News Strike : मध्यप्रदेश सरकार के मंत्रियों को अपने पसंदीदा स्टाफ के लिए बेक डोर ओपन करना पड़ा है। मतलब नहीं समझे आप। असल में हालात ये है कि मध्यप्रदेश में नई सरकार बने करीब दस माह का वक्त बीत चुका है, लेकिन मंत्रियों को अपना पसंदीदा स्टाफ नहीं मिल सका। अब चक्कर ये है कि मंत्री अपना पुराना पसंदीदा और तजुर्बेकार स्टाफ वापस चाहते हैं और सरकार सारे पुराने अधिकारियों को हटाकर नए अधिकारियों को मौका देना चाहती है। जब सरकार और उसके मंत्रियों के बीच इस बात को लेकर कोई तालमेल नहीं बन सका तो मंत्रियों ने नया तरीका निकाल लिया और बैक डोर से अपने चहेते अधिकारियों को अंदर बुला लिया।
21 मंत्रियों को अपने निज सहायक अभी तक नहीं मिले
सरकार चलाने का मतलब सिर्फ सत्ता पर राज करना नहीं होता। बल्कि, पूरे तालमेल के साथ पांच साल गुजारना भी सरकार की ही जिम्मेदारी है। इस जिम्मेदारी को अच्छे से पूरा करने में सरकारी मशीनरी और अफसर अहम भूमिका निभाते हैं। शायद इसलिए हर मंत्री ये चाहता है कि उसके स्टाफ में ऐसे अफसर शामिल हों जो उसकी बात को आसानी से समझ सकें। मोहन सरकार में बने मंत्री भी यही चाहते हैं कि उन्हें ऐसे अधिकारियों का साथ मिले जिसके साथ वो पहले भी काम कर चुके हैं, लेकिन सरकार इस डिसीजन के फेवर में नहीं है। जिसके चलते खबरें हैं कि करीब 21 मंत्रियों को अब तक अपने निज और विशेष सहायक नहीं मिल सके हैं। जबकि इन मंत्रियों ने जनवरी में ही सरकार के पास इसकी जानकारी भेज दी थी कि वो कौन-कौन से अधिकारियों को अपने स्टाफ में रखना चाहते हैं।
सरकारी आदेश के बिना अधिकारी मंत्रियों के स्टाफ में कर रहे काम
इसके बावजूद उन्हें सरकार की ओर से कोई आदेश नहीं मिल सके हैं। असल में मामला नए और पुराने अधिकारियों के बीच की लड़ाई में अटका है। प्रदेश में 2023 के चुनाव के बाद जब नई सरकार का गठन हुआ। तब ये स्पष्ट कर दिया गया था कि अब पुराने चेहरों को मंत्रियों के स्टाफ में जगह नहीं मिलेगी। हालांकि, मंत्रियों ने पुराने तजुर्बेकार स्टाफ की जरूरत बताते हुए नोटशीट आगे बढ़ाई थी, लेकिन उस पर अब तक अमल नहीं हुआ। जिसके बाद खबर है कि जिन अधिकारियों की सिफारिश मंत्रियों ने अपने स्टाफ के लिए भेजी थी, उनके लिए भले ही सरकार की तरफ से अनुमति नहीं मिली हो, लेकिन बगैर सरकारी आदेश के ही ज्यादातर अधिकारी मंत्रियों के स्टाफ में ही काम कर रहे हैं। यानी अधिकारियों को बैक डोर से एंट्री मिली है। कुछ अधिकारी पदस्थ तो अपने विभाग में हैं, लेकिन वह काम मंत्री के लिए कर रहे हैं, जबकि कुछ ने प्रतिनियुक्ति का फॉर्मूला अपनाते हुए मंत्रियों के स्टाफ में जगह बना ली है। कुछ अधिकारी ऐसे भी हैं जो ड्यूटी पर होने के साइन मंत्रालय या मूल विभाग में कर रहे हैं, लेकिन पूरा समय मंत्रियों के कामकाज को दे रहे हैं।
पुराने की जगह नए अधिकारियों की नियुक्तियां की जाए
बताया जा रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से सरकार को यह आदेश दिए गए हैं कि मंत्रियों के स्टाफ में पुराने की जगह नए अधिकारियों की नियुक्तियां की जाए। ऐसे में जैसे ही यह आदेश आया है तो सरकार ने सभी नियुक्तियों पर रोक लगा दी। इसके अलावा एक और वजह भी बताई जा रही है। दरअसल, नई सरकार के गठन के बाद नए मंत्रियों के स्टाफ की शुरुआत हुई थी। मंत्रियों ने अपने पसंदीदा अधिकारियों की नियुक्तियां करवानी शुरू कर दी, लेकिन इस बीच मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल के स्टाफ में दागी ओएसडी की नियुक्ति की बात सामने आई, उनके स्टाफ में श्रम लक्ष्मी प्रसाद पाठक को ओएसडी बनाया गया था, जो भ्रष्टाचार के मामले में दोषी पाए गए थे। ऐसे में जब सरकार को यह बात पता चली थी तो तुरंत एक-एक अधिकारियों की पूरी जानकारी निकाली गई। जिसके चलते इस मामले में रोक लगा दी गई थी।
इसके बाद हर मंत्री के स्टाफ में नई नियुक्ति के लिए कुछ पैरामीटर्स तय कर दिए गए हैं...
