CM मोहन यादव को अमित शाह के साथ बड़ी जिम्मेदारी मिलने के क्या मायने ?

बीजेपी ने अहम फैसला लेते हुए मध्यप्रदेश के सीएम मोहन यादव को हरियाणा का केंद्रीय पर्यवेक्षक बनाया है। उनके अलावा ये जिम्मेदारी अमित शाह के पास है। वो पहले ऐसे मुख्यमंत्री माने जा रहे हैं। जिन्हें अमित शाह के साथ सेम जिम्मेदारी सौंपी गई है...

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Harish Divekar
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News Strike : अब से करीब 11 महीने पहले जब मोहन यादव के नाम का ऐलान बतौर सीएम हुआ था तब हर तरफ एक ही सवाल था कि कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल जैसे सीनियर्स के बीच मोहन यादव ही क्योंरैंक जो लोग नहीं समझे वो लोग सवाल में ही उलझे रहेरैंक जो लोग समझ गए उन्हें मोहन यादव के नाम में जवाब भी मिल गयारैंक पिछले कुछ चुनाव से बीजेपी जिस तरह मोहन यादव का इस्तेमाल कर रही है। रैंक उससे ये अंदाजा लगाना आसान है कि मोहन यादव लंबी रेस के घोड़े बनने वाले हैं और राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान भी हासिल करने वाले हैं। ये एक नाम राष्ट्रीय स्तर पर दूसरे दलों के दिग्गज नेताओं की काट बनाने की तैयारी भी है। फिलहाल मोहन यादव सीधे अमित शाह के साथ मिलकर बड़ा फैसला लेने वाले हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है कि बीजेपी इसके जरिए क्या मैसेज दे रही है।

हरियाणा की जीत ने मोहन यादव का कद बढ़ाया

बीजेपी के लिए हरियाणा की जीत बेहद अप्रत्याशित रही। ये चुनाव बीजेपी पूरी तरह से हाथ से गया हुआ ही मान रही थी, लेकिन यहां बंपर जीत हासिल करने में कामयाब रही। हरियाणा चुनाव में मप्र के मुखिया मोहन यादव का भी भरपूर इस्तेमाल हुआ। मोहन यादव ने हरियाणा में करीब 29 सीटों पर प्रचार किया। ये सीटें यादव नेताओं के प्रभाव वाली ही मानी जाती हैं। इन 29 में से 21 सीटों पर बीजेपी को जीत हासिल हुई है। इस जीत ने पार्टी में मोहन यादव का कद बढ़ा दिया है। इसके बाद बीजेपी ने अहम फैसला लेते हुए मोहन यादव को हरियाणा का केंद्रीय पर्यवेक्षक बनाया है। उनके अलावा ये जिम्मेदारी अमित शाह के पास है। पार्टी के इस फैसले के बाद मोहन यादव सीधे अमित शाह के साथ संपर्क में रहेंगे। वो पहले ऐसे मुख्यमंत्री माने जा रहे हैं। जिन्हें अमित शाह के साथ सेम जिम्मेदारी सौंपी गई है।

मोहन यादव का नाम हर प्रदेश के कार्यकर्ता तक पहुंचेगा

वैसे तो हरियाणा में ये तय माना जा रहा है कि नायब सिंह सैनी ही अगले सीएम होंगे। उसके बाद भी गुटबाजी का अंदेशा है। इसलिए बीजेपी शपथ ग्रहण से पहले ही बड़ा फैसला ले लेना चाहती है। इस फैसले में मोहन यादव की राय भी अहम होगी। अब पार्टी के इस फैसले के मायने को समझते हैं। पहला तो ये मैसेज पूरी पार्टी के लिए है कि मोहन यादव को नया नेता या जूनियर नेता समझने की गलती न करें। दूसरी कोशिश ये है कि मोहन यादव का नाम राष्ट्रीय स्तर के नेताओं में गिना जाए। वैसे भी जब मोहन यादव उस काम में शामिल होंगे जिसमें सीधे अमित शाह शामिल हैं तो उनका नाम हर प्रदेश के कार्यकर्ता तक पहुंचेगा और पहचान दमदार बनेगी। तीसरा सबसे अहम मैसेज यूपी बिहारे के यादव वोटर्स के लिए है। 

