हरीश दिवेकर, भोपाल. लोकसभा चुनाव के पहले चरण के बाद से ही जो सबसे ज्यादा चिंता का विषय बना हुआ है, वो है वोटिंग परसेंटेज। वोटिंग बढ़ाने के लिए खुद अमित शाह ये ताकीद करके गए कि इस बार परफोर्मेंस रिपोर्ट में वोटिंग परसेंटेज खास मायने रखेगा। और, मोहन मंत्रिमंडल के चेहरे उसी संख्या पर तय होंगे। लेकिन, दिलचस्प बात ये है कि खुद सीएम मोहन यादव ( CM Mohan Yadav ) के क्षेत्र में मत प्रतिशत बहुत कम रहा।
पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ( Shivraj singh chouhan ) इस बार भी उनसे बाजी मारने में कामयाब रहे। इतना ही नहीं जगदीश देवड़ा भी इस मामले में फिसड्डी साबित नहीं हुए। और तो और कैलाश विजयवर्गीय भी मत प्रतिशत के मामले में एक सिंधिया समर्थक से पिछड़ गए। अब जब मध्य प्रदेश की 29 की 29 सीटों पर मतदान पूरा हो चुका है, तो चलिए आपको बताते हैं मतदान की पूरी तस्वीर और वोट परसेंटेज से जुड़े कुछ दिलचस्प फेक्ट्स।
विधानसभा चुनाव से 10 फीसदी कम वोटिंग
प्रदेश की सभी 29 सीटों के कुल वोटिंग परसेंटेज की बात करें तो इस बार 66.77 फीसदी वोटिंग हुई है। यह 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले करीब 4 फीसदी कम है। 2019 के चुनाव में प्रदेश की 29 सीटों पर 71.16% मतदान हुआ था। प्रदेश की 23 सीटे ऐसी हैं, जहां वोटिंग पहले से कम हुई है और छह ऐसी हैं, जहां पिछले चुनाव से ज्यादा मतदान दर्ज हुआ है।
सिर्फ 2019 से ही मुकाबला न करें। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव से ही कंपेयर किए जाएं तो आंकड़े चौंका सकते हैं। बीते साल हुए विधानसभा चुनाव में 77.15 फीसदी मतदान हुआ था, जबकि लोकसभा चुनाव में सिर्फ 66.77 फीसदी वोटिंग हुई है। यह विधानसभा चुनाव से करीब 10 प्रतिशत कम है।
सबसे ज्यादा चौंकाने वाली सीट इंदौर है। यह बीजेपी का गढ़ तो है ही, अब वहां पर कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेता का दबदबा पहले से ज्यादा है, जिन्हें मंत्री पद भी मिल चुका है। उनके रहते हुए इंदौर में पिछले चुनाव की तुलना में करीब आठ फीसदी कम मतदान हुआ है। ये आंकड़ा इस बार सिर्फ 60.53 प्रतिशत दर्ज हुआ है। वो भी तब जब इस सीट पर कांग्रेस या इंडिया गठबंधन कॉम्पिटीशन में था ही नहीं।
वहीं, सबसे ज्यादा 75.79 फीसदी वोटिंग खरगोन लोकसभा सीट पर हुई है। लेकिन 2019 से तुलना करें तो खरगोन ने भी निराश ही किया है। यहां पिछले लोकसभा चुनाव में 79.5 फीसदी मतदान हुआ था। यानी इस बार पिछली बार से 4 फीसदी कम वोटिंग हुई है।
वोटिंग ट्रेंड इतना क्यों बदला
ये मतप्रतिशत आखिर घटा क्यों है। तमाम कोशिशों के बावजूद किसी भी चरण में वोटिंग परसेंटेज नहीं बढ़ा है। इस मुद्दे पर भी चर्चा करेंगे, लेकिन उससे पहले वोटिंग से जुड़े कुछ ऐसे दिलचस्प फेक्ट्स, जिन्हें जानकर आप भी सोचेंगे कि ये वोटिंग ट्रेंड क्यों इतना बदला बदला सा है।
इंदौर में सबसे कम मतदान हुआ है तो बात भी यहीं से शुरू करते हैं। इंदौर में आठ विधानसभा सीटे हैं और आठों की आठ पर बीजेपी का ही कब्जा है। इसके बावजूद यहां पिछले साल के कंपेरिजन में 12 परसेंट कम वोट डले हैं। विधानसभा के मुकाबले ये परसेंटेज 17 फीसदी कम है7 इंदौर से मोहन कैबिनेट में दो मंत्री हैं एक खुद कैलाश विजयवर्गीय और दूसरे हैं तुलसी सिलावट, जो सांवेर से विधायक हैं।
कैलाश विजयवर्गीय अपने ही गढ़ में सिंधिया समर्थक तुलसी सिलावट से पिछड़ गए। विजयवर्गीय के क्षेत्र इंदौर में में 55.75 फीसदी वोटिंग हुई, जबकि मंत्री तुलसी सिलावट के क्षेत्र सांवेर में 62.05 फीसदी वोट पड़े हैं। तो क्या इसके ये मायने निकाले जा सकते हैं कि अब कैबिनेट में सिलावट का दबदबा विजयवर्गीय से ज्यादा होगा।
शायद नहीं। क्योंकि ये मायने ही अगर निकलने लगे तो इस मामले में खुद सीएम मोहन यादव भी पिछड़ते हुए ही नजर आएंगे। क्योंकि उनकी सीट पर भी वोटिंग परसेंटेज काफी कम रहा है। उज्जैन सीट से तराना से कांग्रेस विधायक महेश परमार और भाजपा के सांसद अनिल फिरोजिया के बीच मुकाबला है।
