News Strike: कहां है अजय सिंह, नई टीम पर कुछ दिन पहले जताई थी नाराजगी!

अजय सिंह यानी पूर्व सीएम अर्जुन सिंह के बेटे। जो मध्यप्रदेश के नेता प्रतिपक्ष भी रहे हैं। विंध्य के क्षेत्र में अजय सिंह अच्छा खासा दखल रखते हैं। इस बार अपनी सीट चुरहट से करीब 27 हजार वोटों से उन्होंने जीत भी दर्ज की...

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Harish Divekar
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News Strike : कहां हैं नेताजी में... आज बात करेंगे कांग्रेस के उस नेता की जिसे प्रदेश में तीसरे नंबर का दर्जा हासिल है। वो पार्टी के कुछ अहम पदों पर रहे। पिछले विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत भी हासिल की, लेकिन कांग्रेस ने जो पूरा निजाम बदला तो अब अपनी ही पार्टी से कुछ उखड़े-उखड़े रहते हैं। हाल ही में जब कांग्रेस की नई कार्यकारिणी का गठन हुआ तब इस नेता ने नाराजगी भी जताई, लेकिन उसकी बैठक से नदारद रहे। ये नेता हैं कांग्रेस की राजनीति में छोटे ठाकुर के नाम से मशहूर अजय सिंह। 

दो बार नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं अजय सिंह

अजय सिंह यानी पूर्व सीएम अर्जुन सिंह के बेटे। जो मध्यप्रदेश के नेता प्रतिपक्ष भी रहे हैं। विंध्य के क्षेत्र में अजय सिंह अच्छा खासा दखल रखते हैं। इस बार अपनी सीट चुरहट से करीब 27 हजार वोटों से उन्होंने जीत भी दर्ज की। इतनी बड़ी जीत के बाद ये माना जाने लगा था कि अजय सिंह दोबारा नेता प्रतिपक्ष बन सकते हैं, लेकिन आलाकमान के एक फैसले ने सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। पुराने दिग्गजों को दोहराने की जगह इस बार कांग्रेस ने नए चेहरों को आगे लाने का काम किया है। जिसके बाद जीतू पटवारी को प्रदेशाध्यक्ष बनाया और नेता प्रतिपक्ष बने उमंग सिंगार। अजय सिंह को ये मौका नहीं मिल सका, जबकि वो इससे पहले दो बार नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं। साल 2018 में वो अपनी इसी सीट यानी कि चुरहट से चुनाव हार गए थे, जबकि उस साल कांग्रेस को जीत मिली थी और सत्ता में आने का मौका भी। 

छोटे ठाकुर का दबदबा अब भी कायम है

अजय सिंह को शायद तब भी उम्मीद थी कि उनके जैसे सीनियर नेता को पार्टी कुछ न कुछ पद या बड़ी जिम्मेदारी जरूर सौंपेगी। वैसे उनके पिता अर्जुन सिंह और कमलनाथ के रिश्ते हमेशा ठीक ही रहे हैं। वही संबंध आगे भी कंटिन्यू रहेस, लेकिन सत्ता में आते ही कुछ दूरियां जरूर बढ़ीं थीं। जिसकी वजह बताई जाती है अर्जुन सिंह की प्रतिमा के अनावरण का कार्यक्रम। खबर थी कि कमलनाथ उनकी प्रतिमा का अनावरण करने पहुंचेंगे, लेकिन वो नहीं जा सके। इसके बाद दोनों नेताओं के बीच दूरियों की खबर आई। सरकार बनी और गिर भी गई, लेकिन अजय सिंह को कोई बेहतर पद नहीं मिल सका। हार की वजह से अजय सिंह ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे आक्रमक तेवर भी अख्तियार नहीं कर सके थे।

