News Strike : ‘ओबीसी आरक्षण’ का रास्ता साफ! अब कहां फंस सकती है प्रदेश सरकार?

मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण से जुड़ी याचिका हाईकोर्ट से खारिज होने के बाद अब आगे क्या होगा। ये फैसला आने के बाद किस तरह इस पर सियासत से ने जोर पकड़ा, अब आगे क्या हो सकता है। हम आपको आसान भाषा में समझाते हैं... 

Advertisment
author-image
Harish Divekar
New Update
thesootr

News Strike OBC reservation way clear Photograph: (thesootr)

Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

News Strike : ओबीसी आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर मध्यप्रदेश में गर्माने लगा है। हाईकोर्ट ने इस मामले में यूथ फॉर इक्वलिटी संस्था की याचिका को निरस्त कर दिया है। जिसके बाद अब माना जा रहा है कि 13 प्रतिशत पदों पर रुकी हुई भर्ती प्रक्रिया शुरू हो सकेगी। कानूनी भाषा में बात करते हैं तो मामला थोड़ा पेंचिदा लगता है। हम आपको आसान भाषा में समझाते हैं कि ओबीसी आरक्षण से जुड़ी याचिका हाईकोर्ट से खारिज होने के बाद अब आगे क्या होगा। कैसे अब बॉल सरकार के पाले में आ चुकी है।

फैसला आने के बाद किस तरह से इस पर सियासत से ने जोर पकड़ लिया है और अब आगे क्या हो सकता है। क्या अब उन पदों पर भर्ती आसान होगी जिन्हें अब तक रोक कर रखा गया था या फिर कोई और कानूनी पेंच उलझ सकता है। ये फैसला किस तरह से सरकार की मुश्किलों को बढ़ा सकता है। ये सब जानने के लिए इस खबर को पूरा पढ़िए ताकि प्वाइंट दर प्वाइंटर इसे आसानी से समझ सकें।

आरक्षण के मुद्दे पर दोनों दलों ने सियासी रोटियां सेंकी

ओबीसी आरक्षण का मामला मध्यप्रदेश में कई सालों से चला आ रहा है। यूं देखा जाए तो बीजेपी हो या फिर कांग्रेस दोनों ही दल इस मुद्दे पर सियासी रोटियां सेंकने से बाज नहीं आए हैं। साल 2018 में कमलनाथ सरकार के आने के बाद इस मुद्दे ने ज्यादा जोर पकड़ा। शायद यही वजह थी कि मंगलवार को इधर अदालत का फैसला आया और उधर पूर्व सीएम कमलनाथ ने ट्वीट की झड़ी लगा दी। सबसे पहले तो अपने ट्वीट्स के जरिए उन्होंने ओबीसी का आरक्षण बढ़ाने के लिए अपनी ही पीठ थपथपाई औरह उसके बाद सरकार से सवाल भी किए कि अब इसे जल्द लागू कर ओबीसी समुदाय को इसका फायदा दें। पर, क्या ये इतना आसान है।

मध्यप्रदेश की राजनीति का सबसे बड़ा खुलासा, प्रदेश की सियासी उथल-पुथल सबसे पहले न्यूज स्ट्राइक पर देखिए; सटीक विश्लेषण की गारंटी

ओबीसी आरक्षण को लागू करना तलवार पर चलने के समान 

कहने को तो मध्यप्रदेश के मुखिया मोहन यादव खुद ओबीसी समाज से आते हैं। इससे पहले सीएम रहे शिवराज सिंह चौहान भी ओबीसी तबके को ही बिलॉन्ग करते थे। उसके बाद भी आरक्षण लागू करना क्या वाकई इतना आसान हैं। इस मामले में सरकार की भी अपनी कुछ मजबूरियां हैं। ओबीसी आरक्षण को लागू करना ऐसी तलवार पर चलने के समान है जिसके दोनों तरफ धार है। यानी इसे लागू किया तो भी मुश्किल और अगर लागू नहीं किया तो भी मुश्किल। कहां उलझ रही है सरकार। उस पर भी बात होगी। पहले इस पूरे मामले को प्वाइंट दर प्वाइंट समझने की कोशिश करते हैं।

शिवराज-सिंधिया की हर रणनीति पर न्यूज स्ट्राइक की नजर, कमलनाथ की प्लानिंग की भी होगी खबर!

2018 के चुनाव के दौरान 27 फीसदी करने की उठी थी मांग

बात करते हैं साल 2018 से पहले की। तब मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार थी। जिनके राज में ओबीसी को 14 फीसदी आरक्षण मिला था। 2018 के चुनाव के दौरान इसे बढ़ाकर 27 फीसदी करने की मांग उठी। ओबीसी तबके के नेताओं का कहना था कि ओबीसी की आबादी बढ़ी है। इसलिए आरक्षण में भी इजाफा होना चाहिए। इस मुद्दे को दोनों पार्टियों ने चुनाव के समय खूब भुनाया पर ओबीसी ने कांग्रेस को चुना और कमलनाथ की सरकार बन गई। सत्ता में आने के बाद कमलनाथ ने वादा निभाया और पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा निभाया। सरकार के स्तर पर तो काम पूरा हो गया था। असल ट्विस्ट उसके बाद आया। विधानसभा में ये कानून पारित होते ही अतिशी दुबे नाम की डॉक्टर ने ओबीसी आरक्षण को चुनौती थी। ये चुनौती नीट एग्जाम में ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण पर थी। इस याचिका पर कोर्ट ने उस वक्त स्टे लगा दिया। अब कानूनी पेचिदगी यहीं से शुरू हुई। उस समय कोर्ट का फैसला सिर्फ उस याचिका के लिए था और स्टे भी नीट परीक्षा के लिए ही था। पर उसे आधार बनाकर पीएससी मेडिकल ऑफिसर्स की भर्ती में भी इस पर रोक लगवा दी गई।

न्यूज स्ट्राइक: बीजेपी में जल्द होगा बड़ा फेरबदल, सिंधिया समर्थकों पर भी गिरेगी गाज!

