News Strike : फिर टला PCC का गठन, अब नई प्लानिंग में जुटे जीतू

कांग्रेस मध्यप्रदेश में एक नया एक्सपेरिमेंट करने जा रही है। वो भी तब जब कांग्रेस के संगठन के कुछ अते पते नहीं है। जीतू पटवारी को अध्यक्ष बने सात माह से ज्यादा हो चुके हैं। आज न्यूज स्ट्राइक में बात करेंगे जीतू की नई प्लानिंग की...

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Jitendra Shrivastava
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News Strike : मध्यप्रदेश में क्या कांग्रेस रिवाइवल मोड में है या फिर खुद को एक और प्रयोग की भट्टी में झौंकने की तैयारी कर रही है। असल में कांग्रेस मध्यप्रदेश में एक नया एक्सपेरिमेंट करने जा रही है। वो भी तब जब कांग्रेस के संगठन के कुछ अते पते नहीं है। कांग्रेस से जीतू पटवारी को अध्यक्ष बने सात माह से ज्यादा का समय बीत चुका है। अब तक उन्होंने संगठन को कसने या नया ताजा करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है और लगता है कि फिलहाल उनका पीसीसी को नया स्वरूप देने का कोई मूड भी नहीं है। इसकी जगह वो कुछ नया करने की कोशिश में जुट गए हैं।

सियासी गलियारों में यही सवाल कांग्रेस में आगे क्या...

पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद कांग्रेस ऐसे रास्ते की तलाश में है, जिस पर चलकर वो खुद को थोड़ा बदला हुआ महसूस कर सके। इसकी शुरूआत तब हुई जब पार्टी आलाकमान ने प्रदेश इकाई के नेतृत्व में जबरदस्त बदलाव किया। पुराने और बुजुर्ग हो चुके नेताओं से कमान लेकर एकदम नए नेताओं के हाथ में सौंप दी। जीतू पटवारी हार के बावजूद प्रदेश के अध्यक्ष बने और उमंग सिंगार नेता प्रतिपक्ष बने। उसके बाद से ही हर सियासी गलियारा अक्सर इन बातों से गूंजता है कि कांग्रेस में आगे क्या होगा।

जीतू की नई रणनीति में पीसीसी गठन की बात नहीं

वैसे जीतू पटवारी बहुत फायर ब्रांड नेता माने जाते हैं और उमंग सिंगार भी एग्रेसिव राजनीति ही करते रहे हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद भी सियासी पटल से पूरी तरह गायब रहे। राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो कांग्रेस काफी बदली हुई दिखाई देती है। गली मोहल्लों और हाईवेज पर मोहब्बत की दुकान सजाने वाली कांग्रेस सदन में सियासी मैदान में पहले से कहीं ज्यादा आक्रमक और फास्ट हो चुकी है, लेकिन वो रफ्तार और धार दोनों प्रदेश लेवल पर मिसिंग है। न केवल रफ्तार और धार बल्कि, सक्रियता की कमी भी अब तक नजर आती रही। कांग्रेस के ही नेता ये सवाल पूछते रहे कि कांग्रेस में संगठन का विस्तार कब होगा। नए सिरे से पीसीसी का गठन कब होगा, लेकिन अब इन सारे सवालों पर फुल स्टॉप लगता नजर आ रहा है। क्योंकि जीतू पटवारी नई सोच और नई रणनीति के साथ आगे आए हैं। उनकी इस नई रणनीति में फिलहाल पीसीसी के गठन की कोई जगह नहीं है।

पंचायत लेवल पर कांग्रेस कमेटी के गठन की तैयारी

कांग्रेस अब उस थीम पर काम रही है जो उसके संगठन को निचले लेवल से ही मजबूत करना शुरू कर दे। लगातार चुनावों में मिली हार और दलबदल करने वाले नेताओं ने कांग्रेस की रीढ़ कमजोर कर दी है। यही वजह है कि अब संगठन को सिर्फ ऊपरी रूप से सजाने संवारने की जगह जमीनी स्तर से रंग रोगन करने और रिवाइव करने की तैयारी शुरू हो की है। बता दें कि कांग्रेस की अब तक की सबसे छोटी इकाई ब्लॉक कांग्रेस कमेटी हुआ करती थी, लेकिन कांग्रेस अब इससे भी छोटी इकाई गढ़ने की तैयारी में है। अब कांग्रेस ब्लॉक से और नीचे जाकर पंचायत लेवल पर पेनिट्रेट करने की तैयारी कर रही है। जिसके तहत पूरे प्रदेश में पंचायत कांग्रेस कमेटी का गठन किया जाने वाला है। इसका स्वरूप कुछ इस तरह होगा कि हर ग्राम पंचायत स्तर पर 11 सदस्य होंगे। ये एक कमेटी का हिस्सा होंगे। इस कमेटी का प्रमुख ग्राम पंचायत कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष ही हुआ करेगा और जो पद दिए जाएंगे वो होंगे उपाध्यक्ष, सचिव, सहसचिव और सदस्य। जिनकी टीम कमेटी को हेड करेगी।

