News Strike : कहां हैं कटार वाली विधायक Usha Thakur?

कहां हैं नेताजी में... हम जिस नेता की आज बात कर रहे हैं, वो हैं मध्यप्रदेश की पूर्व मंत्री और मौजूदा विधायक उषा ठाकुर। जो अपने काम से ज्यादा अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रही हैं। उषा ठाकुर ने अभी एक एग्रेसिव स्टेटमेंट दिया है। 

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Harish Divekar
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 News Strike : कहां हैं नेताजी में... आज बात करेंगे ऐसी नेता कि जो बीजेपी में उमा भारती की वसीयत की सही मायने में हकदार हो सकती हैं। जो हिंदुत्व पर मुखर रहती हैं और जरूरत पड़ने पर महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर भी बयान देती हैं। राजनीतिक बयानों में उग्रता, तीखापन और आक्रमकता उनकी पहचान कह लीजिए या उनकी शैली कह लीजिए। वो बहुत दिनों से शांति का खोल ओढ़े रही, लेकिन हाल ही में वो खोल से बाहर निकली और अपनी शैली में बयान दिया। इसलिए उन पर इस बार चर्चा करना तो बनता ही है।

एग्रेसिव स्टेटमेंट देने वाली नेता हैं उषा ठाकुर 

हम जिस नेता की आज बात कर रहे हैं, वो हैं पूर्व मंत्री और मौजूदा विधायक उषा ठाकुर। जो अपने काम से ज्यादा अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रही हैं। बस समझ लीजिए कि कल ही की बात है जब उषा ठाकुर ने अपनी शैली के अनुसार एक एग्रेसिव सा स्टेटमेंट दिया है। उषा ठाकुर ने अपने बयान में कहा कि हर सनातनी को अपने घर में एक बड़ा डंडा, दो तलवारें और एक बंदूक रखनी चाहिए। ताकि अपने परिवार और अपने मोहल्ले की रक्षा खुद कर सके। ये बयान उन्होंने महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती के एक बयान के जवाब में दिया। इल्तिजा मुफ्ति ने हिंदुत्व को एक बीमारी बताया और कहा था कि हिंदू धर्म को बदनाम कर इसे अल्पसंख्यकों और खासतौर से मुसलमानों के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। बीजेपी इसे अपने वोट बैंक के लिए इस्तेमाल कर रही है। इसी बयान के जवाब में उषा ठाकुर ने सनातनियों के हथियार रखने की बात कही थी। आपको बता दें कि उषा ठाकुर खुद अपने साथ कटार लेकर चलती हैं। इसलिए उनकी पहचान कटार वाली विधायक के रूप में भी बनी हुई है।

दुष्कर्मियों को सरेआम फांसी देने वाला बयान भी दिया

बात करते हैं उषा ठाकुर के बयानों की ही क्योंकि ये पहला मौका नहीं है जब उषा ठाकुर ने इस तरह के बयान दिए हों। जैसा हम पहले ही कह चुके हैं। उषा ठाकुर हमेशा से ही अपने आक्रमक बयानों के लिए ही जानी जाती रही हैं। इससे पहले भी वो इसी तरह के बयान दे चुकी हैं। करीब दो साल पहले उन्होंने दुष्कर्मियों को सरेआम फांसी देने वाला बयान दिया था। अभी कुछ ही दिन पहले उन्होंने अपना ये बयान दोहराया भी है और कहा कि ऐसे आरोपियों को कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए। उन्होंने कहा ऐसे आरोपियों को शवों को चौराहे पर टांग देना चाहिए ताकि उन्हें चील कौए नोंच नोंचकर खाएं। अपने एक बयान में तो वो इस बात की हिमायत तक कर चुकी हैं कि ऐसे आरोपियों के माता पिता को भी सजा दी जानी चाहिए। क्योंकि उनकी परवरिश में ही कमी की वजह से बच्चे ऐसा काम करते हैं।

उषा ठाकुर को इस बार मंत्री मंडल में भी नहीं मिली जगह

उषा ठाकुर के बयानों की बात चली ही है तो एक और बयान मुझे याद आता है। साल 2022 में उन्होंने खंडवा दौरे के दौरान कहा था कि हिंदुओं को मुसलमानों से धार्मिक कट्टरता सीखनी चाहिए। उन्हें अपना आदर्श बना लेना चाहिए। सिंहस्थ के मामले में भी उषा ठाकुर मुखर हैं। उन्होंने साफ कहा है कि महाकाल के पचास किमी के दायरे में कोई मुस्लिम होटल नहीं होना चाहिए। साथ ही सिंहस्थ में गैर हिंदुओं को रोजगार भी नहीं मिलना चाहिए। इन बयानों के मार्फत आप ये तो समझ ही गए होंगे कि उषा ठाकुर हमेशा ही इस तरह के बयान देती रहीं हैं। इसके बावजूद उन्हें पिछले चुनाव में मुश्किल से टिकट मिला और अब मंत्रिमंडल में भी उन्हें शामिल नहीं किया गया है। 

विजयवर्गीय से बढ़े मतभेद तो इंदौर से कटा टिकट

उषा ठाकुर 2003 में पहली बार विधायक बनी थीं। उसके बाद 2013 और 2018 का चुनाव भी जीतीं। 2020 में जब सत्ता में बीजेपी की वापसी हुई तब उन्हें मंत्री बनने का मौका भी मिला। इस बार महू के कुछ स्थानीय नेताओं ने उन्हें बाहरी बताकर टिकट देने का विरोध किया था। 2018 में जब उन्हें टिकट मिला था तब भी विवाद हुआ था। असल में पार्टी ने उन्हें इंदौर तीन विधानसभा सीट की जगह महू से टिकट दिया था। इसकी वजह बताई गई उषा ठाकुर के कैलाश विजयवर्गीय से मतभेद। तब पूर्व मंत्री कुसुम मेहदेले ने कहा था कि उषा ठाकुर के साथ गलत हुआ है। उस वक्त कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय को उषा ठाकुर की सीट से टिकट दिया गया था। टिकट बदलने पर भी उषा ठाकुर के तेवर तेज तर्रार ही थे। उन्होंने कैलाश विजयवर्गीय का नाम लिए बिना कहा कि पार्टी के महासचिव ने राष्ट्रीय अध्यक्ष को सेट करके मुझे इंदौर से महू भेज दिया है।

हिंदुत्व का ध्वज उठाए तीखे बयान देना जारी

इस बार मुश्किल से उषा ठाकुर को टिकट मिला। वो जीतीं, लेकिन इस बार उन्हें मंत्री पद नहीं मिला सका। बावजूद इसके कि वो पार्टी लाइन पर चलते हुए हिंदुत्व का ध्वज उठाए घूम रही हैं। वैसे ही तीखे बयान दे रही हैं। फिर भी उन्हें मंत्री पद से दूर ही रखा गया है। इसकी वजह मानी जा रही है कैबिनेट में कैलाश विजयवर्गीय की मौजूदगी। इसके अलावा इंदौर से खुद विजयवर्गीय और तुलसी राम सिलावट हैं ही। ऐसे में उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी कैबिनेट में भरपूर हो ही रहा है। 

तो अब उनके मंत्री बनने की उम्मीद तो कम ही लगती है। पर ये जरूर उम्मीद की जा सकती है कि उनके धारदार और तीखे बयान जरूरत पड़ने पर जरूर सुनने को मिलते रहेंगे।

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