News Strike:  वीडी शर्मा के बाद BJP प्रदेशाध्यक्ष कौन , नरोत्तम मिश्रा सहित ये नेता रेस में शामिल!

बीजेपी के लिए मध्यप्रदेश ऐसा राज्य हैं जहां एक नेता ढूंढो तो पांच मिलते हैं। यही स्थिति प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए भी है। इसके लिए बीजेपी में एक नहीं सात-सात नेता दावेदार नजर आते हैं... आइए बात करते हैं उन्हीं की... 

Advertisment
author-image
Jitendra Shrivastava
New Update
THESOOTR
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

News Strike: मध्यप्रदेश का सीएम फेस बदला जा चुका है और अब बारी बीजेपी का प्रदेशाध्यक्ष को बदलने की है। इस पद की रेस में बीजेपी के सात बड़े नेता शामिल हैं। ये सात नाम पर बाद में आते हैं। पहले आपको बता दूं कि बतौर बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा ने एक शानदार पारी खेली है। वो साल 2020 में पार्टी को सबसे बड़े उपचुनाव जिताने में कामयाब रहे। उन्हीं की सरपरस्ती में पिछला विधानसभा चुनाव हुआ और लोकसभा चुनाव के नतीजे तो आपके सामने हैं ही। कांग्रेस का न सिर्फ प्रदेश की लोकसभा सीटों से सूपड़ा साफ हुआ है। बल्कि, जमीनी स्तर पर भी कांग्रेस बुरी तरह कमजोर हो चुकी है और बीजेपी मजबूत। जिसके बाद अब खबर है कि वीडी शर्मा को केंद्र में बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। जिसके बाद ये पद खाली होगा और किसे सौंपा जाएगा। इस पर सबकी नजरें टिकी हैं।

बीजेपी में अध्यक्ष पद के एक नहीं सात-सात दावेदार 

वैसे बीजेपी के पास विकल्पों की कोई कमी नहीं है। बीजेपी के लिए मध्यप्रदेश ऐसा राज्य हैं। जहां एक नेता ढूंढने निकलो तो पांच मिल जाते हैं। यही स्थिति प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए भी है। इस पद के लिए बीजेपी में एक नहीं सात-सात नेता दावेदार नजर आते हैं। लेकिन उस नेता को भी अपनी काबीलियत साबित करनी होगी। उसके बाद ही वो इस पद की रेस को जीत सकेगा। बीजेपी का प्रदेशाध्यक्ष बनने के लिए नेता को वरिष्ठ होना जरूरी तो है ही। साथ ही उसमें संगठन को बनाए रखने की ताकत होना चाहिए। वो लीडरशिप क्वालिटी होना चाहिए जो पार्टी के उसूल और डिसिप्लीन को बरकरार रख सके। जातिगत समीकरणों को देखते हुए भी बहुत हद तक नए चेहरे का चुनाव होगा। 

ब्राह्मण वर्ग को रिझाने वीडी को बनाया था अध्यक्ष

वीडी शर्मा की सबसे खास बात ये थी कि वो संघ के बहुत खास माने जाते हैं। संघ ने ही उनके नाम पर मुहर लगाई थी, जबकि उस वक्त इस पद की रेस में नरोत्तम मिश्रा, कैलाश विजयवर्गीय और खुद शिवराज सिंह चौहान शामिल थे। लेकिन संघ ने वीडी शर्मा को चुना। माना गया कि ब्राह्मण वर्ग को रिझाने के लिए बीजेपी ने ये फैसला लिया है, लेकिन क्या अब बीजेपी किसी ब्राह्मण चेहरे को ही इस पद पर जगह देगी या फिर किसी दलित चेहरे का चुनाव करेगी। रेस में कुल सात नाम शामिल हैं और सातों की अपनी-अपनी खासियत हैं। चलिए जानते हैं कि उन खासियत के दम पर कौन इस रेस में आगे निकल सकता है। वैसे शिवराज सिंह चौहान इस पद के सबसे प्रबल उम्मीदवार रहे हैं। वो पार्टी का ओबीसी चेहरा होने के साथ-साथ लोकप्रिय चेहरा रहे हैं और मप्र की नब्ज खूब समझते हैं, लेकिन अब जब वो सांसद का चुनाव भारी मतों से जीत चुके हैं तो अब वो केंद्रीय में किसी बड़ी जिम्मेदारी के हकदार बन गए हैं। लिहाजा इस रेस से बाहर माने जा सकते हैं। 

अब बात करते हैं बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के लिए उन नामों की, जिनकी दावेदारी अब भी कायम...

