मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में बिहार वाला दांव, जातिगत जनगणना कराने का कांग्रेस का चुनावी वादा

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The Sootr
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मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में बिहार वाला दांव, जातिगत जनगणना कराने का कांग्रेस का चुनावी वादा

BHOPAL. मध्यप्रदेश में कांग्रेस विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी हुई है। हालांकि कांग्रेस की ओर से प्रत्याशियों की कोई लिस्ट सामने नहीं आई है, लेकिन उसके चुनावी वादे सामने आ गए हैं। इसमें सबसे बड़ा वादा है मध्यप्रदेश में जातिगत जनगणना कराने का। दरअसल कांग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से जो ट्वीट किया गया है, उसमें यह बात लिखी गई है।

केंद्र सरकार जातिगत जनगणना का लगातार कर रही विरोध

कांग्रेस के वादों में पुरानी पेंशन योजना, किसानों की कर्जमाफी, हर महिला को 1500 रुपए, 500 रुपए में रसोई गैस सिलेंडर, 100 यूनिट तक बिजली खर्च करने पर बिल माफ, 200 यूनिट तक बिजली खर्च करने पर 100 यूनिट का बिल आदि। इसमें नया वादा जातिगत जनगणना का जुड़ गया है। पिछले दिनों सागर में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद जातिगत जनगणना कराने की बात कही थी। मप्र कांग्रेस ने अब इसे अपने चुनावी वादों में शामिल कर लिया है। खड़गे ने कहा था कि मप्र में जातिगत जनगणना से यह पता चल सकेगा कि किन तबकों के कितने लोग गरीब हैं, भूमिहीन हैं, पिछड़े हैं और पढ़े-लिखे हैं या नहीं। दो माह पहले पीसीसी चीफ कमलनाथ ने भी पिछड़ा वर्ग संयुक्त मोर्चा सम्मेलन में जातिगत जनगणना की वकालत की थी। दरअसल जातिगत जनगणना का विवाद अब देश गहराता जा रहा है। बिहार की जेडीयू-आरजेडी सरकार को इसमें चुनावी फायदा नजर आ रहा है। केंद्र की बीजेपी सरकार इसका लगातार विरोध करती आ रही है। मामला कोर्ट तक भी पहुंचा। वहीं मप्र में कांग्रेस भी जातिगत जनगणना में फायदा देखने लगी है।

यह है सच्चाई

देश में जातिगत जनगणना का मामला काफी पहले उठता रहा है, लेकिन जानकार बताते हैं कि केंद्र में चाहे यूपीए की सरकार हो या एनडीए की दोनों ही इसके पक्ष में नहीं रहीं। विपक्ष में आने पर राजनीतिक दल जातिगत जनगणना की मांग करते हैं, लेकिन सरकार बन जाने के बाद जातिगत जनगणना से कतराते हैं।

बिहार सरकार क्यों चाहती है जातिगत जनगणना

बिहार में ओबीसी और ईबीसी मिलाकर कुल 52 फीसदी से अधिक आबादी है। वहां अति पिछड़ा वर्ग भी निर्णायक संख्या में है। ऐसे में पूरा खेल इन्हीं वोटों के लिए है। बिहार की जेडीयू और आरजेडी सरकार को इसमें फायदा दिखता है। उन्हें लगता है कि इसके जरिये धर्म की बजाय जाति के आधार पर वोट मिलेंगे।

कुल मिलाकर आरक्षण की है मांग

जातीय समितियों की मांग है कि आबादी के हिसाब से ही आरक्षण दिया जाए। ओबीसी वर्ग की मांग है कि अभी एससी-एसटी को संख्या के आधार पर आरक्षण दिया जा रहा है। इसी तरह ओबीसी को भी उनकी संख्या के हिसाब से आरक्षण दिया जाए।

यह है जातिगत जनगणना का इतिहास

  1. देश में 1881 में सबसे पहले जनगणना हुई थी। इसमें जातिवार जनगणना के आंकड़े जारी हुए थे।
  2. 1931 तक की जनगणना में जातिवार आंकड़े जारी किए जाते रहे।
  3. 1941 की जनगणना में जातिवार आंकड़े जुटाए तो गए, लेकिन इन्हें जारी नहीं किया गया।
  4. आजादी के बाद से हर जनगणना में सरकार ने सिर्फ एससी-एसटी के ही जाति आधारित आंकड़े जारी किए।
  5. आजादी के बाद पिछड़ी और अन्य जातियों की जाति आधारित जनगणना नहीं हुई।

यह कहते हैं जानकार

कई जानकार मानते हैं कि वर्तमान में देश की आबादी में पीछड़ी जातियों की संख्या सही अनुमान लगाना मुश्किल है। एससी और एसटी वर्ग के आरक्षण का आधार उनकी जनसंख्या है, लेकिन ओबीसी आरक्षण का आधार 90 साल पुरानी जनगणना है, जो अब प्रासंगिक नहीं है। अगर जातिगत जनगणना होती है तो इसका एक ठोस आधार होगा। जनगणना के बाद उसकी संख्या के आधार पर आरक्षण को कम या ज्यादा किया जा सकता है।

जातिगत जनगणना की मांग करने वालों का दावा

जातिगत जनगणना की मांग करने वाले संगठनों का दावा है कि इससे पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग के लोगों की पढ़ाई-लिखाई, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक स्थिति का पता चलेगा। उनके उत्थान के लिए सही नीति बन सकेगी।

विरोध करने वालों का तर्क

जातिगत जनगणना का विरोध करने वालों का तर्क है कि इस तरह की जनगणना से समाज में जातीय विभाजन बढ़ जाएगा। इसकी वजह से लोगों के बीच कटुता बढ़ेगी।

राहुल गांधी का समर्थन और बीजेपी का पलटवार

कर्नाटक चुनाव से पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी जातिगत जनगणना का समर्थन किया था। इसके बाद बीजेपी ने कांग्रेस पर आक्रामक होने का फैसला किया। बीजेपी का कहना था कि 1951 में जब अनौपचारिक रूप से जातिगत जनगणना की बात उठी थी तो तब पीएम जवाहर लाल नेहरू ने उसका विरोध किया था। नेहरू ने आगाह किया था कि देश को आगे ले जाना है तो प्रतिभा को आगे बढ़ाना होगा। बाद में इंदिरा सरकार ने भी जातिगत आधार पर आरक्षण देने की सिफारिश करने वाली मंडल कमीशन की रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं की थी।

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