देश की आजादी में गांधी के सिपाही रहे जयप्रकाश नारायण, लोकतंत्र पर आंच आती देख किया इंदिरा गांधी का विरोध

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Shivasheesh Tiwari
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देश की आजादी में गांधी के सिपाही रहे जयप्रकाश नारायण, लोकतंत्र पर आंच आती देख किया इंदिरा गांधी का विरोध

BHOPAL. संपूर्ण क्रांति के प्रणेता लोक नायक जयप्रकाश नारायण ने सिताबदियारा(बिहार) में जन्म लेकर देश में इतिहास रच दिया। 8 अक्टूबर को उनकी पुण्यतिथि पर उनके द्वारा किए गए कार्यों को पूरा देश याद कर रहा है। गांव के वे बुजुर्ग, जिन्होंने जेपी को करीब से देखा है, वे तो आज भी गर्व से कहते हैं कि मेरे गांव के लाल में तो वह ताकत थी कि संपूर्ण क्रांति आंदोलन के तहत केंद्र सरकार का तख्ता ही पलट दिया था। जयप्रकाश पूरे देश की आवाज थे। जेपी जैसा कोई न पैदा हुआ और न भविष्य में भी कोई पैदा होगा। समाजवाद के पुरोधा रहे जेपी को देश इमरजेंसी जैसे तानाशाही रवैये को उखाड़ फेंकने के लिए भी जाना जाता है। कहा जाता है कि उनके आंदोलन की वजह से ही इंदिरा गांधी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा था। 



किसी शख्स ने पहली बार इंदिरा गांधी के खिलाफ आवाज उठाई थी



इंदिरा गांधी के शासन काल के दौरान देश मंहगाई से लेकर कई बुनियादी आवश्यकतों की पूर्ति न होने से समस्याओं से जूझ रहा था। लोग सत्ता के हनक में रहने वाली इंदिरा गांधी की सरकार से परेशान थे। 1974 में जब जेपी से यह बर्दाश्त नहीं हुआ तब उन्होंने सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया। उन्होंने इंदिरा गांधी को पत्र लिखा और देश के बिगड़ते हालात के बारे में जानकारी दी। इसके बाद देश के अन्य सासंदों को भी पत्र लिखा और इंदिरा गांधी के कई फैसलों को लोकतांत्रिक खतरा बताया। जयप्रकाश नारायण के इस पत्र से राजनीतिक जगत में हंगामा खड़ा हो गया था क्योंकि पहली बार किसी शख्स ने इंदिरा गांधी के खिलाफ आवाज उठाने की जुर्रत की थी। 



47 साल पहले लगी थी इमरजेंसी 



देश के लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर बनाने की पहली जोरदार कोशिश 47 साल पहले की गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 की आधी रात को देश में इमरजेंसी लगाने का फैसला किया, जिसकी जानकारी उनकी कैबिनेट को भी नहीं थी। रातों रात तत्कालीन राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद ने इसकी मंजूरी भी दे दी थी। आपातकाल लगे 47 बरस बीत चुके हैं लेकिन भारतीय राजनीति में घटी ये अभूतपूर्व घटना आज भी लोगों को विस्मित करती है और इसके कारणों को खंगालने के लिए बार-बार मजबूर करती है।



गुजरात और बिहार का छात्र आंदोलन



बिहार (अब्दुल गफूर) और गुजरात (चीनाभाई पटेल) दोनों जगह कांग्रेस की सरकार थी। खाद्य सामानों, तेल और जरूरी उत्पादों के दामों में वृद्धि के कारण साल 1974 में गुजरात में छात्रों ने आंदोलन शुरू किया। गुजरात के एलडी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के छात्रों ने खाद्य कीमतों में वृद्धि और बढ़ती फीस का विरोध करना शुरू किया जो आगे चलकर नवनिर्माण आंदोलन  में बदल गया।



छात्र नेताओं ने पूरी शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने, महंगाई, असमानता, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी जैसे मुद्दे उठाने शुरू किए। जिसका नतीजा ये हुआ कि 1974 में ही चीनाभाई पटेल की सरकार गिर गई। छात्रों, विपक्षी नेताओं के भारी दबाव के कारण जून 1975 में वहां फिर से चुनाव कराए गए, जिसमें कांग्रेस की हार हुई। ये दोनों आंदोलन जीपे के कारण सफल हो सके। करीब 70 साल के जेपी उस समय बीमार थे लेकिन छात्रों के आग्रह पर उन्होंने आंदोलन को दिशा देने का काम किया। 