इससे पहले जब वीडी शर्मा का कार्यकाल पूरा हुआ तब राजेंद्र शुक्ला, कैलाश विजयवर्गीय और नरेंद्र सिंह तोमर के नामों की  भी चर्चा होती रही, लेकिन राजेंद्र शुक्ला को डिप्टी सीएम का पद मिल चुका है। कैलाश विजयवर्गीय मोहन कैबिनेट में अहम भूमिका संभाल रहे हैं और नरेंद्र सिंह तोमर स्पीकर बन चुके हैं तो उनके नाम भी इस लिस्ट से अब बाहर ही कहे जाएंगे। 

नरोत्तम मिश्रा हो सकते हैं ब्राह्मण फेस से रिप्लेस 

इस रेस में सबसे पहला नाम आ रहा है नरोत्तम मिश्रा का। अगर पार्टी ब्राह्मण फेस को ब्राह्मण फेस से ही रिप्लेस करती है तो नरोत्तम मिश्रा का नाम कंसिडर किया जा सकता है। नरोत्तम मिश्रा शिवराज सरकार में हर बार मंत्री रहे हैं और ग्वालियर चंबल में उनकी पकड़ मजबूत है। इससे भी ज्यादा बड़ा क्रेडिट उन्हें सबसे ज्यादा कांग्रेसियों को भाजपाई बनाने का दिया जा सकता है। जो धीरे-धीरे कांग्रेस की जड़ें कमजोर करते रहे। नतीजा ये हुआ कि बीजेपी क्लीन स्वीप करने में कामयाब हुई। विधानसभा चुनाव हारने के बाद फिलहाल नरोत्तम मिश्रा के पास कोई अहम जिम्मेदारी नहीं है, लेकिन वो लाइमलाइट से बाहर नहीं हुए हैं। जिसके बाद वो प्रदेशाध्यक्ष की पद में सबसे आगे नजर आते हैं।

गोपाल भार्गव के लिए सीनियर्स को संभालना मुश्किल नहीं

बात ब्राह्मण चेहरों की है तो गोपाल भार्गव का नाम भी ले ही लिया जाए। जो फिलहाल विधानसभा में बीजेपी के सबसे वरिष्ठ विधायक हैं। साल 2018 में मिली हार के बाद उन्होंने ही विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का जिम्मा संभाला था। बुंदेलखंड में उनका होल्ड भी जबरदस्त है। सीनियर होने के नाते प्रदेश के नेताओं को संभालना भी उनके लिए मुश्किल नहीं होगा।

दलित-आदिवासी वोटर्स में पैठ बनाने कुलस्ते पर नजर

इस लिस्ट में विधानसभा चुनाव हारने वाले और हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव जीतने वाले फग्गन सिंह कुलस्ते भी शामिल हैं। जो प्रदेश के बड़े आदिवासी चेहरा हैं। यही वजह है कि विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में उनका टिकट नहीं काटा। मोदी सरकार में भी वो राज्य मंत्री रहे, लेकिन इस बार केंद्रीय कैबिनेट में उन्हें शामिल किए जाने की संभावनाएं कम हैं। हो सकता है पार्टी उन्हें प्रदेशाध्यक्ष का पद सौंप दे। वैसे भी बीजेपी की नजर अब दलित और आदिवासी वोटर्स पर टिकी है। फग्गन सिंग कुलस्ते को ये पद सौंपकर बीजेपी इस वोट बैंक में और मजबूत पैठ बनाने के बारे में सोच सकती है।

