News Strike : इन सीटों पर मुद्दे नहीं चेहरे खास, क्या उलझेगा मतदाता ?

न्यूज स्ट्राइकः मध्‍य प्रदेश लोकसभा चुनाव में छह ऐसी सीटें हैं जहां बेहद रोचक मुकाबला है बात कर रहे हैं सिर्फ तीसरे चरण के चेहरों की। ये चुनाव 7 मई को होगा। अगर हम कहें कि छिंदवाड़ा की सीट पर भी चेहरे ही अहम थे तो गलत नहीं होगा...

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Jitendra Shrivastava
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BHOPAL. News Strike : लोकसभा चुनाव में इस बार मुद्दे क्या हैं। हर बार जब चुनाव होते हैं तो मतदाता रोजगार के नाम पर वोट डालते हैं, महंगाई मुद्दा बनती है, विकास भी एक मुद्दा होता। सड़क बिजली पानी, पेट्रोल गैस जैसे मुद्दे छाए रहते हैं, लेकिन इस चुनाव में चेहरों के आगे हर मुद्दा सेकंडरी नजर आ रहा है। बीजेपी ने पीएम मोदी का फेस आगे किया है और हर मुद्दा उनके चेहरे पर सिमटा हुआ है। न केवल इतना मध्यप्रदेश की चुनावी फिजा में भी मुद्दों से ज्याद चेहरे ही चमक रहे हैं। आइए जानते हैं कौन सी हैं ये सीटें..

मोदी के चेहरे के आगे बीजेपी में कोई चर्चा नहीं

मप्र में छह ऐसी सीटें हैं जहां बेहद रोचक मुकाबला है। हम बात कर रहे हैं सिर्फ तीसरे चरण के चेहरों की। ये चुनाव सात मई को होगा। क्योंकि इससे पहले भी ये कहें कि छिंदवाड़ा की सीट पर भी चेहरे ही अहम थे तो भी कुछ गलत नहीं होगा। इसी तरह अब तीसरे चरण में राजगढ़, विदिशा, सागर, गुना, भोपाल, मुरैना, भिंड, ग्वालियर और बैतूल में वोटिंग होना है। इन सीटों पर भी मुद्दे ही चेहरों पर भारी पड़ रहे हैं। जरा अपने आसपास गौर से देखिए। अगर आप पुराने वोटर हैं तो जरूर कुछ पुराने इलेक्शन का दौर याद कर सकेंगे। जब मतदाता वोट देने का आकलन इस आधार पर करते थे कि सरकार ने अब तक क्या-क्या काम किए। कितने वादे अधूरे छूटे और कितने काम पूरे हुए, लेकिन इस बार ऐसी चुनावी चकल्लस किसी पटिए पर सुनाई नहीं दे रही। बीजेपी ने सारा दांव पीएम मोदी पर खेला है जिसके आगे कोई चर्चा नहीं है और कांग्रेस के खाते सील कर हाथ पैर काट दिए गए। इन दो वजहों से सड़क पर न चुनावी शोर सुनाई दे रहा है न छोटी मोटी चौपालें सज रही हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर जो हालात हैं कमोबेश वही हालात राज्य में भी है। चुनावी मैदान में इतने बड़े-बड़े चेहरे अपनी किस्मत आजमा रहे हैं कि मतदाता सिर्फ उनका अंजाम जानने को बेताब है। 

विदिशाः इक्कीसवीं सदी में तस्वीर बिल्कुल बदल चुकी है

शुरूआत करते हैं विदिशा से। जहां से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट पर टिकट के ऐलान के बाद राजनीतिक पंडितों ने मान लिया था कि विदिशा में कुछ रोचक नहीं होगा। चुनाव एकतरफा कांग्रेस की झोली में जाता दिख रहा है। हालांकि, शिवराज सिंह चौहान ने अपनी शैली में सभाएं कर माहौल को जिंदा रखने की पूरी कोशिश की है। कांग्रेस की ओर से प्रतापभानु शर्मा भी पूरे जोर-शोर से अपनी जीत के प्रयास में लगे हुए हैं। अपने प्रचार में वे पुराने दिनों को याद भी करते हैं, जब वे दूसरी बार यहां से सांसद बने थे। हालांकि, इक्कीसवीं सदी में तस्वीर बिल्कुल बदल चुकी है। चुनावी मुद्दों से ज्यादा यहां मतदाता सिर्फ यही चर्चा कर रहा है कि हार जीत का अंतर कितना होगा।

भोपालः चुनावी मुद्दे तो यहां पिछले चुनाव से ही हवा हो गए

राजधानी होने के बावजूद भोपाल की सीट भी पूरी तरह से खामोश है। चुनावी मुद्दे तो खैर यहां पिछले चुनाव में ही हवा हो गए थे। वोट पोलराइजेशन के बाद किसी ने भी किसी समस्या पर सवाल उठाया ही नहीं। इस बार भी हाल कुछ ऐसा ही है। भोपाल संसदीय क्षेत्र में भाजपा के आलोक शर्मा और कांग्रेस से अरुण श्रीवास्तव मैदान में हैं। आलोक शर्मा मोदी सरकार और उनके काम के साथ राम मंदिर पर फोकर कर रहे हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय स्तर की रणनीति की तरह भोपाल प्रत्याशी अरुण श्रीवास्तव स्थानीय मुद्दों को उठा तो रहे हैं, लेकिन स्टार प्रचारकों का साथ नहीं मिलने के चलते वे इसे जनता के बीच नहीं ले जा पा रहे हैं।

