BHOPAL. अपने शहरों और कस्बों के नाम बदलने के लिए चर्चित उत्तर प्रदेश के बाद अब मध्य प्रदेश में भी शहरों के नाम बदलने का सिलसिला जोर पकड़ रहा है। खासकर जिन शहरों, कस्बों, गांवों, मोहल्लों और अन्य सार्वजनिक जगहों के नाम मुगल या अंग्रेजों के समय की याद दिलाते हैं, उन्हें बदले जाने की मांग राजनीति से लेकर धार्मिक मंचों से भी बुलंद होने लगी है। इसमें नई कड़ी जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने भोपाल का नाम बदलकर भोजपाल करने की मांग उठाकर जोड़ी है।
सीएम शिवराज की प्रतिक्रिया से मुद्दा गरमाया
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की प्रतिक्रिया से भोपाल का नाम बदले जाने का मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है। उन्होंने मंगलवार (31 जनवरी) को रामभद्राचार्य जी से कहा कि इस बारे में प्रस्ताव भेजा जाएगा। आप जानते हैं कि अकेला मैं नहीं कर सकता।
आइए आपको बताते हैं कि किसी शहर या कस्बे का नाम बदलने की प्रक्रिया क्या है। इसमें कितना समय लगता है, मंजूरी कैसे मिलती है।
शहर का नाम बदलने के लिए ये प्रक्रिया जरूरी
किसी भी शहर या कस्बे का नाम बदलने की प्रक्रिया संबंधित शहर की नगर निगम या नगर पालिका परिषद के स्तर पर शुरू होती है। सबसे पहले शहर का नाम बदले जाने का प्रस्ताव परिषद की बैठक में रखा जाता है। प्रस्ताव मंजूर होने के बाद राज्य सरकार को भेजा जाता है। राज्य सरकार इसका परीक्षण कराने के बाद इसे कैबिनेट की बैठक में मंजूरी के लिए रखती है। कैबिनेट से प्रस्ताव पारित होने के बाद इसे विधानसभा की मंजूरी के लिए भेजा जाता है। इस पर विधानसभा की मुहर लगने के बाद शहर का नाम बदलने का प्रस्ताव केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजा जाता है। केंद्रीय गृह मंत्रालय अन्य संबंधित मंत्रालयों और विभागों से इस बारे में एनओसी लेता है। इसमें रेलवे, पोस्टल डिपार्टमेंट, सड़क परिवहन आदि मंत्रालय और अन्य विभाग शामिल होते हैं। इन सबकी एनओसी मिलने के बाद ही केंद्रीय गृह मंत्रालय राज्य सरकार को इसकी लिखित मंजूरी देता है। इसके बाद ही नाम बदलने का फैसला लागू होता है। सामान्य तौर पर इस प्रक्रिया में 6 महीने से 1 साल का समय लगता है।
1977 से उठ रही है भोपाल का नाम बदलने की मांग
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल का नाम बदले जाने की मांग बरसों से उठ रही है। भोपाल का नाम भोजपाल करने की मांग 1977 में सबसे पहले शहर के सामाजिक कार्यकर्ता भाई उद्धवदास मेहता ने सरकार के सामने उठाई थी। इस बारे में उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों को भी बकायदा लिखित ज्ञापन सौंपा था, लेकिन तब सरकार के स्तर पर उनकी मांग पर कोई ठोस प्रतिक्रिया सामने नहीं आई थी।
2011 में भी शिवराज ने किया था ऐलान लेकिन केंद्र से मंजूरी नहीं मिली
हाल ही में एक बार फिर भोपाल का नाम बदलने जाने की जगद्गुरु रामभद्राचार्य की मांग पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की प्रतिक्रिया इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही क्योंकि करीब 12 साल पहले यानी 28 फरवरी 2011 को वे खुद भी एक सार्वजनिक समारोह में इस बात का ऐलान कर चुके हैं। उन्होंने भोपाल के लाल परेड मैदान पर राजा भोज के राज्यारोहण कार्यक्रम में भोपाल का नाम भोजपाल करने की जरूरत पर जोर दिया था। उन्होंने कहा था कि भोपाल का प्राचीन नाम भोजपाल ही था। सरकार शहर का नाम बदलने के लिए प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजेगी। मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद राज्य सरकार ने इसका प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय ने प्रस्ताव खारिज कर दिया क्योंकि तब केंद्र में यूपीए की सरकार थी।