सुमेर सिंह सोलंकी का प्रबुद्ध वर्ग में खासा दखल

एक और नाम है सुमेर सिंह सोलंकी का, जिन्हें बीजेपी ने राज्यसभा भी भेजा। सुमेर सिंह सोलंकी बाकियों के मुकाबले जरा युवा चेहरे हैं, लेकिन वो अनुसूचित वर्ग से आते हैं। इसके अलावा शहीद भीमा नायक शासकीय महाविद्यालय में प्रोफेसर थे। जिस वजह से प्रबुद्ध वर्ग में भी उनका खासा दखल है। बीजेपी सांसद माकन सिंह सोलंकी के भतीजे होने के नाते राजनीति में भी पुरानी पकड़ है। साथ ही आरएसएस के साथ उनका साथ बहुत लंबा रहा है। प्रदेशाध्यक्ष की पसंद में अगर आरएसएस की चली तो सुमेर सिंह सोलंकी के नाम पर भी मुहर लग सकती है। 

दलित वर्ग को साधने में भी लाल सिंह आर्य भी मददगार

इसी फेहरिस्त में लाल सिंह आर्य का नाम भी शामिल किया जा सकता है। वो पहले ही पार्टी के अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी बखूबी संभाल चुके हैं। दलित वर्ग को साधने में भी लाल सिंह आर्य मददगार हो सकते हैं। 

भूपेंद्र सिंह को भी बड़े मंत्रालय संभालने का अनुभव

शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में उनके खासमखास मंत्री रहे भूपेंद्र सिंह को भी रेस से बाहर नहीं किया जा सकता। उनके पास बड़े-बड़े मंत्रालय संभालने का लंबा अनुभव है। सागर जिले सहित पूरे बुंदेलखंड में जबरदस्त धाक है। ठाकुरों के वोट साधने में भी भूपेंद्र सिंह का चेहरा कारगर होगा, लेकिन सिर्फ एक निगेटिव प्वाइंट उनके खिलाफ है। वो है उनके ही क्षेत्र के नेताओं की उनके खिलाफ नाराजगी। जिसकी गूंज कुछ समय पहले मंत्रालय तक में सुनाई दी थी। अगर आलाकमान उस घटना को नजरअंदाज करते हैं तो भूपेंद्र सिंह के नाम पर भी चर्चा हो सकती है।

नए अध्यक्ष पर दल बदलू कार्यकर्ताओं की भी चुनौती

वीडी शर्मा के कार्यकाल की खासियत ये रही कि उनके दौर में बीजेपी का संगठन तो मजबूत हुआ ही। कांग्रेस की जड़े प्रदेश में बुरी तरह कमजोर हो गईं। अब आने वाले अध्यक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही रहेगी कि वो कांग्रेस को मजबूत न होने दे और बीजेपी के संगठन को मजबूत बनाकर रखे। एक और चुनौती होगी दल बदलू कार्यकर्ताओं की। बीजेपी भले ही बहुत अच्छी स्थिति में हो लेकिन दल बदलकर आए कार्यकर्ताओं की वजह से पार्टी के मूल कार्यकर्ताओं में जबरदस्त नाराजगी है। जिसका खामियाजा आने वाले चुनावों में पार्टी को भुगतना पड़ सकता है। जो भी वीडी शर्मा की जगह पार्टी में प्रदेश के शीर्ष पद को संभालता है उसे इन चनौतियों से पार पाना होगा। ताकि पार्टी को लगातार कामयाबी मिलती रहे। अब आलाकमान का फैसला तय करेगा कि अध्यक्ष की रेस में शामिल किस चेहरे को जीत मिलती है और वो जमीनी परेशानियों को दूर करने में कितने काबिल साबित होते हैं।

thesootr links

 सबसे पहले और सबसे बेहतर खबरें पाने के लिए thesootr के व्हाट्सएप चैनल को Follow करना न भूलें। join करने के लिए इसी लाइन पर क्लिक करें

द सूत्र की खबरें आपको कैसी लगती हैं? Google my Business पर हमें कमेंट के साथ रिव्यू दें। कमेंट करने के लिए इसी लिंक पर क्लिक करें

मध्यप्रदेश वीडी शर्मा बीजेपी का प्रदेशाध्यक्ष News Strike