हालांकि, हारे तो लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया भी थे, लेकिन विधानसभा में जीत का पोस्टर बॉय उन्हें ही माना गया था। उनके साथ समर्थकों की संख्या भी ज्यादा थी। इसलिए वो चुप नहीं रहे और संगठन में सही जगह नहीं मिली तो दूसरी पार्टी चुनने का रास्ता अख्तियार किया, लेकिन अजय सिंह ने ऐसा नहीं किया। मंशा नहीं थी या अवसर नहीं था। ये कहना जरा मुश्किल है, लेकिन हारे हुए प्रत्याशी के वो पांच साल अजय सिंह ने निकाले, लेकिन उसके ही अगले चुनाव में यानी पिछले चुनाव में जबरदस्त तरीके से बाउंस बैक भी किया और विरोधियों को ये संदेश भी दिया कि छोटे ठाकुर का दबदबा अब भी कायम है।

विधायकों को पद देने पर भी जताई नाराजगी 

कांग्रेस पार्टी अब अजय सिंह के दबदबे को मानने के मूड में नहीं है। नए नेताओं की नई लीडरशिप तैयार कर कांग्रेस ने पुराने नेताओं को एक सख्त संदेश तो दिया है। ये बात अलग है कि नए नेता भी खास कमाल नहीं दिखा सके हैं। अध्यक्ष पद संभालने के बाद जीतू पटवारी पहले तो दस महीने तक अपनी टीम नहीं बना सके। टीम बनी तो कई नाम ऐसे थे जो उन्हीं की पार्टी को हजम नहीं हुए। नाराजगी जताने वालों में अजय सिंह भी पीछे नहीं थे। उन्होंने खुलकर नाराजगी जताई। अजय सिंह ने बिना नाम लिए कहा कि जो लोग कांग्रेस को इस हाल में पहुंचाने के जिम्मेदार हैं उन्हीं की सलाह से अगर टीम बनेगी तो फिर कांग्रेस का भगवान ही मालिक है। अजय सिंह को भी इस टीम में कार्यकारी समिति का हिस्सा बनाया गया था, लेकिन विंध्य को तवज्जो नहीं मिली थी। इस बात से भी अजय सिंह नाराज नजर आए। विधायकों को पद देने पर भी उन्होंने नाराजगी जताई और कहा कि अगर विधायक संगठन का काम देखेगा तो क्षेत्र का काम कब देखेगा। अजय सिंह ने मुखर होकर विरोध जताया, लेकिन इस टीम की बैठक का हिस्सा नहीं बने। 

सीएम पुत्र की छवि में बंधे रहे, जनाधार छूटता गया

कुछ ही दिन पहले हुई नई कार्यकारिणी की बैठक में कुछ नेता शामिल नहीं हुए। जिसमें कमलनाथ, दिग्विजय सिंह सहित अजय सिंह का नाम भी शामिल है। अजय सिंह पार्टी के सीनियर नेता हैं। नेता प्रतिपक्ष भी रहे हैं, लेकिन वो कभी पूरे प्रदेश में अपना जनाधार तैयार नहीं कर सके। अजय सिंह का पॉलीटिकल ग्राफ देखें तो वो या तो नेता प्रतिपक्ष रहे, या बड़े नेताओं के बीच उठते बैठते रहे या फिर विंध्य तक ही सिमटे रहे। दिग्विजय सिंह की तरह कार्यकर्ताओं के बीच खड़े होकर घिरे रहने वाली उनकी तस्वीरें कम ही नजर आती हैं। या फिर ऐसी तस्वीर भी मुश्किल से ही दिखेगी जब अजय सिंह किसी आंदोलन में पानी की धार झेलते हुए या पुलिस वालों के हाथों घसीटते हुए नजर आए। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि वो सीएम पुत्र होने की छवि में इस कदर बंधे रहे कि जनाधार पीछे छूटता गया।

शायद वही वजह रही कि सीनियर नेता होने के बावजूद और विंध्य का बड़ा चेहरा होने के बावजूद अजय सिंह को हर बार वो प्रिफरेंस नहीं मिली जिसके वो हकदार थे। इस बार जब पार्टी ने पूरी लाइन ऑफ लीडरशिप ही बदल दी है। तब अजय सिंह किसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के साथ दिख सकेंगे ये भी कहना मुश्किल है।

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