2014 में निगम परिषद में बीजेपी के पार्षद कम होने से खारिज हो गया था प्रस्ताव
2014 में केंद्र की सत्ता में एनडीए की मोदी सरकार आने के बाद भोपाल नगर निगम की परिषद की बैठक में तत्कालीन महापौर कृष्णा गौर की अगुवाई भोपाल का नाम भोजपाल करने का प्रस्ताव लाया गया, लेकिन परिषद में कांग्रेस पार्षदों की संख्या बीजेपी पार्षदों की तुलना में ज्यादा होने के कारण प्रस्ताव खारिज हो गया। इसके बाद नगर निगम परिषद की ओर से एक बार फिर 2017 में सरकार को प्रस्ताव भेजा गया लेकिन इसे आगे मंजूरी के लिए बढ़ाने की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई। इसके बाद अब भोपाल में श्रीराम कथा में आए जगद्गुरु रामभद्राचार्य की मांग से यह मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आया है। माना जा रहा है कि करीब 9 साल बाद नगर निगम में महापौर और निगम परिषद में बीजेपी पार्षदों का बहुमत होने के कारण भोपाल का नाम भोजपाल किए जाने की मांग सुनियोजित तरीके से एक बार फिर बुलंद की जा रही है।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज ने कहा था भोपाल का नाम नहीं बदला तो यहां नहीं आऊंगा
भोपाल के भेल दशहरा मैदान में श्रीराम कथा में प्रवचन देने आए जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज ने 24 जनवरी को कहा था कि जब तक भोपाल का नाम भोजपाल नहीं होता, तब तक अगली कथा करने यहां नहीं आऊंगा। भोजपाल नगरी के राजा भोज पालक थे। जब सरकार होशंगाबाद का नाम नर्मदापुरम कर चुकी है। इलाहाबाद का नाम प्रयागराज हो गया है, फैजाबाद का नाम बदलकर अयोध्या कर दिया गया है, तो भोपाल का नाम बदलकर भोजपाल क्यों नहीं किया जा सकता? मैं अपने अनुज मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से कहूंगा कि विधानसभा चुनाव के पहले इसका नाम बदल दें।
पिछले साल होशंगाबाद का नाम बदलकर नर्मदापुरम किया
उल्लेखनीय है कि पिछले साल यानी फरवरी 2022 में केंद्र सरकार ने राज्य सरकार के प्रस्ताव पर प्रदेश के एक शहर, एक कस्बे और एक गांव का नाम बदलने की मंजूरी दी थी। इसमें होशंगाबाद का नाम बदलकर नर्मदापुरम, बाबई का नाम माखन नगर और टीकमगढ़ जिले में शिवपुरी ग्राम पंचायत का नाम बदलकर कुंडेश्वर धाम किया गया था। नर्मदा नदी के तट पर स्थित होशंगाबाद का नाम मालवा के पहले शासक होशंगशाह के नाम पर रखा गया था। शहर का नाम बदलने से पहले संभाग का नाम भी बदलकर नर्मदापुरम संभाग किया गया था। नए भोपाल के हबीबगंज स्टेशन का नाम 15 नवंबर 2021 को बदलकर गोंडवंश की रानी कमलापति के नाम पर किया जा चुका है।
रामकथा के समापन पर सीएम ने कहा, प्रस्ताव भेजा जाएगा
