संजय गुप्ता, INDORE. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात कार्यक्रम में रविवार (26 मार्च) को अंगदान को लेकर अहम बात की गई। उन्होंने कार्यक्रम में कहा कि अब राज्यों के मूल निवासी की बंधता खत्म कर दी गई है, ताकि कोई भी मरीज अपने जीवन के लिए किसी भी राज्य में अंग प्राप्त करने के लिए रजिस्टर्ढ हो सके। साथ ही अंग प्राप्त करने वाले मरीज के लिए लगी 65 साल के कम आयु की सीमा का बंधन भी खत्म कर दिया है।
उर्जा विभाग के प्रमुख सचिव संजय दुबे की पहल
इस मामले में उन्होंने लोगों से आग्रह किया है कि मृतक के परिजन इसके लिए जागरूक हो और अधिक से अधिक आगे आएं। एक डोनर से आठ से नौ लोगों का जीवन बचाया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि मप्र में इंदौर में तत्कालीन संभागायुक्त व वर्तमान में उर्जा विभाग के प्रमुख सचिव संजय दुबे की पहल पर अंगदान पर काम हुआ था और ग्रीन कॉरिडोर बनाकर अंगदान होने शुरू हुए थे। इंदौर में अभी तक 47 बार ग्रीन कॉरिडोर बनाकर अंगदान किया जा चुका है। इंदौर की मुस्कान संस्था इसके लिए जागरूकता का काम कर रही है और मेडिकल कॉलेज व संभागायुक्त नोडल व्यवस्था देख रहे हैं। कोविड काल में धीमी पड़ी यह व्यवस्था वर्तमान में संभागायुक्त डॉ. पवन शर्मा के समय फिर से अंगदान में तेजी आई है।
यह बोले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
आर्गन डोनेशन से आठ से नौ लोगों को नया जीवन मिलने की संभावना होती है। अब इस मामले मे जागरूकता बढ़ रही है, साल 2013 में देश में पांच हजार से कम केस थे, लेकिन 2022 में 15 हजार से ज्यादा आर्गन डोनेशन के केस हुए हैं। इसमें परिवार ने पुण्य का काम किया है। पीएम ने कार्यक्रम के दौरान अमृतसर की सबसे छोटी बच्ची 39 दिन की अबादत कौर का उदाहरण दिया जिसके माता-पिता सुरप्रीत कौर और सुखवीर सिंह ने यह महान काम किया।
इंदौर में अगंदान में इस तरह रचा है इतिहास
इंदौर में पहला अंगदान वैसे साल 2000 में हुआ था जब एक कारोबारी दिलीप मेहता के बेटे मयंक की एक दुर्घटना में मौत हो गई। इसके बाद यदाकदा ही यह आर्गन डोनेशन हुए, लेकिन संभागायुक्त रहते हुए संजय दुबे ने इसका जमकर प्रचार किया। मुस्कान संस्था भी साथ आई और इन्होंने लोगों को जागरूक करना शुरू किया। इसके बाद इंदौर में आर्गन डोनेशन में तेजी आई और अब मुंबई के बाद इंदौर देश में सबसे ज्यादा त्वचा दान करने वाला शहर है। अब तक 13 हजार कार्निया (नेत्रदान) दान हो चुका है। इंदौर में हुए अंगदान से 200 लोगों को लाभ मिल चुका है। इंदौर में हर साल सौ लाइव आर्गन डोनेशन (यानि रिश्तेदारें के बीच अंगदान देना) होते हैं। दुबे कहते है कि लोगों को जागरूक करना और ऐसे दुखद समय पर उन्हें यह बताना, समझाना कठिन था, लेकिन एक बार जब इस दिशा में कदम बढ़े तो फिर इंदौर रूका नहीं, इंदौर से यह जज्बा पूरे मप्र में भी फैला।
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देश में अभी भी बहुत जरूरत
अधिकांश प्रत्यारोपण निजी अस्पतालों में होते हैं, सरकारी अस्पतालों में संख्या अपेक्षाकृत कम होती है। 2022 में हुए 15,561 प्रत्यारोपणों में से 12,791, यानी, 82% जीवित दाताओं से हैं और 2,765 (18%) मृतकों से हैं। मृतक-दाता प्रत्यारोपण के लिए सुविधाएं केवल कुछ राज्यों में मौजूद हैं। पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में मृतक अंगदान की दर बहुत कम है और समय पर अंग प्रत्यारोपण से अनुमान के मुताबिक 5 लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है। कुल 15,561 अंग प्रत्यारोपणों में से किडनी 11,423, लिवर 766, हृदय 250, फेफड़े 138, पैनक्रियाज 24 और छोटी आंत 3 केस हैं।
कौनसा अंग कितने समय में होता है ट्रांसप्लांट
अंग प्रत्यारोपण में सबसे महत्वपूर्ण टाइमिंग है। हर अंग के प्रत्यारोपण के लिए एक तय समय होता है, अगर उस सीमा में उसे प्रत्यारोपित नहीं किया गया तो महादान का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। जानते हैं किस अंग को कितनी देर में प्रत्यारोपित किया जाता है। किडनी 12 घंटे, हार्ट 4 घंटे, लिवर 6 घंटे, आंख 3 दिन। इसके अलावा शरीर के दूसरे अंगों के लिए भी अलग-अलग समय निर्धारित है।
क्या होती है प्रक्रिया, कैसे काम करता ‘सोटो’?
महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज के डीन और मध्यप्रदेश में सोटो के (नेशनल ऑर्गन टीशू एंड ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेश) के इंचार्ज डॉ. संजय दीक्षित बताते हैं कि इंदौर में कोरोना काल को छोड़कर तकरीबन हर साल अंगदान हुआ है। ऑर्गन डोनेशन उतना आसान नहीं है, जितना इसे समझा जाता है। इसके पीछे एक पूरी प्रक्रिया और मशक्कत लगती है। अस्पताल और दानदाता से लेकर जरूरतमंद तक और ब्लड मैंचिंग से लेकर टाइमिंग और अंगों के ट्रांसपोर्ट का काम देखना होता है। इसके साथ ही इस पूरी प्रकिया को पारदर्शी रखने की जरूरत होती है। उन्होंने बताया कि हाल ही में इंदौर में विनीता खजांची के अंग प्रत्यारोपण की प्रक्रिया में ग्रीन कॉरिडर बनाने से लेकर अंग को ले जाने के लिए चैन्नई से इंदौर आए चार्टर प्लेन तक की व्यवस्था देखने तक एक पूरी टीम ने काम किया। इसमें कई बार दो-दो रातों तक हम सो नहीं पाते हैं।