News Strike: कहां है केदारनाथ शुक्ला, हार के बाद क्या है सियासी भविष्य

कहां हैं नेताजी में... आज हम जिस नेता की बात कर रहे हैं वो नेता हैं केदारनाथ शुक्ल। केदारनाथ का नाम कभी इस कदर सियासी गलियारों में गूंजा करता था कि पूरी बीजेपी उनकी धाक मानती थी। उनकी गिनती विंध्य के बड़े और कद्दावर नेताओं में शुमार थी...

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Harish Divekar
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News Strike where is Kedarnath Shukla Photograph: (thesootr)

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कहां हैं नेताजी में... हम बात करेंगे ऐसा नेता की, जिसका पूरा पॉलिटिकल करियर एक गंभीर घटना ने चौपट कर दिया। उसके बाद अपनी ही पार्टी से बगावत की ऊल जूलूल बयान भी दिए। इसके बाद हालात ये है कि अब पार्टी में न वापसी की कोई उम्मीद फिलहाल नजर आती है और सम्मान की बात तो खैर छोड़ ही दीजिए। ये नेता कभी विंध्य के कद्दावर नेता के रूप में गिने जाते थे, लेकिन पार्टी का हाथ क्या छूटा घर बार तक बचाने के लाले पड़ गए। 

एक कांड के बाद शुक्ला की सीट भी गई और साख भी

आज हम जिस नेता की बात कर रहे हैं वो नेता हैं केदारनाथ शुक्ल। केदारनाथ शुक्ल का नाम कभी इस कदर सियासी गलियारों में गूंजा करता था कि पूरी बीजेपी उनकी धाक मानती थी। उनकी गिनती विंध्य के बड़े और कद्दावर नेताओं में शुमार थी, लेकिन एक कांड के बाद उसकी साख भी जाती रही, सीट भी जाती रही और उसके बाद सियासी सत्ता पूरी तरह से छिन गई। खुद केदारनाथ शुक्ला को ये इल्म नहीं होगा कि वो बीजेपी से दामन छुड़ाएंगे और उसके बाद बुरी तरह हार का मुंह भी देखेंगे। केदारनाथ शुक्ला सीधी के उस कांड के बाद सुर्खियों में आए थे। जिसके बाद पूरी बीजेपी में हड़कंप मच गया था। ये मान लिया गया था कि अब विंध्य में बीजेपी को खासा नुकसान झेलना पड़ेगा। इस नुकसान से बचने के लिए शिवराज सिंह चौहान ने पीड़ित आदिवासी को घर भी बुलाया और उसके पैर भी धोए।

रीति को टिकट मिलते ही केदारनाथ शुक्ला ने बगावत कर दी

बीजेपी इसके बाद जबरदस्त तरीके से डैमेज कंट्रोल करने पर अमादा हुई। केदारनाथ शुक्ला की लाख कोशिशों के बावजूद उन्हें विधानसभा चुनाव का टिकट नहीं दिया। पार्टी को इस डैमेज कंट्रोल का फायदा भी हुआ। बीजेपी उनकी सीट से चुनाव जीती, लेकिन केदारनाथ शुक्ला नहीं जीत सके। असल में पिछले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने उनका टिकट काट दिया। इस चुनाव से पहले वो लगातार चार बार सीधी सीट से ही चुनाव जीत चुके थे। इसके बावजूद पार्टी ने सीधी कांड के चलते उनका टिकट काटा और सांसद रीति पाठक को चुनावी मैदान में उतार दिया। इस बात से नाराज शुक्ला ने पार्टी से बगावत का बिगुल बजा दिया था। सबसे पहले तो उन्होंने शक्ति प्रदर्शन का रास्ता चुना। उन्होंने ऐलान कर दिया कि वो पैदल मार्च करेंगे और गांधी प्रतिमा पर माल्यार्पण करेंगे।

वो इतने पर ही नहीं रुके थे, टिकट कटने के बाद उनके निशाने पर रीति पाठक भी कई बार रहीं। उन्होंने तंज भी कसा कि क्षेत्र की जनता और सांसद से ही पूछ लिया जाए कि वो कितनी बार क्षेत्र में आई हैं। क्या उन्होंने क्षेत्र के विकास पर सौ रुपए भी खर्च किए हैं। वो यह भी कहने से नहीं चूके कि रीति पाठक की जीत पीएम मोदी के प्रभाव से हुई है। वो खुद अपने वर्चस्व से चुनाव भी नहीं जीत सकतीं। केदारनाथ शुक्ला ने संगठन पर भी आरोप लगाए थे कि संगठन के लोगों ने आलाकमान को मिस गाइड किया है और सर्वे में सीधी से उनकी हार दर्शाई है।

