News Strike: कहां हैं अर्चना चिटनिस? अब किस तरह क्षेत्र में एक्टिव हैं

मध्यप्रदेश के संदर्भ में तो सबसे पहले नाम उमा भारती का ही याद आता है। इसके अलावा भी कुछ नेत्रियां रही हैं जैसे प्रज्ञा ठाकुर, कुसुम मेहदेले। जो तेजतर्रार नेता हैं और अपनी बेबाक बयानी के लिए भी जानी जाती हैं...

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Harish Divekar
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News Strike where is Archana Chitnis Photograph: (thesootr)

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कहां है नेताजी में... आज बात करेंगे एक ऐसी बीजेपी नेता की जिसकी शैली कुछ अलग है। अक्सर जब हम बीजेपी की महिला नेताओं की बात करते हैं। खासतौर से मध्यप्रदेश के संदर्भ में तो सबसे पहले नाम उमा भारती का ही याद आता है। इसके अलावा भी कुछ नेत्रियां रही हैं जैसे प्रज्ञा ठाकुर, कुसुम मेहदेले। जो तेजतर्रार नेता हैं और अपनी बेबाक बयानी के लिए भी जानी जाती हैं, लेकिन हम जिस नेता की बात कर रहे हैं। वो इनसे थोड़ी अलग हैं। जो मंत्री भी रहीं, हारी भी। कभी टिकट मिला, कभी नहीं। पर पार्टी के खिलाफ बयानबाजी नहीं की। हालांकि, विवादों से नाता गहरा ही रहा है।

अर्चना चिटनिस शिवराज सरकार में रहीं मंत्री

हम आज जिस नेता की बात कर रहे हैं वो नेता हैं अर्चना चिटनिस। जो शिवराज सरकार में विधायक और मंत्री भी रही हैं। अर्चना चिटनिस साल 2003 में चुनाव जीतकर जब विधानसभा पहुंचीं। तब उन्हें महिला एवं बाल विकास मंत्री, उच्च शिक्षा, तकनीकि शिक्षा जैसे विभाग संभालने का मौका मिला। इसके बाद वो 2008 नें फिर जीतीं। तब उन्हें फिर तकनीकि शिक्षा, स्कूल शिक्षा और उच्च शिक्षा विभाग संभालने का मौका मिला। जीत का सिलसिला 2013 में भी जारी रहा। हालांकि, मंत्री पद तब उन्हें 2016 में विस्तार के बाद मिला। इसके बाद अर्चना चिटनिस साल 2018 का चुनाव एक निर्दलीय नेता सुरेंद्र सिंह शेरा से हार गईं। उसके बाद से अर्चना चिटनिस का ग्राफ कुछ नीचे गिरने लगा। क्षेत्र में निर्दलीय की जीत हुई थी तो यकीनन उसकी पूछ परख भी बढ़ने लगी। 

चिटनिस कुछ ऐसा बोल गईं कि सुर्खियों में छा गईं

असल में अर्चना चिटनिस जिस साल चुनाव हारीं उस साल सरकार कांग्रेस की बनी। दोनों ही दल की हार जीत मार्जिन के नजदीक ही थी। इसलिए निर्दलीयों की पूछ परख बहुत ज्यादा थी। फिर चाहें सरकार कांग्रेस की हो या फिर सत्ता में वापसी के लिए दांव पेंच रच रही बीजेपी की बात हो। इसलिए अर्चना चिटनिस की उनके क्षेत्र में पूछ परख कुछ कम हो गई। इसके बाद वो एक सभा करने पहुंचीं। वहां भी कुछ ऐसा बोल गईं कि वो सुर्खियों में छा गईं। अपनी हार के बाद उन्होंने क्षेत्र के मतदाताओं से कहा कि जिन्होंने उन्हें वोट नहीं दिया है उन्हें इस बात का अफसोस होगा। इस बीच अर्चना चिटनिस और सांसद नंद कुमार सिंह चौहान के बीच खटपट की खबरें भी आती रहीं। असल में नंद कुमार सिंह चौहान भी बुरहानपुर से विधायक रह चुके थे। उसके बाद वो बुरहानपुर खंडवा लोकसभा सीट से ही सांसद का चुनाव जीतते रहे। इस वजह से बुरहानपुर में उनका दखल हमेशा बना रहा। जो अर्चना चिटनिस को काफी खटकता था। 

