News Strike : कभी सीएम पद के रहे दावेदार, अब कहां हैं नरोत्तम मिश्रा ?

कहां हैं नेताजी... हम बात कर रहे हैं आज ऐसे नेता की जिसकी पहचान है सफेद उजले कपड़े, उजला चेहरा और माथे पर लंबा लाल तिलक। मध्यप्रदेश ये नेताजी कभी अपने बयानों तो कभी अपने कामों को लेकर राजनीति में बेहद एक्टिव रहे...

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Harish Divekar
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News Strike : मध्यप्रदेश की राजनीति में एक नाम बेहद खास रहा है। कभी ये नाम तब उछला जब सूबे में सीएम फेस बदलने की बात हुई। कभी ये नाम तब याद आया, जब दल बदल की दाल को और ज्यादा गलाने की बात आई, लेकिन जब से मध्यप्रदेश में चुनावी शोर थमा है तब से ये चेहरा भी सुर्खियों से गायब है। कहां हैं नेताजी में हम बात कर रहे हैं ऐसे नेता की जिसकी पहचान है सफेद उजले कपड़े, उजला चेहरा और माथे पर लंबा लाल तिलक। ये नेताजी कभी अपने बयानों तो कभी अपने कामों को लेकर राजनीति में बेहद एक्टिव रहे। लेकिन अब इनकी चमक कहीं नजर नहीं आ रही है।

नरोत्तम मिश्रा पर तीन साल चुनाव लड़ने पर लगा था प्रतिबंध

इस नेता का नाम आप समझ सके हों तो ठीक हैं न समझें हो तो पहले एक किस्सा बताते हैं। किस्सा जुड़ा है साल 2008 के विधानसभा चुनाव से। इस विधानसभा चुनाव के दौरान करीब 42 खबरें ऐसी छपी थीं, जिनकी हेडलाइन एक ही जैसी थी। नेताजी की विधानसभा सीट से दूसरी पार्टी के प्रत्याशी ने उस हेडलाइन पर सवाल उठाया और इल्जाम लगे पेड न्यूज के। क्योंकि सभी एक जैसी हेडलाइन कुछ यूं थीं कि “तो इसलिए सबसे अलग हैं नरोत्तम”। जी हां हम बात कर रहे हैं नरोत्तम मिश्रा की ही। ये खबरें बेशक पेड रही हों या न रही हों, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि नरोत्तम मिश्रा वाकई बाकी नेताओं से अलग ही रहे हैं। वैसे नरोत्तम मिश्रा पर आगे और बात करें उससे पहले ये बता दें कि पेड न्यूज के आरोप के बात साल 2017 में चुनाव आयोग ने नरोत्तम मिश्रा को तीन साल चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। बाद में उन्हें हाईकोर्ट से राहत मिली। इसके बाद साल 2018 में फिर विधानसभा चुनाव हुए और नरोत्तम मिश्रा जीतकर विधानसभा पहुंचे। हालांकि, इस बार उनकी जीत का मार्जिन इतना कम था कि उसे मुश्किल से मिली जीत ही कहा जा सकता है, लेकिन नरोत्तम मिश्रा ने अपनी इमेज को रिवाइव करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

नरोत्तम को ऑपरेशन लोटस के सूत्रधार से भी नवाजा गया

साल 2018 में बीजेपी को हार मिली और कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन 2020 आते-आते सियासी बिसात पलटी। ऑपरेशन लोटस रंग लाया और प्रदेश में फिर से कमल खिल गया। बड़े पैमाने पर कांग्रेस से बीजेपी में विधायक शामिल हुए। उस समय भी ये खबरें काफी जोर शोर से छपी कि ऑपरेशन लोटस की कामयाबी में नरोत्तम मिश्रा ने अहम भूमिका निभाई है।

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में उन्हें बीजेपी का संकटमोचक, ऑपरेशन लोटस के सूत्रधार के नाम से भी नवाजा गया। इस तरह इमेज गढ़ने में माहिर रहे नरोत्तम मिश्रा सीएम पद के भी दावेदार बताए गए। उस दौर की खबरें अगर आपको याद हों या आप सर्च करने में एक्सपर्ट हैं तो साल 2020 की ऐसी बहुत सी खबरें आपको पढ़ने को मिल जाएंगी। जिसमें ये लिखा होता है कि नरोत्तम मिश्रा सीएम पद की रेस में शामिल। लेकिन सरकार बनते ही प्रदेश में कोविड की पाबंदियां लागू हो गईं।

पार्टी को बहुत जल्दबाजी में ये फैसला लेना पड़ा कि प्रदेश का नया मुखिया कौन होगा और फिर कमान शिवराज सिंह चौहान को ही सौंप दी गई। उस दौर में शिवराज सिंह चौहान ने एक रिकॉर्ड बनाया। रिकॉर्ड ये कि वो बिना मंत्रिमंडल के सबसे ज्यादा दिन अकेले सीएम रहने वाले नेता बन गए। इसके बाद भी नरोत्तम मिश्रा से सुर्खियों का लगाव कम नहीं रहा। अक्सर ये खबरें आती रहीं कि शिवराज सिंह चौहान दिल्ली तलब और नरोत्तम मिश्रा को भी दिल्ली से बुलावा। कारण क्या रहे ये तो खुलकर सामने नहीं आया। पर उस वक्त इतनी अटकलें जरूर लग जाती थीं कि शाम तक कोई बड़ी खबर आएगी और शायद सीएम फेस बदल जाएगा, लेकिन अगले विधानसभा चुनाव तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। 

