News Strike : डॉ. भीमराव की पोती रमा अंबेडकर ने कांग्रेस और धीरेंद्र शास्त्री पर क्या कहा ?

मध्यप्रदेश के भोपाल में रमा अंबेडकर ने मीडिया हाउसेस से बातचीत की। कुछ एक्सक्लूसिव इंटरव्यूज भी दिए। एक इंटरव्यू में उन्होंने इस बारे में विस्तार से बात की कि अंबेडकरजी को संविधान निर्माता होने के बावजूद क्या मिला और क्या नहीं मिल सका...

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Harish Divekar
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News Strike : क्या संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर को कांग्रेस में वो सम्मान नहीं मिला जिसके वो हकदार थे। बीजेपी अक्सर कांग्रेस पर ये इल्जाम लगाती रही है, लेकिन अब अंबेडकरजी की वंशज ने इस बारे में खुलकर बात की। हम आज आपको बताते हैं कि अंबेडकर जी ने देश के लिए क्या किया। उस के बदले उन्हें क्या मिला। कांग्रेस पर क्या-क्या इल्जाम लगे और उनके परिवार को क्या उम्मीदें थीं। उम्मीदें इस नाते नहीं कि उन्हें धन, दौलत ओहदा या कोई सुविधा मिलनी चाहिए थी। उम्मीद इस बात की रही कि अंबेडकरजी के नाम को वो सम्मान मिलता रहे, जिसके वो हकदार थे।

बाबा साहब के सामने कांग्रेस ने ही उम्मीदवार खड़ा किया

डॉ. भीमराव अंबेडकर की पोती रमा अंबेडकर हाल ही में धम्म संदेश महोत्सव में शामिल होने भोपाल आई थीं। रमा डॉ. अंबेडकर के बेटे यशवंत की बेटी हैं। भोपाल में रमा अंबेडकर ने मीडिया हाउसेस से भी काफी बातचीत की। कुछ एक्सक्लूसिव इंटरव्यूज भी दिए। एक इंटरव्यू में उन्होंने इस बारे में काफी विस्तार से बात की कि अंबेडकरजी को संविधान निर्माता होने के बावजूद क्या मिला और क्या नहीं मिल सका। कांग्रेस पर अंबेडकरजी को लेकर कई इल्जाम लगते रहे हैं। जिसमें से एक इल्जाम ये भी है कि बाबा साहब जब चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतरे तब कांग्रेस ने ही उनके खिलाफ उम्मीदवार खड़ा किया। इस सवाल के जवाब में रमा अंबेडकर ने कहा कि कांग्रेस से उनके परिवार के कई मतभेद रहे हैं। उनका परिवार ये मानता है कि अंबेडकरजी को जो सम्मान मिला था वो उन्हें नहीं मिला। रमा अंबेडकर ने कहा कि वो इतना तो डिजर्व करते थे कि उन्हें संसद में एक सीट पर्मानेंट मिले, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आपको बता दें कि अंबेडकर के परिवार को कांग्रेस से चाहें जितने भी गिले शिकवे या शिकायतें रही हों। इस परिवार ने कभी उनका राजनीतिकरण नहीं किया। न ही इस बहाने सुर्खियां बटोरने की कोशिश की है। रमा अंबेडकर ने ये साफ किया कि वो इस मामले में राजनीति नहीं करते। नहीं तो ऐसे बहुत से किस्से हैं। 

अंबेडकर करीब 15 हजार वोट्स से ये चुनाव हारे थे

ऐसा ही एक किस्सा है डॉ. अंबेडकर के चुनाव लड़ने का। जिस बारे में रमा ताई तो चुप रहीं, लेकिन हम आपको बताते हैं कि वो इतिहास असल में क्या था। ये बात है 1951 और 52 की। इससे कुछ ही समय पहले देश को आजादी मिली थी और पहली बार चुनाव होने जा रहे थे। इस साल अंबेडकर ने बांबे नॉर्थ सेंट्रेल से चुनाव लड़ने का फैसला किया था। अंबेडकर अपनी ही पार्टी शिड्यूल कास्ट फेडरेशन पार्टी से चुनाव मैदान में उतरे थे। उस समय कांग्रेस ने बड़ा दांव खेला और अंबेडकर के खिलाफ उन्हीं के पीए रहे नारायण सबोदा काजरोलकर को उनके सामने प्रत्याशी बनाकर खड़ा कर दिया। हालांकि, काजरोलकर सियासी दुनिया में एकदम नए थे। लेकिन कांग्रेस का साथ मिलने से उनकी ताकत बढ़ गई थी। कांग्रेस के दम कर काजरोलकर अंबेडकर को हराने में कामयाब रहे। अंबेडकर करीब 15 हजार वोट्स से ये चुनाव हारे थे। काजरोलकर को इस सीट से 138137 वोट मिले थे और अंबेडकर को 123576 वोट। उस दौर के प्रसिद्ध कम्युनिस्ट पार्टी नेता एसए डांगे ने भी सीट के सियासी समीकरणों पर बड़ा असर डाला था। उन्हें इस सीट से 96,755 वोट मिले थे। माना ये गया कि उनकी वजह से भी अंबेडकर के वोट कम हुए हैं।