मोहन यादव की सभाओं से यादव वोटर अट्रेक्ट हुआ

बीजेपी ने जिस हिसाब से पूरे देश में अपनी सियासी बिसात जमाई है उसे देखकर ये समझा जा सकता है कि उस बिसात के मोहन यादव एक अहम मोहरे हैं। जो किश्ती की तरह सीधे चलने को मजबूर नहीं है। इन दस महीनों में वो अपने फैसलों से ये भी साबित कर चुके हैं कि वो सिर्फ आलाकमान के इशारे पर चलने वाले आम प्यादे भी नहीं है। वो तो एक वजीर हैं। जो जब चाहें तब कहीं भी जा सकते हैं और अपनी चाल से दुश्मन को शह और मात दे सकते हैं। इसकी तैयारी तो लोकसभा चुनाव से ही हो चुकी है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सामने मप्र का रास्ता क्लियर था। चिंता थी यूपी और बिहार की। जहां मोहन यादव का खूब इस्तेमाल हुआ। एक तरह से कहा जाए तो वो मोहन यादव के चेहरे का लिटमस टेस्ट भी था। नतीजे चाहें जो भी रहे हों, लेकिन मोहन यादव की सभाएं और चुनाव प्रचार से यादव वोटर बीजेपी की तरफ अट्रेक्ट हो रहा है ये साफ हो गया है। आप बीजेपी के सारे नेताओं की गिनती करेंगे तो यादव नेता कम ही नजर आएंगे जो राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी पहचान रखते हों। जबकि यूपी में अखिलेश यादव का जबरदस्त दबदबा है। बिहार में तेजस्वी यादव यानी कि लालू प्रसाद यादव की दूसरी पीढ़ी एक्टिव हो चुकी है।

एक मोहन में यादव, कृष्णभक्त और ओबीसी नेता

बीजेपी के पास इन दोनों प्रदेशों में ब्राह्मण और ठाकुर नेताओं की कोई कमी नहीं है। कमी थी तो बस एक यादव फेस की। जिसे पूरा करने के लिए बीजेपी ने मोहन यादव को चुना है। मोहन यादव, यदुवंशी होने के साथ साथ ओबीसी समुदाय से भी आते हैं। महाकाल की नगरी उनका गृह क्षेत्र है और संयोग देखिए इसी नगरी में यानी कि उज्जैन में भगवान कृष्ण की शिक्षा पूरी हुई है। इस नाते मोहन यादव कृष्ण भक्त भी माने जाते हैं। पिछले दिनों कृष्ण से जुड़े धामों के विकास का ऐलान करके मोहन यादव अपनी भक्ति का परिचय भी दे चुके हैं। यानी बीजेपी को एक मोहन में यादव, कृष्णभक्त और ओबीसी नेता। सब कुछ मिल गया। जिसके जरिए पार् यूपी बिहार के यादव वोटर्स को अपना बना सकती है।

यूपी बिहार में यादव वोटर्स की अहमियत को समझना जरूरी

इस गणित को समझने के लिए यूपी बिहार में यादव वोटर्स की अहमियत को भी समझना जरूरी है। पहले बात करते हैं यूपी की। जिलेवार देखें तो एटा, इटावा, फर्रुखाबाद, मैनपुरी, फिरोजाबाद, कन्नौज, बदायूं, आजमगढ़, फैजाबाद, संत कबीर नगर, बलिया, कुशीनगर और जौनपुर जैसे जिलों में यादव आबादी बहुत ज्यादा है। प्रदेश के 44 जिले ऐसे हैं जहां 9 से 10 फीसदी यादव वोटर हैं। करीब दर्जनभर जिले ऐसे भी हैं जहां यादव वोटर्स 15 फीसदी के आसपास या उससे अधिक है। लोकसभा के लिहाज से देखें तो मैनपुरी, फर्रुखाबाद, फिरोजाबाद, बलिया, आजमगढ़ जैसी करीब दर्जनभर सीटों पर यादव वोटर्स ही किंग मेकर होते हैं। यूपी में यादव वोटर अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टे के कोर वोटर माने जाते हैं। सीएसडीएस की एक रिपोर्ट की मानें तो 2019 के लोकसभा चुनाव में 60 फीसदी यादव वोटर्स ने सपा-बसपा गठबंधन के पक्ष में मतदान किया था। बीजेपी को 23 और कांग्रेस को पांच फीसदी यादव वोट ही मिले थे।

मोहन यादव अब यूपी-बिहार में ब्रह्मास्त्र की तरह चलाए जाएंगे

बिहार सरकार ने जो जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी किए हैं। उनके अनुसार राज्य में यादवों की आबादी लगभग 15 फीसदी है। पूर्णिया, अररिया, मधेपुरा सहित कई जिले ऐसे हैं जहां यादव काफी ज्यादा संख्या में है। बिहार में यादव वोटर्स आरजेडी के कोर वोटर माने जाते हैं। इन यादव वोटर्स को रिझाने के लिए बीजेपी के पास कोई चेहरा नहीं था। उनकी खोज आकर खत्म हुई मोहन यादव पर आकर। जिन्हें सीएम का पद सौंपते ही लोकसभा चुनाव के स्टार प्रचारकों में भी शामिल कर लिया गया था। तब भी उनके नाम ने लोगों को चौंकाया था। अब जब वो अमित शाह के साथ पर्यवेक्षक बनाए गए हैं तब भी सब हैरान हैं, लेकिन बीजेपी का मैसेज साफ है। मोहन यादव के कद को राष्ट्रीय स्तर का नेता तक बढ़ाना है। हरियाणा में अपनी काबिलियत साबित कर चुके मोहन यादव अब यूपी बिहार में ब्रह्मास्त्र की तरह चलाए जाएंगे। जिनके निशाने पर सपा और आरजेडी का कोर बैंक होगा। उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले उपचुनाव और फिर यूपी बिहार के विधानसभा चुनाव में यादव वोटर्स के बीच कुछ उथल पुथल दिखाई दे।

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