- पहला पैरामीटर है : अगर कोई अधिकारी पहले कभी किसी मंत्री के स्टाफ में नहीं रहा है तो फिर उसे तत्काल नियुक्ति मिल जाएगी.
- दूसरा पैरामीटर है : अगर कोई अधिकारी किसी मंत्री के स्टाफ में था, लेकिन अब वह नेता दोबारा मंत्री नहीं बना है तो अधिकारी को नए मंत्री के स्टाफ में जगह मिल सकती है।
- तीसरा पेरामीटर है : अगर कोई अधिकारी किसी मंत्री के स्टाफ में रह चुका है और फिर से उसी मंत्री के स्टाफ में जाना चाहता है तो उसे एंट्री नहीं मिलेगी।
यानी मंत्री के स्टाफ में वापस जगह पाने के लिए सिर्फ दो पैरामीटर ही कारगर हैं।
अब आपको बताते हैं किसी मंत्री या राज्य मंत्री को कितना स्टाफ मिल सकता है। किसी भी सरकार में शामिल मंत्रियों को शासन की तरफ से कुछ स्टाफ मिलता है। यह स्टाफ मंत्रियों की रैंक के हिसाब से उन्हें दिया जाता है। कैबिनेट मंत्री का स्टाफ अलग होता है, जबकि राज्यमंत्री का स्टाफ अलग होता है।
कैबिनेट मंत्री का स्टाफ
- एक विशेष सहायक अधिकारी ( यह अधिकारी राजपत्रित होता है)
- एक निजी सचिव (सचिव शासन में ग्रेड-2 या ग्रेड-3 का कर्मचारी होता है)
- एक निजी सहायक (सचिव शासन में ग्रेड-2 या ग्रेड-3 का कर्मचारी होता है)
- पांच कर्मचारी ग्रेड-4 के होते हैं, एक एलडीसी और एक यूडीसी होता है।
- इसके अलावा मंत्री कुछ कर्मचारियों अपने विभाग से अटैच कर सकते हैं।
राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
सरकार में जो राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के होते हैं, उन्हें लगभग कैबिनेट मंत्री के बराबर ही स्टाफ मिलता है। यानी जितना स्टाफ कैबिनेट मंत्री के पास रहता है, उतना ही राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के पास भी होगा। वहीं राज्यमंत्री के स्टाफ में विशेष सहायक नहीं मिलता है, बाकि स्टाफ में कर्मचारियों की नियुक्तियां होती हैं।
निज सहायक यानी कॉन्फिडेंशियल नेचर वाला जॉब
अब ये समझना भी जरूरी है कि मंत्री अपने स्टाफ को लेकर इतना पजेसिव क्यों है। असल में किसी भी मंत्री का स्टाफ उसके लिए बहुत अहम माना जाता है। मंत्री के पास जिस विभाग का जिम्मा होता है उस विभाग से समन्वय का काम मंत्री से ज्यादा मंत्री का स्टाफ ही करता है। मंत्री तक जरूरी जानकारी पहुंचाने और मंत्रियों के निर्देश को पूरे स्टाफ तक पहुंचाने की जिम्मेदारी इसी स्टाफ की होती है। एक तरह से ये कॉन्फिडेंशियल नेचर वाला जॉब हो जाता है। इसलिए मंत्री अपनी पसंद का स्टाफ चाहते हैं। नए साल के ही आठ महीने निकल चुके हैं, लेकिन नए और पुराने स्टाफ को लेकर सरकार और मंत्रियों के बीच खींचतान जारी है। इसका कोई नतीजा नहीं निकला तो शायद मंत्रियों ने ही दूसरा तरीका निकाल लिया है। देखना ये है कि बैकडोर से आए अधिकारियों के बूते मंत्रियों का कितने दिनों तक चलता है।
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