झारखंड की मंती कुमारी अपनी डेढ़ साल की बेटी को पीठ पर बांधकर प्रतिदिन छोटे बच्चों का टीकाकरण करने के लिए निकल पड़ती हैं। इस दौरान वह उन्हें हर दिन लगभग 35 km की यात्रा करनी पड़ती है। रास्ते में वह नदियों और कठिन इलाकों को पार करती हैं। मंती कुमारी नर्स हैं, लोग उनके जज्बे को सलाम कर रहे हैं।
कंधे पर बहुत कुछ
मंती के कंधे पर जिम्मेदारियों के बोझ के साथ कंधे पर डेढ़ साल की बेटी और उपकरण का डिब्बा भी साथ रहता है। हर दिन उन्हें कठिन रास्तों को पार करना पड़ता है। उन्हें आठ गांवों को कवर करना रहता है। उनका कहना है कि वह एक साल से ज्यादा टाइम से इस तरह से काम कर रही हैं। कुछ गांव जिन्हें वह कवर करती हैं, वह बहुत दूर-दूर हैं। नदियों के जरिए इन रास्तों को पार करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। ये नदियां बहुत गहरी नहीं हैं, फिर भी बरसात के मौसम में पानी के साथ बह जाने की संभावना हमेशा बनी रहती है। जब पानी का लेवल बढ़ जाता है तो उस गांव को छोड़ना पड़ता है, जब तक पानी कम न हो जाए।
घर में अकेली कमाने वाली
मंती के पति सुनील उरांव ने तालाबंदी के दौरान अपनी नौकरी खो दी। वह अपने परिवार में एकमात्र कमाने वाली रह गई हैं। सप्ताह में 6 दिन गांवों में जाने के अलावा बच्चे की देखभाल और परिवार का भरण-पोषण करने की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर रहती है। मंती कहती हैं, कि वह हर महीने कम से कम एक बार तिसिया, गोइरा और सुगमबंध गांवों का दौरा करती हैं, और तीन अलग-अलग स्थानों पर नदी पार करती है।