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मंगलवार (31 जनवरी) को जगद्गुरु रामभद्राचार्य की रामकथा के समापन समारोह में शामिल होने पहुंचे। सीएम की मौजूदगी में रामभद्राचार्य महाराज ने कहा कि मैं वशिष्ठ कुल का वेदज्ञ ब्राह्मण हूं। मैं राम जी से सिर्फ यही मांग रहा हूं कि पाक अधिकृत कश्मीर हमें मिल जाए और जो 800 वर्गमील जमीन चीन ने हथिया रखी है, वो वापस मिल जाए। हमारा भारत अखंड हो जाए। राम जी से यही मेरी दक्षिणा है, मुझे और कुछ नहीं चाहिए। जगद्गुरु ने सीएम से भोपाल का नाम भोजपाल करने की बात भी दोहराई। इसके बाद समारोह में मुख्यमंत्री के संबोधन के बाद वहां बड़ी संख्या में मौजूद श्रोताओं ने भोपाल का नाम भोजपाल किए जाने के नारे लगाए। इस मुख्यमंत्री ने जगद्गुरु की मुखातिब होकर मुस्कराते हुए कहा, प्रस्ताव भेजा जाएगा, आप जानते हो कि अकेला मैं नहीं कर सकता। यह सुनकर रामभद्राचार्य ने कहा- भोपाल, भोजपाल होकर रहेगा आप चिंता न करो।
कौन थे भोजपाल जिन्होंने बसाया था भू-पाल
इतिहासकारों के अनुसार भोपाल को 11वीं सदी में राजा भोज ने बसाया था। तब इसका नामकरण भू-पाल रखा गया था। इतिहासविदों का कहना है कि उस समय की किताबों में इसका जिक्र है। मुगलकाल में 1720 में ये शहर नए सिरे से बसाया गया। इसके बाद नाम बदलकर भोपाल हो गया। बताया जाता है कि सिर्फ 15 साल की आयु में मालवा का राजपाट संभालने वाले राजा भोज चारों ओर से शत्रुओं से घिरे थे। उत्तर में तुर्को से, उत्तर-पश्चिम में राजपूत सामंतों से, दक्षिण में विक्रम चालुक्य, पूर्व में युवराज कलचुरी और पश्चिम में भीम चालुक्य से उन्हें लोहा लेना पड़ा। उन्होंने सबको हराया। तेलंगाना के तेलप और तिरहुत के गांगेयदेव को हराने से एक मशहूर कहावत बनी-कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली।
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भोजशाला और भोजपुर का मंदिर बनवाया
राजा भोज ने पहले अपनी राजधानी धार को बनाया। उनका जन्म सन् 1980 में राजा विक्रमादित्य की नगरी उज्जैनी में हुआ। राजा भोज चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के वंशज थे। कुछ इतिहासकारों अनुसार राजा भोज परमार मालवा के 'परमार' अथवा 'पवार वंश' के नौवें राजा थे। उन्होंने 1018 ईस्वी से 1060 ईस्वी तक शासन किया। कुछ विद्वानों अनुसार परमार वंश ने मालवा पर सन् 1000 से 1285 तक राज किया। भोजराज इसी महाप्रतापी वंश की पांचवीं पीढ़ी में थे। राजा भोज ने अपने काल में कई मंदिर बनवाए। राजा भोज के नाम पर भोपाल के निकट भोजपुर बसा है। धार की भोजशाला का निर्माण भी उन्होंने कराया था। कहते हैं कि उन्होंने ही मध्यप्रदेश की वर्तमान राजधानी भोपाल को बसाया था जिसे पहले 'भोजपाल' कहा जाता था। इनके ही नाम पर भोज नाम से उपाधि देने का भी प्रचलन शुरू हुआ जो इनके ही जैसे महान कार्य करने वाले राजाओं की दी जाती थी।
भोपाल का बड़ा तालाब भी राजा भोज की देन
मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक गौरव के जो प्रमुख स्मारक हैं, उनमें से अधिकांश राजा भोज की देन हैं। चाहे विश्व प्रसिद्ध भोजपुर मंदिर हो या दुनियाभर के शिव भक्तों के श्रद्धा के केंद्र उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर, धार की भोजशाला हो या भोपाल का विशाल तालाब। ये सभी राजा भोज के सृजनशील व्यक्तित्व की देन हैं। राजा भोज नदियों को चैनलाइज या जोड़ने के कार्य के लिए भी पहचाने जाते हैं। आज उनके द्वारा खोदी गई नहरें और जोड़ी गई नदियों के कारण ही नदियों के संरक्षण का लाभ समाज को मिल रहा है। भोपाल शहर का बड़ा तालाब इसका उदाहरण है।