शिवराज सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले मंत्री

खैर नरोत्तम मिश्रा के कद में इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ा। वो शिवराज सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले मंत्री रहे। जिन्होंने गृह विभाग और संसदीय कार्य मंत्री जैसे अहम पद संभाले, लेकिन उन्होंने अपनी इमेज में जरूर थोड़े बहुत बदलाव किए। योगी जी का कट्टर हिंदुत्व जब सुर्खियां बटोर रहा था तब भी शिवराज सिंह चौहान ने अपना उदारवादी रुख बनाए रखने की पूरी कोशिश की, लेकिन नरोत्तम मिश्रा अचानक आक्रामक मोड में नजर आने लगे। उनके माथे पर लाल तिलक परमानेंट हो गया और बयानों में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह की आलोचना का सेंटेंस फिक्स हो गया।

खासतौर से बॉलीवुड एक्टर एक्ट्रेस पर निशाना साधना उनके बयानों का खास हिस्सा बन गया। शाहरुख खान की फिल्म पठान में दीपिका पादुकोण की केसरिया बिकनी पर उन्होंने बयान दिया। यहां तक कह डाला कि फिल्म को मध्यप्रदेश में रिलीज होने दिया जाए या न दिया जाए ये सोचना पड़ेगा। आदिपुरुष मूवी की रिलीज से पहले भी उन्होंने मेकर्स को चेतावनी दी कि हिंदू धार्मिक हस्तियों को गलत तरीके से दिखाया तो ठीक नहीं होगा। काली नाम की डॉक्यूमेंट्री के पोस्टर पर भी एफआईआर दर्ज करवाने के आदेश दिए। सनी लियोनी और साकिब तोशी के गाने मधुबन में राधिका नाचे को भी ओटीटी से हटाने के लिए चेतावनी दे डाली। स्टेंडअप कमेडियन और एक्टर वीर दास की पेशकश आई कम फ्रॉम टू इंडियाज पर भी टिप्पणी की और एक कंपनी के करवा चौथ के एड पर भी अल्टीमेटम दे डाला। 

विधानसभा चुनाव में अपनी सीट ही नहीं बचा सके नरोत्तम मिश्रा 

कुल मिलाकर नरोत्तम मिश्रा ने अपनी छवि को कट्टर हिंदूवादी बनाने की पूरी कोशिश की। साल 2022 की खरगोन की घटना पर उन्होंने ये बयान तक दे डाला कि जिस घर से पत्थर आए हैं उन्हें पत्थर का ढेर बना देंगे। नरोत्तम मिश्रा ने इन बयानों के जरिए आलाकमान की नजरों में आने की पूरी कोशिश की। उनके लिए कुछ ऐसी भी खबरें छपी कि कांग्रेस के लोगों को बीजेपी में लाने का रिकॉर्ड भी वो बना चुके हैं। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स ने दावा किया कि नरोत्तम मिश्रा की वजह से एक ही दिन में एक लाख से ज्यादा कांग्रेस कार्यकर्ता बीजेपी का हिस्सा बने हैं। मीडिया रिपोर्टस में ये श्रेय भी दिया गया कि इसी वजह से कांग्रेस का मनोबल टूटा और बीजेपी की जीत हुई। खैर इन सब खबरों का नरोत्तम मिश्रा को कोई खास फायदा नहीं मिला। वो विधानसभा चुनाव में अपनी सीट ही नहीं बचा सके। सीएम बनना तो बहुत दूर की बात रही। हालांकि, अगर जीत भी जाते तो भी सीएम बनना मुश्किल होता। क्योंकि इस अहम पद के लिए पार्टी का क्राइटेरिया बहुत अलग रहा। बीते साल 2023 में हुई हार के बाद जरूर नरोत्तम मिश्रा का आब और ताब कुछ कम हुआ। लोकसभा चुनाव के दौरान जरूर ये खबर आई कि उन्हें टिकट मिल सकता है, लेकिन वो भी नहीं हो सका। उसके बाद कभी जब बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष बदलने की बाद सामने आती है तो रेस में नरोत्तम मिश्रा का नाम शामिल जरूर मिलता है। 

सवाल है क्या अब नरोत्तम मिश्रा पहले की तरह जगमगा सकेंगे...

कुछ ही दिन पहले नरोत्तम मिश्रा फिर सुर्खियों में नजर आए। जब ये खबर सुनने को मिली की नरोत्तम मिश्रा को महाराष्ट्र में चुनाव प्रबंधन का काम सौंपा गया है। अपने ट्विटर अकाउंट के माध्यम से वो महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार की जानकारी देते रहे, लेकिन सुर्खियों में जिस तरह पहले छाए रहते थे वो धमक अब दिखाई नहीं देती है। सवाल ये है कि क्या अब नरोत्तम मिश्रा पहले की तरह जगमगा सकेंगे। शायद, अगर उन्हें प्रदेशाध्यक्ष का पद मिल जाता है तो। वर्ना ये साफ नजर आता है कि खुद को सुर्खियों में दोबारा लाने के लिए नरोत्तम मिश्रा को कुछ और तरीके ढूंढने होंगे।

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