23 हजार ग्रापं में 2.53 लाख नए वर्कर्स का टारगेट

ये आइडिया बहुत मंथन और माथापच्ची के बाद उपजा माना जा रहा है। कांग्रेस भी अब बीजेपी की तरह कैडर बेस पार्टी बनने की राह पर चल निकली है। जिसकी शुरूआत इन्हीं कमेटियों से होने जा रही है। इस रणनीति को आलाकमान से भी हरी झंडी मिल चुकी है। जिसके बाद अब प्रदेश की 23 हजार ग्राम पंचायतों को कांग्रेस टारगेट कर रही है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक कांग्रेस 2 लाख 53 हजार नए कांग्रेस वर्कर नियुक्त करेगी। इन वर्करों में पद और कार्यकाल के अनुसार काम तो होगा ही। कुछ ऐसे वर्कर भी होंगे जो फुल टाइम कार्यकर्ता होंगे। पंचायत स्तर पर खुद को मजबूत करने के बाद कांग्रेस बूथ लेवल पर नेटवर्क मजबूत करने की तरफ बढ़ेगी। हालांकि, इसके लिए दो साल बाद का समय तय किया गया है। दो साल बाद कांग्रेस का प्लान हर बूथ पर बूथ लेवल एजेंट नियुक्त करने का है। इनकी संख्या चार होगी। प्लान ये है कि दो बूथ लेवल एजेंट जिन्हें सियासी भाषा में बीएलए कहा जाता है, वो बूथ के अंदर होंगे और दो बीएलए बूथ के बाहर होंगे। 

दल बदल में बड़े नेताओं की गिनती, छोटों की नहीं

अब आपको बताते हैं कांग्रेस के लिए ये कवायद जरूरी क्यों है। असल में पिछले चार साल में कांग्रेस से बड़ी संख्या में दल बदल हुआ है। अक्सर कोई बड़ा नेता पार्टी बदलता है तो उसकी तस्वीरें और खबरें अखबार में छपती हैं, लेकिन छोटे स्तर पर दल बदल की न कोई खबर आती है, न तस्वीर मिलती है और न ही गिनती होती है कि कितने कार्यकर्ता इधर से उधर हो गए हैं। इसे एक उदाहरण से समझाता हूं। कुछ ही समय पहले रामनिवास रावत ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का रुख किया। वो बड़े नेता थे तो सुर्खियों में आ गए, लेकिन एक बड़े नेता का दलबदल सिंगल व्यक्ति का दल बदल नहीं होता। उसके साथ कार्यकर्ताओं की पूरी फौज भी इधर से उधर हो जाती है। एक और आकलन ये है कि लोकसभा चुनाव से पहले करीब तीन महीने में 8500 नामी गिरामी नेताओं ने पाला बदला है। ये गिनती बड़े नेताओं की नहीं है। इसमें कुछ छुटभैये नेता, कुछ जिला स्तर के कुछ ब्लॉक स्तर के नेता शामिल हैं। जो भले ही छोटे क्षेत्र में दबदबा रखते थे, लेकिन कांग्रेस के लिए जरूरी थे। ऐसे नेताओं ने पार्टी बदली तो उनके समर्थक भी दूसरी पार्टी के गुणगान पर मजबूर हो गए।

आने वाला समय ही बताएगा नई कवायद का असर...

दल बदल के बाद से ही कांग्रेस प्रदेश में बुरी तरह कमजोर हो चुकी है। जमीनी लेवल पर कांग्रेस का पूरा संगठन ध्वस्त हो चुका है। ऐसे में अगर ऊपरी लेवल पर संगठन मजबूत कर भी लिया जाए तो उस खोखलेपन को खत्म कर पाना मुश्किल होगा। जो जमीनी लेवल पर मिसिंग कार्यकर्ताओं की वजह से बना रहेगा। इसलिए कांग्रेस ने ये नई जुगत निकाली है। अब देखना ये है कि कांग्रेस अपनी ही प्लानिंग को मजबूती से एग्जीक्यूट करने में कितना कामयाब होती है और आने वाले समय में उसका क्या असर दिखाई देता है।

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