हरीश दिवेकर, BHOPAL. देखते देखते सितंबर आ गया। गणेश उत्सव की भी धूम मची है। फिजा में कई मौसम घुले हुए हैं। गर्मी, उमस, बारिश और ठंडक का दौर चल रहा है। प्रदेश के कुछ अंचलों में भारी बारिश का दौर जारी है तो राजधानी को अब बौछारें ही काफी वजनी लग रही हैं। ऐसे में गुलाम नबी आजाद के पीछे-पीछे इस्तीफों की झड़ी ने कांग्रेस का मौसम जरूर बिगाड़ दिया है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की तैयारी के पहले हल्ला बोल रही कांग्रेस में दिग्गजों के मुंह फेरने से बैचेनी का माहौल है। दूसरी ओर बीजेपी में रोज उभर रहे खेमों ने प्रदेश की सियासत में नए-नए समीकरण दिखाना शुरू कर दिया है। इंदौर में केंद्रीय मंत्री सिंधिया और बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की जुगलबंदी की नई राग छिड़ी तो संघ की सालाना समन्वय बैठक के लिए छत्तीसगढ़ का चयन होते ही प्रदेश में सत्ता और संगठन दोनों तक हवाएं चल पड़ी हैं। इसमें नमी तो संघ की बैठक शुरू होने के बाद आएगी, लेकिन इस बयार से बदलाव की बातें खुलकर होने लगी हैं। खबरें तो और भी कई पकीं, मगर आप तो सीधे अंदरखाने में उतर आइए।
अध्यक्ष की कुर्सी पर नजर
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी हॉट सीट हो गई साहब, तभी तो कद्दावर नेता इस कुर्सी पर बैठने के लिए कड़ी कुंडी लगाने में जुट गए हैं। राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारी अचानक एमपी पावर लॉबी में सक्रिय हो गए तो वहीं प्रदेश के एक कद्दावर मंत्री भी मैदान में उतर आए। हालांकि, दोनों की दावेदारी सिर्फ अंदरखानों में ही चल रही है, बाहर सब कुछ सामान्य है, बोले तो पिन ड्रॉप साइलेंट। दोनों नेता जानते हैं कि मामला जमा नहीं तो अध्यक्ष पंडित वीडी शर्मा से बैठे बैठाए पंगा हो जाएगा। हालांकि, बात कहां छुपती है, बाजार-ए-आम हो ही जाती है। हाल ही में पूर्व संगठन महामंत्री अरविंद मेनन का गुपचुप भोपाल आकर मंत्री से मिलना भी इसी कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है। हालांकि, अपने पंडितजी भी कमजोर खिलाड़ी नहीं हैं उनकी पहुंच भी सीधे दिल्ली हाईकमान तक है। ऐसे में उनकी कुर्सी हिलाना थोड़ा टेढ़ी खीर साबित होगी।
क्या कम हो रहा साहब का इकबाल..
बड़े साहब के इकबाल को कम करने के लिए अब सिंधिया खेमे के मंत्री ने कमान संभाली है। दरअसल, बड़े साहब की आक्रामक शैली से ब्यूरोक्रेट्स से लेकर जनप्रतिनिधि भी परेशान हैं, लेकिन उनके खिलाफ बोलने की हिम्मत किसी में नहीं है। कारण कि बड़े साहब के खिलाफ बोलना यानी मुख्यमंत्री के खिलाफ आवाज उठाने जैसा है। मंत्री महेंद्र सिसोदिया ने बड़े साहब सहित पूरी अफसरशाही को ही निरंकुश बताकर विपक्ष को हमला बोलने का मुद्दा दे दिया। मौके को देखकर पार्टी के लोगों ने भी चौका मारते हुए पूरे मामले में हाईकमान को चुगली भी कर दी। कहानी का सार ये है कि बड़े साहब नवंबर में रिटायर हो रहे हैं, वे मुख्यमंत्री के ब्लू आइड माने जाते हैं। ऐसे में डर है कि कहीं मुखिया उनका एक्सटेंशन ना करवा दें। इसलिए उनकी मूर्ति खंडित कर मुखिया को भी सवालों के कटघरे में खड़ा करने की तैयारी है। वजह चाहे जो भी हो, मंत्री के हमले के बाद सबसे ज्यादा यदि कोई खुश है तो वो है ब्यूरोक्रेसी। खासकर मंत्रालय के आला अफसर।
