SINGRAULI. नगरीय निकाय चुनाव का काउंटडाउन शुरू हो गया है, मतदान के लिए चंद घंटे ही शेष है। ऐसे में आवश्यक है कि सिंगरौली नगर निगम के महापौर की जिम्मेदारी संभालने हेतु... इस दंगल में उतरे तमाम दलों के रणवीरों का अब कुछ व्यक्तिगत लेखा-जोखा भी जान और समझ लिया जाय। इस पहलू के भी बड़े दिलचस्प नजारे हैं जनाब.... चुनावी दंगल का परिणाम चाहे जो आए, समीकरण चाहे जिसके पक्ष में बन-बिगड़ रहा हो... इससे अलग यदि देखा जाए तो व्यक्तिगत नजरिए से भी हमारे चुनावी धुरंधर एक दूसरे को जबरदस्त टक्कर दे रहे हैं। सबसे जरूरी शैक्षणिक योग्यता से शुरू की जाए तो कांग्रेस उम्मीदवार अरविंद सिंह व बसपा के बंशरूप शाह जहाँ स्नातकोत्तर उपाधि (एम ए) के साथ एक दूसरे को बराबरी की टक्कर दे रहे हैं वहीं आप की रानी अग्रवाल 1992 का इंटरमीडिएट प्रमाण पत्र धारण कर इनसे पीछे हैं। शिक्षा-दीक्षा की सबसे अजीबो गरीब योग्यता भाजपा के महापौर प्रत्याशी चंद्र प्रताप विश्वकर्मा की दृष्टिगोचर है... ये महाशय बीए सेकंड ईयर हैं।
आपराधिक मामलों में अरविंद आगे
धन - संपत्ति के मामले में करोड़पति के तमगे के साथ अरविंद, रानी और बंश रूप में त्रिकोणीय मुकाबला दिखाई पड़ रहा है। चंद्रप्रताप को लखपति बने रहने से ही संतोष करना पड़ रहा है। लॉ एंड ऑर्डर के नजरिए से देखा जाए तो इस मामले में भी अरविंद आगे हैं इनके विरुद्ध दो आपराधिक मामले चल रहे हैं। जबकि चंद्र प्रताप इनसे थोड़ा पीछे हैं... यूँ तो इनके विरुद्ध कोई आपराधिक मामला संज्ञान में नहीं आया है लेकिन सरकारी स्कूल की करोड़ों की जमीन हड़पने के आरोप से जुड़ा एक दीवानी मुकदमा जरूर चल रहा है। रानी अग्रवाल पर कोई आपराधिक मामला पंजीबद्ध तो नहीं है लेकिन यह भी पारिवारिक विवाद - कलह और बरगवां में कईयों की जमीन हड़पने के आरोप से वंचित नहीं हैं। हां बंश रूप मुकदमेबाजी के मामले में सबसे पीछे हैं।
पाला बदलने में चंद्र प्रताप का जवाब नहीं
पाला-बदल अभियान में भी बसपा के वंशरूप सबसे फिसड्डी हैं.... जबकि चन्द्र प्रताप, अरविंद और रानी इसके माहिर खिलाड़ी हैं। अरविंद जहाँ 2018 विधानसभा चुनाव में निर्दलीय मैदान में उतर कांग्रेस की लुटिया डुबो चुके हैं वहीं रानी भी इसी चुनाव में टिकट नहीं मिलने से नाराज हो आप का दामन थाम अपने पुराने दल भाजपा को मुश्किल में डाल चुकी हैं। अब रही बात भाजपा के चंद्र प्रताप की जिनके अंदाज ही निराले हैं। अपने भले के लिए चंदे भइया कब और कहां पहुंच जांय कोई नहीं बता सकता है। कभी बसपा तो कभी निर्दलीय....कई- कई बार भाजपा की लुटिया डुबोने वाले चंदे भाई की इससे बड़ी विशेषता और क्या होगी कि ना ये भाजपा को छोड़ पाते हैं और ना ही भाजपा इन्हें छोड़ पाती है। इस मामले में इन पर भाजपा के पितृ पुरुष अटल जी की यह कविता बिल्कुल फिट बैठती है कि... न हमको कोई ठौर है और न तुमको कोई और है...। इनकी लीलाओं को देख ऐसा लगता है कि स्वर्गीय अटल जी ने चंदे भैया जैसे चरित्रों को ध्यान में रखते हुए ही अपनी कविता में इस लाइन को जोड़ा होगा। हालांकि दल बदल के मामले में कांग्रेस के अरविंद का चरित्र भी चंदे भाई से कुछ अलग नहीं है लेकिन वह निर्दलीय व कांग्रेस में ही आना जाना करते रहते हैं.... लेकिन जहाँ भी रहते हैं अजय सिंह 'राहुल भैया' का दामन पकड़ के रखते हैं।