केदारनाथ शुक्ला के नाम के साथ अक्सर जुड़े रहे विवाद 

इससे पहले भी केदारनाथ शुक्ला पार्टी से खुलकर नाराजगी जता चुके हैं। साल 2020 में बीजेपी की सत्ता में वापसी के बाद उन्हें मंत्री पद मिलने की उम्मीद थी, लेकिन पूरे मंत्रिमंडल में ही विंध्या का दबदबा शुरुआत में काफी कम रहा। इसके बाद केदारनाथ शुक्ला ने ये कहते हुए नाराजगी जताई थी कि विंध्य को सरकार में जगह कम मिली है। इस मौके पर उन्होंने गिरीश गौतम को विधानसभा अध्यक्ष बनने पर बधाई दी थी। केदारनाथ शुक्ला के नाम के साथ विवाद अक्सर ही जुड़े रहे। सीधी कांड से पहले साल 2022 के अप्रैल में एक स्थानीय पत्रकार के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने और उसे अर्धनग्न हालत में हवालात में रखवाने पर भी वो विवादों में घिरे थे। सीधी कांड की तरह ये मुद्दा भी राष्ट्रीय स्तर पर गूंजा था। इन दोनों मामलों से हुई किरकिरी के बाद ही बीजेपी ने उनका टिकट काटने का सख्त फैसला लिया था। 

रीति पाठक से मुकाबले में शुक्ला 74 हजार वोटों से हारे

हालांकि, केदारनाथ शुक्ला अपनी जीत को लेकर कॉन्फिडेंट थे या यूं कहें कि ओवरकॉन्फिडेंट थे। वो पहले तो ये माहौल बनाते रहे कि वो किसी और दल से चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन फिर ऐलान किया कि वो निर्दलीय ही चुनाव लड़ने वाले हैं। बीच में ये खबरें भी आईं कि केदारनाथ शुक्ला को मनाने की कोशिश जारी हैं, लेकिन वो मैदान छोड़ने को तैयार नहीं थे। चुनाव में जो नतीजे सामने आए वो उनके लिए बेहद चौंकाने वाले थे। रीति पाठक से मुकाबले में वो 74 हजार वोटों से हारे। उन्हें सिर्फ 13 हजार 856 वोट ही मिल सके थे। उन्हें इस सीट पर कांग्रेस से भी कम वोट मिले थे। इस चुनाव में केदारनाथ शुक्ला ने जो तेवर दिखाए उसके बाद से उनका बीजेपी से नाता टूट सा गया है और दिन भी तकरीबन फिर चुके हैं। अब उनके नाम की सुर्खियां क्षेत्र में रोबदाब के चलते दिखाई या सुनाई नहीं देती।

अभी कुछ ही माह पहले वो खबरों में इसलिए रहे क्योंकि उन्हें बैंक का नोटिस मिला था। असल में उन्होंने अपनी पत्नी सावित्री शुक्ला के नाम पर लोन लिया था। 4 करोड़ 85 लाख के लोन को वो समय पर नहीं चुका सके। इसके बदले में इंडियन बैंक ने उनके वेयरहाउस की नीलामी का नोटिस जारी कर दिया था। ये वेयरहाउस, शुक्ला अपने पैतृक गांव हड़बड़ों में बनवा रहे थे। मामला इतना बढ़ चुका था कि बैंक ने 17 जून तक निविदा की प्रोसेस भी पूरी कर ली थी। ये निविदाएं 19 जून को खोली जाने वाली थीं।

देखना होगा कि केदारनाथ शुक्ला करेंगे जबरदस्त कम बैक?

इस पूरे मामले पर शुक्ला ने ये कह कर सफाई दी थी कि कानूनी प्रक्रिया जारी है। उसके तहत जो भी सही होगा, उसी का पालन किया जाएगा। इस घटना के बाद से केदारनाथ शुक्ल सुर्खियों से गायब है। इसकी उम्मीद भी कम ही है कि बीजेपी में वो दोबारा शामिल हो सकेंगे और पुराना रसूख हासिल कर सकेंगे, लेकिन राजनीति अनिश्चितताओं का दौर है। देखते हैं कि क्या केदारनाथ शुक्ला कोई जबरदस्त कम बैक कर पाते हैं या नहीं।

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