साहब की कुर्सी के पाये कमजोर
पुलिस मुखिया इन दिनों बैचेन हैं। उनकी बैचेनी का कारण उनके कुर्सी के पाये कमजोर होना है। दरअसलए साहब मुखिया तो बन गए लेकिन उनकी कुर्सी को मजबूती दे सके ऐसा आदेश अब तक जारी नहीं हो पाया। जब तक ये आदेश जारी नहीं होता तब तक मुखिया जी को ये डर बना रहेगा कि कभी भी कोई उनकी कुर्सी का पाया खींच सकता है। यूपीएससी ने तो डीपीसी के बाद मुखिया के लिए 3 नामों का पैनल मार्च में ही भेज दिया थाए लेकिन अब तक मुख्यमंत्री पुलिस मुखिया के नाम पर मुहर नहीं लगाएंगे तब तक मामला अस्थाई ही रहेगा। सरकारी भाषा में बोले तो मुख्यमंत्री जिस नाम पर अपनी मुहर लगाएंगे वो ही अगले 2 साल तक प्रदेश में पुलिस का मुखिया बना रहेगा, बीच में उन्हें कोई हटा नहीं पाएगा।
96 बैच के प्रमोटी अफसरों पर मेहरबानी
कलेक्टर बनने के लिए जहां आईएएस अफसरों की लंबी कतार लगी हुई हैए वहीं राज्य प्रशासनिक सेवा 96 बैच के प्रमोटी आईएएस अफसरों का 10 जिलों पर कब्जा है। मंत्रालय में ये सवाल डायरेक्ट और प्रमोटी दोनों अफसर उठा रहे हैं। उनका कहना है कि एक ही बैच के प्रमोटियों को 10 जिलों में कमान दे दीए जबकि उनके सीनियर को अब तक कलेक्टर नहीं बनाया गया। डायरेक्ट आईएएस का कहना है कि 2014 बैच का समय हो चुका हैए लेकिन प्रमोटियों पर सरकार ज्यादा मेहरबान है। आपको बता दें कि प्रदेश में 20 जिलों में प्रमोटी कलेक्टर हैंए उनमें अकेले 96 बैच के प्रमोटी 10 जिलों में जमे हुए हैं।
संघ की शरण में अखबार मालिक
हिन्दी भाषी राज्यों में अपना परचम फहराने वाले अखबार समूह के मालिक इन दिनों संघम शरणम गच्छामी हो गए हैं। दरअसल अखबार मालिक का बीजेपी हाईकमान से तालमेल नहीं जम रहा। नमो की वक्रदृष्टि के चलते अखबार के आर्थिक हित भी गड़बड़ा गए हैं। अंदरखानों की माने तो लंबे समय से हो रहे आर्थिक नुकसान को देखते हुए अखबार मालिक ने नागपुर में संघ मुख्यालय में अपनी अर्जी लगाई है। ये तो समय बताएगा कि उनकी अर्जी पर संघ प्रमुख कितना संज्ञान लेते हैंए लेकिन हाल फिलहाल अखबार मालिक की संघ के शरण में जाने की चर्चा बाजार-ए-आम हो रही है।
पंडितजी पर भारी पड़े खान साहब
खाकी में आए दिन विवाद देखने को मिल रहे हैं। भोपाल में एसएएफ की एक कंपनी के कमांडेंट साहब से डिप्टी कमांडेंट को उलझना भारी पड़ गया। तबादला तो हुआ ही अब डिप्टी कमांडेंट पंडितजी को आरोप पत्र भी जारी करने की तैयारी है। कमांडेंट खान साहब ने पंडितजी की ऐसी घेराबंदी की है कि अब पुलिस मुख्यालय के आला अफसर भी उनकी सुनवाई नहीं कर रहे हैं। अंदरखाने की माने तो पंडितजी अब खान साहब के खिलाफ मंत्री के पास गुहार लगाने की तैयारी में हैं। शायद बिरादरी भाई होने का फायदा मिल जाएए वैसे तो खान साहब ने तो ठिकाने लगा ही दिया है।