जेपी आंदोलन की भूमिका ऐसे बनी



गुजरात के बाद महंगाई, फीस वृद्धि, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बिहार के छात्रों ने विरोध करना शुरू किया। अहिंसात्मक आंदोलन की शर्त पर लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने इस आंदोलन की कमान संभाल ली। भारतीय राजनीति में जयप्रकाश नारायण उन कुछ लोगों में शामिल थे, जिन्होंने राजनीति छोड़ सामाजिक तौर पर कार्य के लिए सर्वोदय आंदोलन का काम शुरू कर दिया था और जिनकी नैतिकता को लेकर लोगों में जरा सा भी संदेह नहीं था।



इस कारण लगी थी इमरजेंसी 



गुजरात के बाद बिहार में भी कांग्रेस सरकार की बर्खास्तगी की मांग होने लगी लेकिन इंदिरा गांधी इसके पक्ष में नहीं थीं। लेकिन 5 जून 1975 को जेपी ने संपूर्ण क्रांति का आह्वान कर दिया और बिहार सरकार के खिलाफ बंद, धरने और हड़ताले शुरू हो गईं। जेपी इस आंदोलन को बिहार से आगे बढ़ाकर पूरे देश में ले जाना चाहते थे। इंदिरा गांधी सरकार पर दबाव बढ़ने लगा था और उसी बीच 1974 में जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में रेलवे की हड़ताल हो गई। 1970 का दशक न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच टकराव का भी दौर था। न्यायपालिका से टकराव तब और बढ़ा जब 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 1971 में इंदिरा गांधी के लड़े चुनाव को अवैध घोषित कर दिया। समाजवादी नेता राजनारायण ने इंदिरा गांधी के चुनाव को अदालत में चुनौती दी थी। इसके परिणाम स्वरूप देश में आपातकाल लगाया गया था।



जेपी का परिचय



जेपी का जन्म 11 अक्तूबर, 1902 में सिताबदियारा (बिहार) में हुआ था। इनके पिता का नाम देवकी बाबू और माता का नाम फूलरानी देवी था। इन्हें 4 वर्ष तक दांत नहीं आया, जिससे इनकी माताजी इन्हें 'बऊल जी' कहती थीं। 1920 में जयप्रकाश का विवाह प्रभादेवी नामक लड़की से हुआ। प्रभावती स्वभाव से अत्यन्त मृदुल थीं। गांधी जी का उनके प्रति अपार स्नेह था। प्रभावती के पिता ब्रजकिशोर बाबू थे, जिनके कहने पर महात्मा गांधी चंपारन गए थे। वह देश के जाने माने वकील और स्वतंत्रता सैनानी थे। ब्रजकिशोर बाबू देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के अच्छे मित्र थे।  जयप्रकाश जी ने एम. ए. समाजशास्त्र से किया। जयप्रकाश ने अमेरिकी विश्वविद्यालय से आठ वर्ष तक अध्ययन किया और वहां वह मार्क्सवादी दर्शन से गहरे प्रभावित हुए। प्रभा का लंबी बीमारे के चलते 13 अगस्त 1973 को निधन हो गया, जिसका जेपी को गहरा झटका लगा। में मृत हो जाने के पश्चात् उनको गहरा झटका लगा। इसके बाद भारत का यह अमर सपूत 8 अक्टूबर1979 को पटना, बिहार में चिर निन्द्रा में सो गया।



स्वतंत्रता संग्राम में भाग



जेपी की विलक्षणता की तारीफ स्वयं गांधीजी और नेहरूजी जैसे लोग किया करते थे। भारत माता को आज़ाद कराने के लिए इन्होंने तरह-तरह की परेशानियों को झेला। लेकिन इन्होंने अंग्रेज़ों के सामने घुटने नहीं टेके। इस दौरान उन्होंने कई बार जेल यात्राएं कीं। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन हुआ तो जयप्रकाश को उसमें शामिल किया गया और उन्हें पार्टी का महासचिव बनाया गया। उन्होंने विश्व स्तर पर अपनी आवाज़ बुलन्द करते हुए कहा है कि विश्व के संकट को मद्देनज़र रखते हुए भारत को आज़ादी प्राप्त होना अति आवश्यक है। जब तक हम आज़ाद न होंगे, हमारा स्वतंत्र अस्तित्व क़ायम न होगा और हम विकास के पथ पर अग्रसर न हो सकेंगे।

 


Jayaprakash Narayan's death anniversary JP movement against Emergency JP and Indira Gandhi जयप्रकाश नारायण की पुण्यतिथि जेपी का इमरजेंसी के खिलाफ आंदोलन जेपी और इंदिरा गांधी