डॉक्टर्स बोले- खून में छिपा रहता है HIV, तुरंत का डोनेट किया खून चढ़ाना ठीक नहीं, 6 हफ्ते बाद एक्टिव होता है वायरस

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Atul Tiwari
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डॉक्टर्स बोले- खून में छिपा रहता है HIV, तुरंत का डोनेट किया खून चढ़ाना ठीक नहीं, 6 हफ्ते बाद एक्टिव होता है वायरस

राजीव उपाध्याय, JABALPUR. आज 1 दिसंबर यानी वर्ल्ड एड्स डे है। एड्स होने के लिए असुरक्षित यौन संबंधों के अलावा दूषित खून को भी जिम्मेदार माना जाता है। खून चढ़ाने को लेकर अब डॉक्टरों की नई चेतावनी सामने आई है। मरीजों को यदि किसी डोनर का तुरंत का निकला ब्लड चढ़ाया जाए तो मरीज के एचआईवी पॉजिटिव होने की संभावना हो सकती है। जबलपुर के नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल अस्पताल परिसर में चल रहे एआरटी (एंटी रेट्रोवायरल थैरेपी) सेंटर में दो मरीजों का इस तरह का केस है। ये मरीज एचआईवी पॉजिटिव हैं और इनका इलाज चल रहा है। 





इन दोनों मरीजों के साथ जो हुआ, वो चौंकाने वाला था





जबलपुर में दो पेशेंट्स को किसी बीमारी के इलाज के दौरान उन्हें अस्पताल में डोनर का तुरंत का निकला ब्लड चढ़ाया गया। डोनर का ब्लड एचआइवी वायरस विंडो पीरियड में था, जो शुरुआती टेस्ट में निगेटिव आया। लेकिन जिन मरीजों को चढ़ाया गया, उनमें विंडो पीरियड खत्म होते ही उनमें एचआईवी पॉजिटिव हो गया। एआरटी सेंटर की सीनियर मेडिकल ऑफिसर डॉ नमिता पाराशर का कहना है कि ये मरीज सेंटर आए तो जांच की गई। तब उन्होंने हिस्ट्री बताई। फिलहाल मरीजों की एड्स की दवाएं चल रही हैं।





क्या होता है विंडो पीरियड, इसे इग्नोर करना ठीक नहीं





डॉ. नमिता पाराशर ने बताया कि यदि किसी व्यक्ति के खून में किसी कारण से एचआईवी वायरस आता है तो खून में आने के 6 हफ्ते बाद एक्टिव होता है, तभी ये टेस्ट में दिखाई देता है। यदि वायरस दिखाई नहीं देता और रिपोर्ट निगेटिव आती है, तब भी 90 दिन बाद फिर टेस्ट कराने को कहा जाता है। इसलिए यह कहा जाता है कि जरूरत होने पर ही ब्लड ट्रांसफ्यूजन किया जाए। वायरल लोड, डीएनए, पीसीआर मॉडर्न टेस्ट हैं, लेकिन इसमें भी 15 दिन का समय लगता है। वहीं, रीजनल डायरेक्टर हेल्थ डॉ संजय मिश्रा का कहना है कि मध्य प्रदेश में किसी भी सरकारी या प्राइवेट अस्पताल में पीसीआर टेस्ट नहीं होता। ये टेस्ट जल्द ही शुरू होंगे।





अन्य कारणों से भी एचआईवी पीड़ितों का चल रहा इलाज





एड्स और टीबी मरीजों के इलाज और पुनर्वास के लिए चलाए जा रहे अभियान के तहत स्थापित किए गए एआरटी सेंटर में संभाग के एड्स और टीबी रोगियों का इलाज चल रहा है। 2006 में खोले गए इस संस्थान में एड्स की रोकथाम के लिए जनजागरण के साथ-साथ मरीजों को इलाज की सुविधा दी जाती है। वर्तमान में यहां संभाग के 10 हजार से ज्यादा एचआईवी रजिस्टर्ड हैं, जिन्हें समुचित इलाज मुहैया कराया जा रहा है। डॉ. नमिता पाराशर ने बताया कि वर्तमान में सेंटर में 10,006 एचआईवी पॉजिटिव मरीज रजिस्टर्ड हैं, जिनमें से साढ़े 5 हजार से ज्यादा पुरुष मरीज हैं, जबकि महिला मरीजों की संख्या साढ़े 3 हजार के आसपास है। वहीं, साढ़े 300 के करीब बच्चे (मेल) और 250 बच्चियां भी एचआईवी पीड़ित हैं, जिनका इलाज कराया जा रहा है। इसके अलावा एचआईवी इन्फेक्टेड 29 ट्रांसजेंडर्स भी सेंटर में इलाज प्राप्त कर रहे हैं। 





2022 में संस्थान ने 317 नए मरीज चिन्हित किए हैं जो एचआईवी पॉजिटिव पाए गए। डॉ. पाराशर ने बताया कि वर्तमान में 86% एचआईवी केस असुरक्षित यौन संबंधों के चलते पाए गए। बाकी मरीजों को अन्य कारणों से एचआईवी संक्रमण हुआ। 





एड्स के मरीजों को टीबी का खतरा सबसे ज्यादा





डॉ. नमिता पाराशर के मुताबिक, 70 फीसदी एचआईवी संक्रमित मरीजों को टीबी होने का खतरा होता है, इसलिए शासन ने एड्स के साथ-साथ टीबी उन्मूलन का दायित्व भी एआरटी सेंटर को दे रखा है। यही बात टीबी के मरीजों पर भी लागू होती है। टीबी और एचआईवी संक्रमण दोनों ही बीमारी एकदूसरे को बढ़ावा देती हैं। टीबी के मरीजों को एचआईवी और एचआईवी के मरीजों को टीबी बुरी तरह से इन्फेक्टेड करता है। 





एआरटी सेंटर की सीनियर मेडिकल ऑफिसर डॉ नमिता पाराशर ने बताया कि बीते एक दशक में अब लोग एचआईवी संक्रमण को उतना नहीं छिपाते जितना पहले छिपाते थे। उन्होंने ऐसे मरीजों के लिए संदेश दिया कि एचआइवी भी अन्य बीमारियों की तरह ही है, जिसमें नियमित रूप से दवा लेते रहने से मरीज सामान्य लोगों की तरह जीवन व्यतीत कर सकते हैं।



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