News Strike : कहां हैं गोपाल भार्गव, क्या दमदार वापसी की है तैयारी ?

राजनीति अटकलों का बाजार है हो सकता है वक्त के साथ कुछ और डेवलपमेंट सामने आए। अभी तो इतना कहेंगे कि मध्यप्रदेश के जिस नेता की बात हम कर रहे हैं वो पार्टी के मौजूदा विधायकों में सबसे सीनियर हैं फिर भी उन्हें मेनस्ट्रीम से दूर कर दिया गया है...

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Harish Divekar
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कहां हैं नेताजी में... आज बात करेंगे एक ऐसे नेता की जिसे बीजेपी ने नेपथ्य में डाल दिया था, लेकिन कुछ मामलों में नेताजी के तीखे तेवर और उपचुनाव में मिली एक हार ने फिर पार्टी में उनकी बखत बढ़ा दी है। अब खबर है कि बीजेपी अपने जिस दिग्गज और सीनियर नेता को अब तक इग्नोर कर रही थी वो अब कभी भी किसी अहम जिम्मेदारी के साथ नजर आ सकते हैं। हालांकि, राजनीति अटकलों का बाजार है हो सकता है वक्त के साथ कुछ और डेवलेपमेंट सामने आए। फिलहाल तो इतना ही कहेंगे कि जिस नेता की बात हम कर रहे हैं वो पार्टी के मौजूदा विधायकों में सबसे सीनियर हैं फिर भी उन्हें मेनस्ट्रीम से दूर कर दिया गया है।

सागर से तीन कद्दावर नेताओं में एक ही भारी 

कहते हैं एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकतीं। उसी तरह ये भी सच है कि एक ही जगह पर या जिले में दो कद्दावर नेता एक साथ नहीं रह सकते और साथ रहते हैं तो कभी न कभी आपस में टकराते जरूर हैं। हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के सागर जिले की। यहां से दो नहीं बल्कि तीन-तीन बड़े नेता हैं। एक भूपेंद्र सिंह, एक गोपाल भार्गव और एक गोविंद सिंह राजपूत। तीनों ही सागर जिले की अलग-अलग विधानसभा सीटों से आते हैं। तीनों ही दमखम में एक दूसरे से कम नहीं है। संयोग देखिए तीनों ही शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में मंत्री भी रहे। दमखम की तो बात अपनी जगह है, लेकिन सीनियरिटी देखी जाए तो गोपाल भार्गव इन दोनों पर भारी हैं। वैसे भूपेंद्र सिंह का कद भी कम नहीं है। वो शिवराज सिंह चौहान के सीएम रहते उनके करीबी भी रहे हैं, लेकिन इन दिनों वो भी अग्रिम पंक्ति से पीछे खिसका दिए गए हैं। 

गोपाल भार्गव और शिवराज के बीच भी रहीं तल्खी 

गोपाल भार्गव का भी यही हाल है। वैसे गोपाल भार्गव भी हर बार मंत्री रहे, लेकिन शिवराज सिंह चौहान के आखिरी कार्यकाल में दोनों के बीच जरा तल्खी आ गई थी। उसकी वजह मानी गई गोपाल भार्गव का नेता प्रतिपक्ष बनना। जिस वक्त मध्यप्रदेश में कमलनाथ की सरकार थी। तब शिवराज सिंह चौहान ने नेता प्रतिपक्ष का पद स्वीकार नहीं किया था। उस वक्त गोपाल भार्गव को ये ओहदा मिला था। इसके बाद से गोपाल भार्गव और सीएम शिवराज सिंह चौहान के बीच तल्खी की खबरें आती रही हैं। पिछले ही साल लोक निर्माण विभाग के ईएनसी के पद पर तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान ने किसी और अफसर की नियुक्ति को मंजूरी दी थी, जबकि इस विभाग के मंत्री खुद गोपाल भार्गव थे और किसी और अधिकारी को इस पद की जिम्मेदारी सौंपना चाहते थे। इसके बाद ये अटकलें लगने लगी कि सीएम ने उन्हीं के विभाग में उनकी किरकिरी कर दी है। 

