BHOPAL. साल 2023 मध्यप्रदेश के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण साल है। इस साल के आखिर में प्रदेश की राजनीति की दशा और दिशा तय होगी। प्रदेश में कमल खिलेगा या कमलनाथ की वापसी होगी, ये इस साल के आखिर में पता चलेगा। इससे पहले पल-पल मध्यप्रदेश में राजनीतिक घटनाक्रम बदल रहे हैं। चुनावी अखाड़ा सजने से पहले राजनीतिक पहलवान अपने-अपने दांव-पेंच आजमा रहे हैं। कोई विपक्ष से सवाल पूछ रहा है, कोई आरोप लगा रहा है, किसी ने राजधानी में भीड़ जुटाकर भूख हड़ताल की तो कोई शक्ति प्रदर्शन कर एक महीने बाद फिर वापस आने का दावा कर रहा है। आखिर मध्यप्रदेश में बीजेपी-कांग्रेस के अलावा करणी सेना और भीम आर्मी के हुए प्रदर्शनों के क्या है मायने, और इनका क्या होगा असर,पढ़िए ये रिपोर्ट...
दोनों आंदोलन एक-दूसरे के विरोध का परिणाम!
चुनावी साल की शुरुआत में प्रदेश में जातिगत और सामाजिक आंदोलन सत्ताधारी दल और विपक्ष की मुसीबतें बढ़ा रखी है। 8 जनवरी को करणी सेना ने अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन किया। तो वहीं इस आंदोलन के एक महीने बाद भीम आर्मी और आजाद समाज पार्टी ने भी 12 फरवरी को शक्ति प्रदर्शन किया। आजाद समाज पार्टी अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले 5 यात्रा और निकालने और साथ ही सत्ता परिवर्तन तक संघर्ष जारी रखने का ऐलान भी कर दिया। आजाद के इस आंदोन को आदिवासी वर्ग के साथ ही ओबीसी महासभा का भी समर्थन मिला। भीम आर्मी के आंदोलन के पीछे की बड़ी वजह करणी सेना के आंदोलन में आरक्षण में संशोधन और एट्रोसिटी एक्ट के नियमों में बदलाव की मांगों को माना जा रहा है। जनवरी में हुए करणी सेना के बड़े आंदोलन के साथ ही भीम आर्मी ने भी बड़े शक्ति प्रदर्शन की तैयारी शुरू कर दी थी।
ये भी पढ़ें...
मांगे पूरी नहीं हुई तो बीजेपी को सबक सिखाएंगे: करणी सेना
साल की शुरुआत में करणी सेना प्रमुख जीवन सिंह शेरपुर ने 5 लाख लोगों की भीड़ जुटाकर राजधानी को थाम दिया था, सरकार के सामने अपनी मांग रखकर भूख हड़ताल पर बैठ गए थे। आंदोलन के बाद सरकार ने लिखित में आश्वासन दिया था। अफसरों की कमेटी बनाकर दो महीने में कार्रवाई करने का भरोसा दिया था। जिसका एक महीना निकल चुका है। शेरपुर का कहना है कि अब तक कुछ नहीं हुआ है, उल्टा हमारे कार्यकर्ताओं पर लगातार केस दर्ज किए जा रहे हैं। अगर हमारे किसी कार्यकर्ता से कोई गलती भी हुई थी तो हमने सबने उसके लिए सार्वजनिक तौर पर माफी भी मांगी थी। मुख्यमंत्री जी ने भी ट्वीट कर सबको माफ करने की बात कही थी, लेकिन सीएम के कहने और करने में फर्क नजर आ रहा है। हमारे कई साथियों पर केस लादे गए हैं, एक साथी जेल में बंद हैं। जैसे ही एक मामले में जमानत होती है, दूसरे थाने में केस दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया जाता है। शेरपुर का कहना है कि सरकार ने हमारी बात नहीं सुनी तो हम फिर बड़ा आंदोलन करेंगे। राज्य सरकार ने अगर हमारी मांगों पर जल्दी फैसला नहीं लिया तो आने वाले चुनाव में हम बीजेपी को बड़ा सबक सिखाएंगे।
प्रदेश में बनाएंगे आदिवासी मुख्यमंत्री: आजाद समाज पार्टी
आजाद समाज पार्टी मध्यप्रदेश के अध्यक्ष सुनील आस्तेय ने कहा कि प्रदेश दलितों के खिलाफ अपराध के मामले बढ़े हैं। पिछले साल प्रदेशभर में यात्रा निकालने की रणनीति बनाई थी। जिसकी अनुमति हमें नहीं दी गई थी। कई कोशिशों के बाद 12 फरवरी को भोपाल में आंदोलन की रुपरेखा फाइनल हुई। हमने तय किया कि हम आरक्षण के समर्थन में लड़ेंगे और प्रदेशभर में विधानसभा से लेकर संभाग लेवल तक प्रचार किया। सुनील आस्तेय ने कहा कि 'करणी सेना के आंदोलन में तीन हजार पुलिस के जवान सुरक्षा में लगे थे, लेकिन भीम आर्मी के आंदोलन में पुलिस नजर नहीं आई'। इसे लेकर पुलिस कमिश्नर से भी मुलाकात करेंगे। हमारी मांगें एक महीने के अंदर नहीं मानी गई तो हम फिर इससे बड़ा आंदोलन करेंगे। अगर सरकार हमारी बात नहीं सुनती है, तो जयस, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, ओबीसी महासभा के साथ मिलकर आदिवासी मुख्यमंत्री बनाएंगे। दलित, ओबीसी,अल्पसंख्यक वर्ग के तीन डिप्टी सीएम बनाएंगे।
इन आंदोलनों से किसे फायदा किसे नुकसान?
करणी सेना के आंदोलन के बाद बीजेपी मुश्किल में दिखाई दे रही थी। इस आंदोलन को राजपूत और सवर्णों के अधिकतर संगठनों का साथ मिलने से बीजेपी में चिंता और बढ़ गई थी। लेकिन करणी सेना के इस आंदोलन में सरकार के खिलाफ उठे विरोध के स्वरों के अलावा हुई आपत्तिजनक नारेबाजी के बाद मामला पलट गया। अब केस दर्ज होने के बाद करणी सेना परिवार के कार्यकर्ताओं को खुद को कानूनी पेंच से बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हालांकि करणी सेना के कार्यकर्ताओं पर हुई कार्रवाई से मालवा, निमाड में बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। वहीं भीम आर्मी, आजाद समाज पार्टी के आंदोलन से बीजेपी को थोड़ा फायदा हो सकता है। राजधानी के भेल दशहरा मैदान पर हुए इस आंदोलन में दलित, आदिवासी समाज के लोग बड़ी संख्या में जुटे थे। इन वर्गों को कांग्रेस का मुख्य वोटर माना जाता है। ऐसे में यदि भीम आर्मी और आजाद समाज पार्टी ने चुनावी मैदान संभाला तो कांग्रेस को नुकसान हो सकता है।