भोपाल. मध्यप्रदेश में कांग्रेस (Congress) के नेताओं की बीजेपी में एंट्री हो रही है लेकिन ये आने वाले दिनों में क्या बीजेपी के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है? राजनीति के जानकारों की मानें तो बीजेपी (BJP) इस कवायद से शॉर्ट टर्म के लिए राजनीतिक फायदा ले सकती है। लेकिन यह रणनीति लॉन्ग टर्म के लिए बहुत बड़ा रिस्क है, जिसका अंदाजा बीजेपी के नेताओं को भी है। इस समय तक कांग्रेस के 27 विधायक बीजेपी में आ चुके हैं। इससे पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं में असंतोष बढ़ता जा रहा है।
2020 से सिलसिला शुरू, आज तक जारी
मप्र में साल 2020 से कांग्रेस के विधायक और नेताओं के बीजेपी में शामिल होने का जो सिलसिला शुरू हुआ वो अभी तक जारी है। मप्र की तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव (By Election) के दौरान कांग्रेस के विधायक सचिन बिरला (Sachin Birla) बीजेपी में शामिल हो गए। इससे पहले पिछले साल 28 सीटों पर हो रहे उपचुनाव की वोटिंग से दो दिन पहले राहुल लोधी बीजेपी में शामिल हो गए थे। हालांकि, बीजेपी दमोह (Damoh) सीट हार गई थी।
शिवराज के बयान से खतरे की घंटी के संकेत
दरअसल कांग्रेस के नेताओं का बीजेपी में आना खतरे की घंटी क्यों साबित हो सकता है। इसके संकेत मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (CM Shivraj) के एक बयान से मिलते हैं। एक चुनावी सभा में शिवराज ने कहा था कि कांग्रेस में क्या हो रहा है कुछ समझ नहीं आ रहा, राजस्थान में सचिन पायलट (Sachin Pilot) जाने की बात कर रहे थे और मप्र में सचिन बिरला बीजेपी में आ गए।
शिवराज ने ये भी कहा कि उन्होंने सचिन बिरला से पूछा कि क्या वो वाकई में आना चाहते हैं तो सचिन बिरला ने जवाब दिया कि कांग्रेस में अब क्या रखा है। इसी बात का जिक्र करते हुए शिवराज ने कहा कि अभी कांग्रेस के दो- चार नेता और कतार में हैं लेकिन मैंने कहा कि भैया कितनों को शामिल करवाएंगे।
जिसे जाना है जाएं, जिसे रहना है वो रहें
कांग्रेस पार्टी के विधायक और नेताओं के बीजेपी (Congress MLA joins BJP) में जाने का जो सिलसिला शुरू हुआ उसे लेकर कांग्रेस के बड़े नेताओं का स्टैंड साफ है और कई मौके पर कांग्रेस (Congress) के नेता कह चुके हैं कि जिसे पार्टी में रहना है वो रहे और जिसे पार्टी छोड़ना है वो छोड़ सकता है। सचिन बिरला के बीजेपी में शामिल होने के बाद मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) ने भी कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया दी थी।
कार्यकर्ताओं के साथ नहीं बना समन्वय
ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) समेत कांग्रेस के 22 विधायक जब बीजेपी में शामिल हुए थे उसी के बाद से बीजेपी चुनौतियों का सामना कर रही है। निगम मंडलों में नियुक्तियों का मामला अटका है। बताया जा रहा है कि सिंधिया अपने कार्यकर्ताओं को एडजस्ट करवाना चाहते हैं। दूसरी तरफ बीजेपी के जो जमीनी कार्यकर्ता है उनका कांग्रेस से बीजेपी में आए कार्यकर्ताओं के साथ समन्वय पूरी तरह से नहीं बन सका है। अगस्त के महीने में मप्र में जो तबादले (Transfer) हुए उनमें भी दखलअंदाजी की खबरें देखने को मिली।
BJP के सामने बढ़ेंगी चुनौतियां
ऐसे में जानकार मानते हैं कि ये सिलसिला लगातार जारी रहा तो बीजेपी के सेकंड लाइन के नेताओं के बीच असंतोष बढ़ेगा, कार्यकर्ताओं की अनदेखी हुई तो 2023 के चुनाव दौरान भितरघात का खतरा बढ़ सकता है। कांग्रेस के नेताओं को जिस तरीके से इंपोर्ट किया जा रहा है उससे बीजेपी के कैडर में बिखराव देखने को मिल सकता है। बीजेपी नेता भले ही इन तमाम बातों से इंकार करें लेकिन यदि ऐसा ही सिलसिला जारी रहा तो 2023 तक आते आते बीजेपी के सामने चुनौतियां बढ़ सकती है।