पीडब्लयूडी मंत्री रहते सरकार के फैसले पर नाराजगी 

शिवराज सिंह चौहान के अंतिम कार्यकाल में नाराजगी जाहिर करने में गोपाल भार्गव भी कभी पीछे नहीं रहे। पीडब्लयूडी मंत्री रहते हुए ही उन्होंने अपनी ही सरकार के एक फैसले पर नाराजगी जताई। उनके गुस्से की आग दूसरे मंत्रियों तक भी पहुंची थीं। असल में शिवराज केबिनेट में ही ये तय हुआ था कि सारे निर्माण कार्य एक ही एजेंसी करेगी। जिसके लिए लोक निर्माण विभाग के तहत पीआईयू गठित हुआ, लेकिन कुछ साल बाद दूसरे विभागों ने भी काम कराने के लिए टेंडर निकाल दिए। जिस पर गोपाल भार्गव ने नाराजगी जाहिर की थी। एक मौका और था जब गोपाल भार्गव ने खुले तौर पर नाराजगी जताई। इस बार उनकी नाराजगी में उनके साथ थे गोविंद सिंह राजपूत सागर जिले के बीजेपी जिलाध्यक्ष और एक विधायक ये नाराजगी थी तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान के सबसे करीबी मंत्री भूपेंद्र सिंह के खिलाफ। नाराजगी दर्ज कराने के लिए गोपाल भार्गव समेत सभी लोग एक साथ मंत्रालय तक आ गए थे। ये भी साल 2023 में हुए विधानसभा चुनाव से पहले का मामला है। हालांकि, बाद में पार्टी लाइन फॉलो करते हुए गोपाल भार्गव ने अपने तेवर को शांत भी कर दिया था। 

भार्गव नाराजगी के बावजूद पार्टी के अनुशासन में रहे 

कहने का मतलब ये है कि गोपाल भार्गव पार्टी के उन नेताओं में से है जो प्रदेश स्तर पर काफी बड़ा कद रखते हैं। सीनियरिटी की बात करें तो खुद नौ बार के विधायक हैं। शिवराज कैबिनेट में अलग-अलग समय पर कई अहम पद संभाल भी चुके हैं और जब जरूरत पड़ती है अपनी ही पार्टी को ये अहसास करवा देते हैं कि कहां क्या गलत हो रहा है। इस बार जब मोहन कैबिनेट का गठन हुआ तब भी गोपाल भार्गव ने कैबिनेट का हिस्सा न बनने पर अपनी नाराजगी दर्ज करवाई, लेकिन वो हमेशा उस अनुशासन से बंधे रहे जिसे बीजेपी फॉलो करती है। इसलिए खुलेतौर पर या ओछी बयानबाजी करने की जगह उन्होंने गरिमा के साथ सलीके से अपनी बात कही। तब से वो शांत ही रहे। उसके बाद चौथे रीजनल इंडस्ट्रियल कॉन्क्लेव के दौरान वो फिर नाराज दिखे। जब कार्यक्रम में उनकी सीट जूनियर विधायकों के बाद दी गई थी। सिर्फ वही नहीं भूपेंद्र सिंह भी इस बर्ताव का शिकार हुए। तब दोनों ने अपनी नाराजगी दिखाने में जरा भी देर नहीं की और सीएम की स्पीच से पहले ही कार्यक्रम छोड़कर रवाना हो गए। 

गोपाल भार्गव की इन मुलाकातों का मतलह क्या है...

अब गोपाल भार्गव का नाम एक बार फिर सुर्खियों में आ रहा है। करीब एक महीना पहले वो अपनी नाराजगी को लेकर खबरों में थे। उन्होंने अफसरों के बीच विधायकों की सुनवाई न होने पर जबरदस्त तरीके से नाराजगी जाहिर की थी। जिसके बाद वो भोपाल भी आए थे। इस दौरान मोहन सरकार के दोनों कैबिनेट मंत्री यानी कि राजेंद्र शुक्ल और जगदीश देवड़ा उनसे मुलाकात करने पहुंचे। उसके बाद शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह और पशुपालन मंत्री लखन पटेल भी उनसे मिलने पहुंचे। सभी के साथ उनकी लंबी चर्चा भी हुई। हालांकि, ये खुलकर बाहर नहीं आया कि इन मुलाकातों का सबब क्या था।

भार्गव बहुत जल्द मेन स्ट्रीम की राजनीति में नजर आएंगे!

सुनने में आ रहा है कि विजयपुर सीट पर उपचुनाव में मिली हार के बाद अब बीजेपी बुंदेलखंड को लेकर गंभीर हो गई है। जिस वजह से गोपाल भार्गव को फिर से पुराना रसूख वापस दिए जाने पर विचार हो रहा है। संभव है कि वन मंत्री के खाली पड़े पद पर गोपाल भार्गव दोबारा नजर आएं। हालांकि, इस एक पद के लिए बीजेपी के बहुत से नेता कतार में हैं। पर, ये भी उतना ही सच है कि गोपाल भार्गव की सीनियरिटी की बराबरी कर पाने वाला कोई नेता इस रेस में नहीं है। तो क्या ये उम्मीद की जा सकती है कि भार्गव बहुत जल्द मेन स्ट्रीम की राजनीति में वापस नजर आएंगे।

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