैं कि बहुतेरे उद्योगपति ऐसे व्यवसायिक सम्मेलनों में तमाशबीन बनकर भी आते हैं। बहुतों की ऐसी पेंचीदा और कठिन मांग होती है जिसे मानना संभव भी नहीं होता। मुझे याद है कि एक समिट में बाबा रामदेव ने फूड प्रोसेसिंग के लिए जमीन चाही, उन्हें जितनी जमीन दी गई उसका यह कहकर मजाक उड़ाया कि इतने में तो हम ढंग से कबड्डी तक नहीं खेल सकते। 





ऊंची पकड़ वाले बाबा ने एक टका निवेश नहीं किया





ऊंची पकड़ वाले बाबा को उनके मनमुताबिक जमीन मिल गई पर पांच साल बीत गए एक टका निवेश नहीं किया ऐसे कई मसखरे निवेशक हैं जो मंच पर बड़ी बात कह जाते हैं और फिर ठनठन गोपाल निकलते हैं। दो उद्योगपतियों वीडियोकॉन और अभिजीत इन्डस्ट्रीज ने 8 साल पहले रीवा में 15 हजार करोड़ के निवेश का करार किया था। वनवासी अंचल में तीन सौ एकड़ से ज्यादा जमीन अधिग्रहित कर ली। इनका धंधा बैठ गया। वीडियोकॉन वाले जेल में हैं और अभिजीत साहब का कोई अता-पता नहीं, क्या करिएगा। सरकारी अधिकारी पम्प एन्ड शो के लिए बिना ठोके बजाए, बिना आर्थिक हैसियत जाने ऐसे उद्योगपतियों को न्योता देते हैं जो सिर्फ आंकड़ों के अंक बढ़ाने के काम आते हैं। अब तक की समिट का एक सोशल ऑडिट भी होना चाहिए कि किन उद्योगपतियों ने करार किए थे और फिर मुकर गए। उनकी भी जवाबदेही तय होनी चाहिए।





इस बार के समिट में बदलाव रहा





इस बार के इन्दौर समिट में काफी कुछ बदलाव रहा। एमओयू  इन्टेशन आफ इनवेस्टमेंट में बदल गया है। 15.47 लाख करोड़ के जो संकल्प हुए हैं उम्मीद करते हैं कि उनका हश्र पिछले समिट्स जैसा नहीं होगा। 30 प्रतिशत निवेश भी जमीन पर उतरा संतोषजनक बात होगी। इस बार शिवराज सिंह चौहान की साख सीएम से ज्यादा एक सीईओ की है। प्रवासी सम्मेलन और इस समिट के बाद वे अब वैश्विक पैमाने पर मध्यप्रदेश के 'ब्रांड शिवराज हैं'। जिनकी अब अपनी ब्रांड वैल्यू है।





शिवराज सिंह चौहान की प्रदेश के नेताओं से अलग 'ब्रांड-वैल्यू'





शिवराज सिंह चौहान की यही  'ब्रांड-वैल्यू' उन्हें प्रदेश के अन्य नेताओं से अलग खड़ा करती है। उनकी विकल्पहीनता केन्द्रीय नेतृत्व भी जानता है। गुजरात चुनाव के बाद से प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की सुगबुगाहट उठी है। 2 दिन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के मंथन से निकलने वाले नवनीत को लेकर मीडिया को सबसे ज्यादा उत्सुकता है। लेकिन मेरा अनुमान हैं कि इस गर्माहट भरी उत्सुकता में शीतलहर के मावठे ही गिरेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा तीनों के संकेत इसी ओर इशारा करते हैं कि मध्यप्रदेश की चुनावी जंग के सेनापति शिवराज सिंह चौहान ही होंगे। 





शिवराज की जगह किसी और को बागडोर देना आसान नहीं





जब कमलनाथ की कांग्रेस सरकार पलटी थी तब ज्यादा आसान था कि शिवराज की जगह किसी दूसरे को प्रदेश की बागडोर सौंप दी जाती। अब आसान नहीं है। शिवराज अल्पविराम के बाद विराट कोहली सी धुआंधार पारी खेल रहे हैं भला फुलफार्म में चल रहे किसी बैट्समैन को पवेलियन में बैठाने की बात कौन कप्तान या प्रबंधक सोचेगा। क्रिकेटर कोहली की भांति पॉलटीशियन शिवराज की भी अब विराट 'ब्रांड वैल्यू' है और यही उन्हें मध्यप्रदेश में अपरिहार्य बनाती है।



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