बैतूलः आदिवासी वोटर किस चेहरे की चमक से होगा चकाचौंध

बैतूल में आदिवासी जरूर कुछ नाराज हैं, लेकिन उनका बहुत अंदरूनी इलाकों में होना और वहां तक प्रत्याशियों की पहुंच आसान होना एक अलग सिचुएशन बन चुका है। आदिवासी वोटों का महत्व समझ खुद पीएम मोदी प्रत्याशी दुर्गादास उइके के समर्थन में सभा कर चुके हैं कांग्रेस प्रत्याशी रामू टेकाम के लिए कमलनाथ ने सभा की। अब आदिवासी वोटर किस चेहरे की चमक से चकाचौंध होता है ये देखने लायक होगा। 

राजगढ़ः इस सीट पर टिकट वितरण के बाद आया ट्विस्ट

राजगढ़ सीट का चुनाव भी यूं आम ही होता, लेकिन यहां से कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को मैदान में उतारकर जबरदस्त ट्विस्ट डाल दिया है। दिग्विजय की एंट्री के बाद से अधिकांश लोग मुद्दे ये मेनिफेस्टो से ज्यादा दिग्विजय सिंह की सभा और पदयात्रा पर ही फोकस कर रहे हैं। डिजिटल युग में दिग्विजय सिंह प्लेकार्ड के साथ चुनाव प्रचार कर रहे हैं। यहां भी मतदाता की जिज्ञासा मुद्दों से ज्यादा इस सवाल पर हैं कि देखें इस बार कौन जीतता है।

गुनाः यहां जातिगत समीकरण साधने पर ज्यादा जोर

एक चुनाव हारने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया भी फूंक फूंक कर कदम आगे बढ़ा रहे हैं। इस बार उन्होंने पूरा चुनाव प्रचार जमीनी रखा है। यहां भी मुद्दों से ज्यादा फिलहाल मोदी का फेस आगे रखा गया है। इसके अलावा जातिगत समीकरण साधने पर ज्यादा जोर है। यही वजह है कि सिंधिया भी बड़ी भारी सभाएं करने की जगह सामाजिक सम्मेलनों में ज्यादा से ज्यादा शामिल हो रहे हैं। कांग्रेस प्रत्याशी राव यादवेंद्र सिंह  भी लगातार जोर लगा रहे हैं। यादव को इस रण में पार्टी के स्टार प्रचारकों से मदद नहीं मिल सकी है,  लेकिन सामाजिक समीकरणों का भरोसा उन्हें मैदान में बनाए हुए है।

सागरः यहां दल बदल भी मुद्दों से भटकाने वाला ही है

सागर संसदीय क्षेत्र में भाजपा की लता वानखेड़े और कांग्रेस के चंद्रभूषण बुंदेला उर्फ गुड्डू राजा के बीच है। देर से टिकट मिलने के कारण कांग्रेस प्रचार में कुछ पिछड़ गई। इस दौरान लता ने पार्टी के नेताओं, कार्यकर्ताओं के साथ गली-गली के सिंगल्स के दम पर बड़ा स्कोर खड़ा कर दिया था। चंद्रभूषण बुंदेला उर्फ गुड्डू राजा उनसे प्रचार में एक महीने पीछे जरूर रहे, लेकिन बाद में उन्होंने हेलीकॉप्टर शॉट खेलना शुरू किया। कांग्रेस की ओर से फिलहाल कोई बड़ा नेता सागर संसदीय क्षेत्र में नहीं आया है, जबकि भाजपा प्रत्याशी लता वानखेड़े के समर्थन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह आदि सभाएं कर चुके हैं। कांग्रेस ने प्रचार का तरीका बदला तो बीजेपी ने पुरानी तरकीब पर काम शुरू कर दिया। कांग्रेस की कमर तोड़ने के लिए बीजेपी ने कांग्रेस विधायक रहीं निर्मला सप्रे को तोड़ लिया। जो अब बीजेपी का हिस्सा बन चुकी हैं। सागर जिले की विधानसभा सीटों में जीत हासिल करने वाली वो एकमात्र कांग्रेसी विधायक थीं। जो अब बीजेपी के साथ हो चुकी हैं। ये दल बदल भी मुद्दों से भटकाने वाला ही साबित हुआ।

अब मतदान के नतीजे ही ये बताएंगे कि मुद्दों पर खामोश मतदाता वाकई मुद्दों को नजरअंदाज कर वोट देकर आया है। या, चेहरों की चमक बस बूथ से बाहर तक ही कायम रही। ईवीएम का बटन दबाने से पहले मतदाता ने कुछ सोचना समझना जरूरी समझा है।

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