BHOPAL. मध्यप्रदेश की 4 हस्तियों को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सभी को पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया। उमरिया की जोधइया बैगा, झाबुआ के रमेश और शांति परमार और जबलपुर के डॉ. मुनीश्वर चंद डावर को पद्मश्री पुरस्कार मिला।
उमरिया की जोधइया बैगा
President Droupadi Murmu presents Padma Shri to Smt Jodhaiya Bai Baiga for Art. A prominent artist of Baiga painting, she has brought recognition to the traditional work, philosophy and culture of Baiga Tribe. pic.twitter.com/OjNu8yNMiI
— President of India (@rashtrapatibhvn) March 22, 2023
जोधइया बैगा की उम्र 83 साल है। उनकी शादी 14 साल की उम्र में ही हो गई थी। शादी के कुछ सालों बाद उनके पति का निधन हो गया। उस वक्त वे गर्भवती थीं। पति के जाने के बाद उन्होंने 2 बेटों को संभाला। इसके लिए उन्होंने मजदूरी की। कुछ महीनों बाद उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया। बच्चों के भरण-पोषण के लिए उन्हें जो काम मिलता गया वे करती रहीं। करीब 15 साल पहले जोधइया बैगा की मुलाकात आशीष स्वामी से हुई। आशीष स्वामी ने उन्हें चित्रकारी सिखाई। 2008 से उन्होंने आदिवासी कला की शुरुआत की। इसके बाद जोधइया बैगा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
जबलपुर के डॉ. मुनीश्वर चंद डावर
Padma Award in Madhya Pradesh!!!
Hearty congratulations and best wishes to Dr. Munishwar Chandra Davar of Madhya Pradesh, who has done excellent work in the field of medicine, on being selected for the Padma Shri award.#PadmaShri #PadmaAwards2023 pic.twitter.com/IEnJpBVz7B
— DR SAIRAM RADHAKRISHNA OFFICIAL (@DRSAIRAMBJP) January 26, 2023
जबलपुर के 77 साल के डॉ. मुनीश्वर चंद डावर ने मेडिकल के क्षेत्र में एक नजीर पेश की है। आजकल जहां डॉक्टर मरीजों से मोटी फीस वसूलते हैं। वहीं डॉ. मुनीश्वर चंद डावर की फीस सिर्फ 20 रुपए है। उन्होंने 50 साल पहले 2 रुपए फीस लेकर मेडिकल के क्षेत्र में प्रैक्टिस शुरू की थी। डॉ. मुनीश्वर चंद डावर को कम फीस लेकर लोगों की सेवा करने की प्रेरणा उनके टीचर तुलसीदास से मिली थी। उनके टीचर ने कहा था कि डॉक्टर बनने के बाद कभी किसी को निचोड़ना मत। डॉ. मुनीश्वर चंद डावर ने कोरोना काल में भी लोगों की लगातार सेवा की।
झाबुआ के रमेश और शांति परमार
#PadmaAwards2023: Ramesh Parmar & Ms. Shanti Parmar, Craftsperson Duo from Jhabua make Adivasi Dolls from recycled cloth. They have trained several other women in the same.#PeoplesPadma
@PIB_India @PadmaAwards @DDNewslive pic.twitter.com/wM0nzHa967
— Ministry of Information and Broadcasting (@MIB_India) March 22, 2023
झाबुआ के परमार दंपति ने आदिवासी गुड़िया कला को देशभर में पहचान दिलाई। दोनों आदिवासी गुड़िया बनाते हैं। रमेश परमार कहते हैं कि 1993 में उनकी पत्नी शांति परमार ने आदिवासी गुड़िया बनाने की शुरुआत की थी। शुरुआत में उन्होंने घर का खर्च चलाने के लिए गुड़िया बनाना शुरू किया था। उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। कई बार वे आर्थिक तंगी की वजह से गुड़िया बनाने का सामान नहीं खरीद पाते थे। उन्होंने दर्जी से कपड़ों की कतरन मांगकर सामान की व्यवस्था करनी शुरू की। गुड़िया बेचने के लिए वे आसपास लगने वाले मेलों में जाने लगे। आदिवासी गुड़िया लोगों को पसंद आने लगीं। शांति परमार बताती हैं कि आदिवासी गुड़िया बनाने के लिए कपड़ा, तार, रुई, धागा और रंग की आवश्यकता होती है। एक गुड़िया का जोड़ा बनाने में करीब 1 घंटे का वक्त लगता है। रमेश और शांति परमार की आदिवासी गुड़िया में आदिवासी समाज की झलक दिखाई पड़ती है।