विधानसभा चुनाव में यहां की 6 सीटें भाजपा और 2 सीटें कांग्रेस ने जीती थी। लेकिन लोकसभा चुनाव में इसका कोई खास फायदा नहीं हुआ। इस सीट पर सबसे कम वोटिंग उज्जैन दक्षिण में हुई जो 65.5 फीसदी रही। यहां से मुख्यमंत्री मोहन यादव विधायक हैं। विधानसभा चुनाव के वोटिंग परसेंटेज से तुलना करें तो यहां 5 फीसदी वोट कम पड़े।
बात करें देवास सीट की तो यहां पर मुकाबला था, महेंद्र सिंह सोलंकी और कांग्रेस के राजेंद्र मालवीय के बीच में। बीते लोकसभा चुनाव से कंपेयर करें तो यहां चार फीसदी तक कम वोट पड़े हैं और विधानसभा चुनाव के मुकाबले तो मतदान 11 फीसदी कम रहा। इसी क्षेत्र में उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमान की विधानसभा सीट शुजालपुर भी आती है।
डिप्टी सीएम जगदीश देवड़ा कमाल दिखाने में रहे कामयाब
रतलाम की सीट पर मुकाबला था कांग्रेस से पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया और भाजपा की अनीता सिंह चौहान के बीच। मोहन कैबिनेट से अनीता सिंह चौहान का कनेक्शन काफी तगड़ा है। वो वन मंत्री नागिर सिंह चौहान की पत्नी हैं। चौहान अलीराजपुर से विधायक हैं। झाबुआ का गणित अगर थोड़ा जोड़ तोड़ करके समझें तो झाबुआ सीट से कांग्रेस विधायक विक्रांत भूरिया के यहां 66 फीसदी वोटिंग हुई। महिला बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया के क्षेत्र पेटलवाद में 72.65 फीसदी वोट पड़े। ये विधानसभा चुनाव की तुलना में 6 फीसदी कम है। रतलाम सिटी में 69.13 फीसदी वोटिंग हुई। यहां से चेतन काश्यप मंत्री हैं। यहां विधानसभा में 73.49 फीसदी वोट पड़े थे।
मंदसौर सीट पर वित्त मंत्री और डिप्टी सीएम जगदीश देवड़ा कमाल दिखाने में कामयाब रहे। मंदसौर में आने वाली मल्हारगढ़ सीट पर सबसे ज्यादा मतदान हुआ और मतप्रतिशत 75.08 फीसदी पहुंच गया। ये जगदीश देवड़ा का ही क्षेत्र है। ये बात अलग है कि विधानसभा चुनाव की तुलना में यहां 11 फीसदी कम वोटिंग हुई है।
धार सीट पर बीजेपी की सावित्री ठाकुर का मुकाबला कांग्रेस के राधेश्याम मुवेल से है। इस सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में 3 फीसदी वोटिंग कम हुई है, जबकि विधानसभा से तुलना करें तो 10 फीसदी कम वोटिंग हुई। इसी क्षेत्र में बीजेपी की फायरब्रांड नेता ऊषा ठाकुर आती हैं। उनके क्षेत्र में 61 फीसदी वोट पड़े, जो पूरे धार में सबसे कम हैं।
सिंधिया शिवराज को नहीं पछाड़ सके
अब बात करते हैं उन तीन दिग्गजों की सीट पर जो इस बार काफी चर्चाओं में रही। एक सीट है विदिशा, दूसरी राजगढ़ और तीसरी है गुना। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक बार फिर ये साबित कर दिया कि प्रदेश की जनता की नब्ज उनसे बेहतर कोई नहीं समझता। उनकी सीट पर सबसे ज्यादा मतदान हुआ है। विदिशा सीट पर इस बार 74.48 वोट पड़े, जबकि पिछले चुनाव में यह 71.79 फीसदी मतदान हुआ था। इस मामले में ज्योतिरादित्य सिंधिया भी उनसे पीछे रह गए हैं।
गुना में वैसे पिछले चुनाव के मुकाबले ज्यादा मतदान हुआ है। इस बार यहां 72.43 परसेंट मतदान हुआ, जबकि 2019 में 70.32 फीसदी वोट पड़े थे। लेकिन सिंधिया, शिवराज को पछाड़ नहीं सके। जिन छह सीटों पर वोटिंग ज्यादा हुई है, उनमें राजगढ़ भी शामिल है। यहां से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह चुनाव मैदान में हैं। राजगढ़ में पिछले चुनाव की तुलना में इस बार 1.65 फीसदी वोट ज्यादा पड़े हैं। सागर और भिंड में भी वोटिंग पर्सेंट बढ़ा है, लेकिन, 1 फीसदी से भी कम। जिन 23 सीटों पर वोटिंग घटी है, उनमें सीधी सबसे अव्वल है। यहां पिछले चुनाव की तुलना में सबसे ज्यादा 13 फीसदी वोट कम पड़े हैं।
वोटिंग ट्रेंड चिंता में डालने वाला
आपको क्या लगता है वोट परसेंटेज घटने की वजह क्या है। चुनाव विश्लेषकों की मानें तो मुद्दों का गायब होना और सिर्फ एक चेहरे पर चुनाव का टिका होना मतदाताओं को ज्यादा उत्साहित नहीं कर रहा। अधिकांश मतदाता ये मान चुके हैं कि इस बार चुनाव एक तरफा है, इसलिए भी मतदान में रुचि नहीं ले रहे हैं। लेकिन ये वोटिंग ट्रेंड पॉलीटिकल पार्टीज को जरूर चिंता में डालने वाला है।
Journalist Harish Diwekar Bhopal पत्रकार हरीश दिवेकर भोपाल the sootr news strike | News Strike