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News Strike where is Ram Niwas Rawat Photograph: (thesootr)
कहां हैं नेताजी में... आज एक ऐसे नेता की हम बात करने वाला हैं, जिनका नाम लेंगे तो आप भी यही कहेंगे कि वाकई ये नेता अब कहां है। इनका तो कोई अता पता ही नहीं है। ये नेता जब तक अपनी पुरानी पार्टी में थे तब तक राजनीति के धुरंधर थे, लेकिन दल बदलते ही लूजर बन गए हैं। अब शायद ये जानने की फिराक में हैं कि अपने करियर की इस हार का ठीकरा फोड़े तो फोड़े कहां।
रावत की साल बदलने से पहले बदल गई किस्मत
राजनीति अनिश्चितताओं से भरपूर दुनिया है। हम जिस राजनेता की बात आज करने जा रहे हैं। उसके साथ बीते दिनों जो कुछ भी घटा है उसे सुनकर आप भी यही कहेंगे कि सियासत की दुनिया में कभी भी कुछ भी हो सकता है। ये नेता हैं राम निवास रावत। जो साल 2024 में अक्सर सुर्खियों में रहे, लेकिन साल बदलने से कुछ दिन पहले ही सियासी किस्मत बदल गई और रावत साहब जो पार्टी से लेकर खबरनवीसों तक के फेवरेट थे। वो अचानक सियासत और समाचार दोनों जगह से गायब हो गए। यूं राम निवास रावत का पॉलीटिकल करियर ठीक ठाक ही रहा है। जो बहुत ज्यादा ऊंचाई पर न भी गया हो तो बहुत छोटा या कम समय का भी नहीं माना जा सकता।
सिंधिया के साथ बीजेपी में न आना बना दूरी का कारण
राम निवास रावत छह बार के विधायक हैं। वो श्योपुर जिले में आने वाली विजयपुर सीट से चुनाव जीतते रहे। कांग्रेस में रहते हुए रावत हमेशा ही मीणा और रावत समाज के बड़े चेहरे के रूप में माने जाते रहे। कांग्रेस में रहते हुए उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनने का मौका भी मिला। इस से पहले दिग्विजय सिंह की सरकार में भी वो मंत्री रहे थे। आलाकमान की हुक्म पर वो नरेंद्र सिंह तोमर के खिलाफ सांसद का चुनाव भी लड़े थे। कांग्रेस में रहते हुए राम निवास रावत हमेशा सिंधिया परिवार के करीबी रहे। कहा ये भी जाता है कि साल 2020 के दलबदल के दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया चाहते थे कि रावत भी बीजेपी में शामिल हो जाएं, लेकिन रावत उस वक्त इस फैसले से पीछे हट गए। उसके बाद से सिंधिया भी खफा हुए।
राम निवास का शपथ ग्रहण भी ड्रामेबाजी वाला रहा
पिछले साल जो लोकसभा चुनाव हुए हैं। उन चुनावों के दौरान रावत ने पार्टी बदल ली। अचानक दलबदल के लिए बताया गया कि पार्टी में सही तवज्जो और सीनियर होने के बाद भी नेता प्रतिपक्ष का पद न मिलना उनके गुस्से का कारण बना। कांग्रेस छोड़ वो बीजेपी में शामिल हुए। बीजेपी में उनके आने के बाद भी पॉलिटिकल ड्रामे कुछ दिन तक जारी रहे। वो कांग्रेस से बिना इस्तीफा दिए बीजेपी में शामिल हुए। कई दिनों तक उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया। जिस पर कांग्रेस ने विरोध भी जताया। हालांकि, बाद में उनका इस्तीफा हुआ और 8 जुलाई 2024 को उन्होंने कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ भी ले ली। इत्तेफाक ही कहें कि उनका शपथ ग्रहण भी थोड़ा ड्रामेबाजी से भरपूर रहा। असल में पहले उन्होंने राज्य मंत्री की शपथ ली। फिर इसे गलती बताते हुए दोबारा शपथ कराई गई। तब उन्होंने मंत्री पद की शपथ ली। मोहन यादव सरकार में वो वन और पर्यावरण मंत्री रहे।
उपचुनाव की शिकस्त से सियासी करियर दांव पर लगा
दलबदल के बाद उनकी सीट पर चुनाव होना लाजमी थे, हुए भी और नतीजे जबरदस्त तरह से चौंकाने वाले रहे। राम निवास रावत अपने ही गढ़ में हार का शिकार हुए। काग्रेस के मुकेश मल्होत्रा से रावत करीब 7 हजार वोटों से चुनाव हार गए। कोई नया प्रत्याशी या आम नेता होता तो कहा जा सकता था कि ये महज एक चुनावी हार है, लेकिन राम निवास रावत के लिए ये हार सिर्फ चुनाव हारने की बात तक सीमित नहीं थी, बल्कि ये उनकी राजनीतिक साख और सालों के राजनीतिक तजुर्बे की भी हार थी, क्योंकि इस शिकस्त ने उनके सियासी करियर को भी दांव पर लगा दिया। जिससे राम निवास रावत खुद भी काफी बौखलाए हुए ही दिखे। हार के बाद उन्होंने कहा कि उन्हें हराने के लिए कांग्रेस ही नहीं बीजेपी के भी कई नेताओं ने अपनी ताकत झौंक दी। हालांकि, उन्होंने किसी नेता का खुलकर नाम नहीं लिया, लेकिन सत्ता में रहते हुए और मंत्री बनने के बाद मिली ये हार कई सवाल खड़े करती है।
अब टिकट चाहिए तो रावत को चार साल रहना होगा एक्टिव
अब आगे राम निवास रावत का क्या होगा। क्या अगले चुनाव से पहले वो दोबारा कांग्रेस में नजर आएंगे, लेकिन यह भी तकरीबन नामुमकिन है। यानी कांग्रेस से तो अब उन्हें टिकट मिलने की कोई संभावना नहीं है और एक हार के बाद क्या बीजेपी उन्हें दोबारा इस सीट से टिकट देगी। अगर बीजेपी से दोबारा टिकट चाहिए तो राम निवास रावत को पूरे चार साल बहुत एक्टिव रहना होगा। ताकि टिकट के सर्वे में वो किसी दूसरे नेता से बाजी न हार जाए। अगर उन्हें टिकट नहीं मिला तो समझिए कि अब राम निवास रावत चुनावी राजनीति से पूरी तरह दूर हो चुके हैं।
रावत को खास रणनीति अपनाने के बारे में सोचना होगा
फिलहाल तो वो मंत्री पद से भी इस्तीफा दे ही चुके हैं और विधायक भी नहीं बचे हैं। अब उनके हितैषी भी ये जानना चाहते हैं कि बीजेपी में उनका क्या रोल होगा। क्या उन्हें निगम मंडल का पद सौंपकर दल बदल का कर्ज उतारा जाएगा। या, अब रावत बिसरा दिए जाएंगे। शायद रावत भी किसी शांत कमरे में बैठकर ये जरूर सोचते होंगे कि आगे क्या रणनीति अपनाई जाए जो उन्हें एक्टिव पॉलीटिक्स में दोबारा आने में मदद कर सके।
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