जब अर्चना चिटनिस ने अनिल भौंसले को बोलने से रोका

ये अनबन करीब छह साल पहले तब खुलकर सामने आई जब नंद कुमार सिंह चौहान के समर्थक अनिल भौंसले को एक कार्यक्रम में बोलने नहीं दिया। अनिल भौंसले तब महापौर थे। उन्हें बोलने से रोकने पर नंद कुमार सिंह कार्यक्रम से नाराज होकर चले गए थे। उसके बाद विधायक और सांसद के बीच नाराजगी का मामला आलाकमान के दरबार में भी गूंजा था। शेरा की जीत के बाद ये खबरें भी खूब जोर पकड़ने लगी कि उन्हें नंद कुमार सिंह चौहान की शह मिल रही है। इसलिए वो अर्चना चिटनिस को हरा सके। हालात तो ये भी बनते दिखाई दिए कि शायद आगे भी अर्चना चिटनिस को टिकट मिलना मुश्किल हो जाए, लेकिन साल 2023 के चुनाव से पहले परिस्थितियां फिर अर्चना चिटनिस के लिए अनुकूल हो गईं। पार्टी के सर्वे में वो फिर बुरहानपुर के लिए खरी साबित हुईं। पार्टी ने उन्हें ही टिकट दिया। 

जीत के बाद उम्मीद थी कि अर्चना को मंत्री पद मिलेगा

साल 2021 में नंद कुमार सिंह चौहान का निधन हो गया था। उसके बाद से उनके बेटे हर्ष सिंह ने टिकट हासिल करने के लिए पूरी ताकत लगा दी, लेकिन जब बात नहीं बन सकी तब  बागी होकर चुनाव लड़ा। इस चुनाव में ये अंदेशा था कि हर्ष सिंह जीते या न जीतें लेकिन वोट काटकर चिटनिस की हार का कारण बन सकते हैं, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। चिटनिस ने अपने चुनाव प्रचार में जीतने के बाद कुछ वोटर्स को अपने खर्च पर राम मंदिर के दर्शन कराने का ऐलान कर दिया। उनकी जीत में ये भी एक अहम फैक्टर साबित हुआ। अर्चना चिटनिस ने सुरेंद्र सिंह शेरा को ही हराकर ये जीत हासिल की। उनकी जीत के बाद ये उम्मीद भी थी कि शायद उन्हें मंत्री पद भी मिलेगा। कैबिनेट विस्तार के दिन वो भोपाल में मौजूद भी थीं, लेकिन इस बार उन्हें कैबिनेट में शामिल होने का मौका नहीं मिला। 

सुर्खियों में छाई रहने की करती रहती हैं कोशिश

जिसकी एक वजह उन पर लगे गबन के आरोप भी माने गए। पिछले साल अगस्त माह में बालचंद शिंदे नाम के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने ये आरोप लगाया कि चिटनिस ने बुरहानपुर के किसानों के करीब 2 करोड़ और दूसरी मंडियों के करीब 7 करोड़ 50 लाख रुपए का गबन किया है। इस मामले पर हाईकोर्ट ने लोकायुक्त और सरकार दोनों को जांच के आदेश भी दिए। अर्चना चिटनिस को मंत्री पद जरूर नहीं मिला, लेकिन वो अपने क्षेत्र में पूरी तरह एक्टिव हैं और सुर्खियों में छाई रहने की पूरी कोशिश भी करती हैं। जुलाई में वो अचानक क्षेत्र के सरकारी अस्पताल पहुंची और वहीं अफने टखने में दर्द का इलाज करवाया। कुछ ही दिन पहले वो फोपनार मेले में गईं। यहां वो अपने समर्थकों के साथ बुलडोजर पर बैठी दिखाई दीं। असल में मेले में पानी भरा हुआ था। अफसरों तक ये बात पहुंचाने के लिए अर्चना चिटनिस ने ये तरीका चुना। 

अपने क्षेत्र के मुद्दे भी वो जोर शोर से उठा रही हैं और जरूरत पड़ने पर संबंधित मंत्रियों को पत्र भी लिख रही हैं। इससे ये साफ है कि अर्चना चिटनिस क्षेत्र में दबदबा बनाए रखने के लिए एक्टिव हैं। पर क्या ये सक्रियता उन्हें इस बार मंत्री पद या अगली बार टिकट मिलने की गारंटी बन पाएगी।

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