कैलाश जी सुख के ऐसे साथी जो दुख में सारथी बन जाते हैं...

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Rahul Garhwal
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कैलाश जी सुख के ऐसे साथी जो दुख में सारथी बन जाते हैं...

कैलाश पर्वत सी क्षमता है विजयवर्गीय में रिश्तों को निभाने की, अपनों को संभालने की, मित्रता को पालने की, रात-रात भर जागने की। यह भी संयोग है कि उनका जन्म परशुराम जयंती का है, उस सनातन योद्धा का संकल्प उनके व्यक्तित्व में आना तो स्वाभाविक था। जो उन पर विश्वास करते हैं, अपना समझते हैं, वो उन पर इस कदर जान छिड़कते हैं कि उनकी विपदाओं से भगवान परशुराम की तरह भिड़ जाते हैं। अपनों के सपने पूरे करने के लिए खुद की नींद उड़ा देने वाले कैलाश जी सबके लिए सुख के साथी तो हैं ही, लेकिन दुख के सारथी भी बन जाते हैं। कुशल सारथी की तरह संकट में फंसे उनके रथ को भीषण रण से निकाल लेते हैं। किसी के घर शहनाई बजे, बच्चों की किलकारियां गूंजें या भक्ति भाव रमे, दौड़ते-भागते शहरों की सीमाओं को लांघते अपनों को अपनत्व में ढालते कैलाश जी वहां पहुंच जाते हैं। लेकिन जब अपनों पर कोई विपदा आती है, विरह की वेदना आती है, शोक की लहर छाती है, कोई ​मुश्किल आती है, आर्थिक ​स्थिति डगमगाती है, जब सारी दुनिया साथ छोड़ जाती है, तब वह दुखों के सारथी बन जाते हैं। हौसलों की हिम्मत दिलाते हैं, जो कुछ बन सके वो करने पर आमादा हो जाते हैं। अपने मित्रों के लिए वे इस कदर दीवाने हैं कि हर किसी को सपने के मुकाम पर पहुंचाने में जुट जाते हैं।



राजनीति में लोग एक-दूसरे की टांग खींचते हैं, किसी को आगे नहीं बढ़ने देते हैं, अपने ही साथियों का कद बढ़ने से डरते हैं, लेकिन उन्होंने किसी को महापौर बनाया तो किसी को निगम मंडल का अध्यक्ष बनवाया। निगम में पार्षदों की कतार लगाई और अपने मित्र के लिए अपनी कुर्सी तक भेंट चढ़ाई। दोस्तों के लिए दिल और दुनिया लुटाने वाले वे इस कदर अपनों के लिए जान लुटाते हैं कि किसी भी हद तक गुजर जाते हैं। समझौते से परे स्वभाव रखने वाले कैलाश जी जितने अपनों के लिए सम​र्पित हैं, उतने ही उनके अपने उनके लिए समर्पण भाव रखते हैं। निगम में जब उनकी नीतियों का उल्लंघन हुआ तो उनके निष्ठावान साथियों ने मेयर इन काउंसिल जैसे पद से किनारा कर लिया।



ऐसे कई उदाहरणों से शहर में उनके मित्र जहां उनकी दोस्ती पर इठलाते हैं, वहीं उनका साथ छोड़ने वाले पछताते हैं। मित्रता की निष्ठा इस कदर है कि विजयवर्गीय जिस तरह रिश्ते निभाते हैं, उसी तरह उनके मित्र राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में नुकसान उठाने पर भी सिर पर बल नहीं डालते हैं। कमलनाथ की सरकार ने जब उनके क्षेत्र के गीत-संगीत से जुड़े सा​थियों को बेवजह जेल में डाल दिया तो वो सड़क पर उतर आए, एक पार्षद साथी को जेल में डाल दिया तो अपनी ही सरकार से दो-दो हाथ करने पर उतर आए। उनकी क्षमताओं की कायल पार्टी उन्हें चाहे जिस राज्य में झोंक देती है, चाहे जिस क्षेत्र का जिम्मा सौंप ​देती है। वह ​हरियाणा जाते हैं तो जीत हाथ लगती है, पश्चिम बंगाल भेजे जाते हैं तो ​​​​फिजा बदल जाती है।



हर सफर के लिए तैयार और हर काम को रफ्तार देते कैलाश जी का कहना है कि उन्होंने अपनी चाहत से ज्यादा पा लिया है। पार्टी ने कद, जनता ने पद और मित्रों ने स्नेह-प्यार-दुलार दिया, अब इच्छा यह है कि उनका हर साथी सपनों का मुकाम पाए। इलाके में कहीं विपन्नता नजर न आए। लोग एक-दूसरे के साथ मिलकर तकलीफों को मिटाएं। घर में विवाह हो तो शहनाइयों में अर्थ के संकट का विलाप नजर न आए और शोक या विलाप हो तो एक-दूसरे का कंधा बनकर ​हिम्मत बढ़ाएं, हर जगह धर्म की पताका लहराए, लोग भक्ति भाव से झूमते नजर आएं।



(लेखक रमेश मेंदोला इंदौर विधानसभा क्षेत्र-2 के विधायक हैं। ये लेख उन्होंने बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के जन्मदिन के मौके पर लिखा है।)

 


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