कर्मचारियों की कमी बताकर की भर्ती प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की मांग

इसके बाद मध्यप्रदेश में बड़े सियासी उलटफेर हुए। कमलनाथ की सरकार गिरी। शिवराज सिंह चौहान फिर सत्ता में आए। शिवराज सरकार ने भी इस मामले में गंभीरता दिखाई और आरक्षण पर तत्कालीन महाधिवक्ता से उनकी राय भी मांगी। उस समय की स्थिति ये थी कि तीन अलग-अलग मामलों में 27 फीसदी आरक्षण पर स्टे लग चुका था। तब शिवराज सरकार ने कर्मचारियों की कमी का हवाला देते हुए भर्ती प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की अनुमति मांगी। तब तक ओबीसी आरक्षण को कानून के खिलाफ कई याचिकाएं अदालत में लग चुकी थीं। जिन्हें देखते हुए पुराने नियम के तहत ही भर्ति प्रक्रिया शुरू करने के आदेश दिए गए। एक बार फिर याद दिला दें पुराने नियम यानी कि 14 फीसदी ओबीसी आरक्षण के साथ ही भर्ती प्रक्रिया शुरू करने के आदेश हुए।

26 अगस्त 2021 को यूथ फॉर इक्वालिटी ने दायर की याचिका  

राजनीति फिर गर्माई और राज्य में ओबीसी आंदोलन ने जोर पकड़ लिया। सरकार को इससे नुकसान का अंदाजा हो गया था इसलिए डैमेज कंट्रोल का तरीका अपनाते हुए एक कमेटी बनाई गई। इसके अध्यक्ष बने तत्कालीन कैबिनेट मंत्री रामखेलावन पटेल। इस कमेटी ने 26 अगस्त 2021 को एक परिपत्र जारी कर दिया जिसमें कहा गया कि जिन तीन मामलों में अदालत ने स्टे दिया है। उसे छोड़कर बाकी मामलों में 27 फीसदी आरक्षण ही दिया जाए, लेकिन मामले में फिर एक नया ट्विस्ट आ गया। परिपत्र जारी होने वाले दिन ही यानी कि 26 अगस्त 2021 को ही यूथ फॉर इक्वालिटी ने एक याचिका दायर की। जिसमें परिपत्र को असंवैधानिक बताया। जिसके बाद कोर्ट ने परिपत्र पर भी स्टे लगा दिया।

न्यूज स्ट्राइक: बिरसा मुंडा की जयंती पर बीजेपी लागू करेगी पेसा-एक्ट, क्या है जयस का दावा?

27 फीसदी आरक्षण के हिसाब से भर्ती वाले पद अब भी खाली 

इस स्टे के बाद फिर से भर्ती प्रक्रिया रुक गई। जिसके बाद सरकार ने भर्ती के लिए नया फॉर्मूला निकाला। ये फॉर्मूला था 87 बाय 13 (87/13) का फॉर्मूला। इसे जरा ध्यान से सुने और गौर से समझें। सरकार ने पदों का कुछ इस तरह से गुणा भाग किया कि कुछ हद तक नई भर्ती का तोड़ निकाल लिया गया। सरकार ने तय किया कि 87 फीसदी पद पुराने आरक्षण के आधार पर भरे जाएंगे और 13 फीसदी पद खाली छोड़े जाएंगे। जिन पर भर्ती 27 फीसदी आरक्षण के हिसाब से भर्ती होगी। वो पद अब भी खाली पड़े हैं।

अब जो हाईकोर्ट का ताजा फैसला आया है उसके बाद ये फॉर्मूला फेल हो गया। अब नए फैसले के बारे में तफ्सील से बात करते हैं। यूथ फॉर इक्वालिटी की जिस याचिका को कोर्ट ने खारिज किया है वो याचिका लगी थी गिरीश कुमार सिंह नाम के व्यक्ति ने। जो सागर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। इस याचिका पर पिछड़ा वर्ग की ओर से दलील दी गई कि उनका याचिका से सीधा संबंध नहीं है। दूसरा उनका ट्रांसफर छत्तीसगढ़ में हो चुका है। जिसके बाद वो उस परिपत्र को चुनौती देने का अधिकार नहीं रखते हैं। इस तर्क को अदालत में मजबूती से पेश किया गया। जिसे मद्देनजर रखते हुए हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

अब जो भी फैसला होगा बहुत सोच समझ कर होगा

अब सरकार के सामने रास्ता साफ है। सरकार चाहें तो परिपत्र का पालन करते हुए 27 फीसदी आरक्षण के तहत भर्ति प्रक्रिया पूरी कर सकती है, लेकिन ये काम भी बहुत आसान नहीं होगा। क्योंकि सरकार अगर ओबीसी को पूरा मौका देती है तो इससे दूसरे वर्ग नाराज होंगे और अगर नहीं देती है तो जाहिर तौर पर ओबीसी की नाराजगी मोल लेनी पड़ेगी। इसलिए जो भी फैसला होगा वो बहुत सोच समझ कर होगा। एक बार और है अगर इस मामले में याचिका करने वाला कोई और पक्ष सुप्रीम कोर्ट की शरण ले लेता है। तो ये मामला फिर से अटक भी सकता है।

मध्यप्रदेश News Strike न्यूज स्ट्राइक OBC RESERVATION ओबीसी आरक्षण न्यूज स्ट्राइक हरीश दिवेकर News Strike Harish Divekar