1954 में भी कांग्रेस ने वही दांव खेला और अंबेडकर हारे

इसके बाद अंबेडकर ने दोबारा चुनावी मैदान में किस्मत आजमाई साल 1954 में हुए। इस बार वो बंडारा उपचुनाव में खड़े हुए। इस बार भी कांग्रेस ने वही दांव खेला और अंबेडकर चुनाव हार गए। इसके बाद उन्हें चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला। क्योंकि दूसरे आम चुनाव से पहले ही उनका निधन हो गया था। वो सांसद जरूर बने, लेकिन लोकसभा से नहीं राज्यसभा के जरिए वो सदन में पहुंचे थे। कांग्रेस और अंबेडकर के बीच मतभेद का एक इतिहास इससे भी पहले का है। उसका जिक्र भी यहां कर लेना जरूरी है। क्योंकि तब ही आप समझ सकेंगे कि अंबेडकर जो नेहरू केबिनेट का हिस्सा था उन्होंने अपनी पार्टी क्यों बनाई और क्यों कांग्रेस ने उसके खिलाफ प्रत्याशी उतारा।

नेहरू कैबीनेट से नाराज होकर इस्तीफा दिया

बात करते हैं आजादी मिलने के बाद देश में बने नेहरू केबिनेट की। जवाहरलाल नेहरू ने 15 अगस्त 1947 में भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। उनकी पहली केबिनेट में 15 मंत्री भी बनाए गए। इस केबीनेट में अंबेडकर विधि एवं न्याय मंत्री के रूप में शामिल हुए थे, लेकिन 27 सितंबर, 1951 को उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उनकी शिकायत थी कि दलितों के साथ अन्याय पर फोकस कम है और कुछ गंभीर मुद्दे भी शामिल थे। जिस के चलते अंबेडकर ने कांग्रेस छोड़ अपनी पार्टी शिड्यूल कास्ट फेडरेशन पार्टी बनाई थी इसे ही बाद में रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया कर दिया गया। उस समय कांग्रेस की नीतियों से नाराज हो श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी। कुछ संदर्भ ऐसे भी मिलते हैं कि अंबेडकर का नाम उन 296 लोगों की लिस्ट में था ही नहीं जो संविधान सभा के लिए चुने गए थे। शुरुआत में बंबई के तत्कालीन सीएम बीजी खरे ने उनका नाम नहीं भेजा था। बाद में बंगाल के दलित नेता जोगेंद्र मंडल ने उनका नाम सुझाया। जिसके बाद वो संविधान सभा के सदस्य बन सके। फिर ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष बने। 

रमा ताई ने धीरेंद्र शास्त्री के बयान पर असहमति जताई

अब यहां ये भी समझ लेना जरूरी है कि जब संविधान का मसौदा एक कमेटी ने तैयार किया था तो अंबेडकर को ही क्यों संविधान निर्माता कहा जाता है। असल में संविधान ड्राफ्ट करने के लिए 7 सदस्यों की समिति बनी थी। इस कमेटी के एक सदस्य टीटी कृष्णामचारी के मुताबिक निधन, बीमारी और दूसरी व्यस्तताओं के चलते बाकी सदस्य नियमित रूप से काम के लिए मौजूद नहीं थे। मसौदे का बड़ा हिस्सा अंबेडकर ने ही तैयार किया और करीब सौ दिन तक संविधान सभा में खड़े होकर पूरा ड्राफ्ट समझाया और चर्चा भी की। उन्हीं का बनाया मसौदा पूरी सभा ने एक्सेप्ट किया इसलिए उन्हें ही संविधान निर्माता कहा जाता है। एक बात और बता दूं कि हमारे पूरे संविधान में हिंदूस्तान का नाम नहीं है। सिर्फ भारत और इंडिया का जिक्र है। भोपाल आई रमा ताई ने भी इस बात का जिक्र करते हुए धीरेंद्र शास्त्री के बयान अपने नाम के आगे हिंदू लगाओ पर असहमति जताई है और कहा कि ये हिंदू राष्ट्र बनाने का तरीका हो सकता है, लेकिन संविधान के अंतर्गत ऐसा नहीं है। उन्हीं की भोपाल यात्रा के हवाले से अंबेडकर पर बात निकली। चूंकि अंबेडकर का जन्म भी मध्यप्रदेश में ही हुआ था। इसलिए उनका ये इतिहास जानना और याद रखना भी हमारे लिए बहुत जरूरी है।

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