/sootr/media/post_banners/00699060760d4dec3c462b4245da649d8df38484a9fc03ca883ec8b1b53f5198.png)
भोपाल/नई दिल्ली. मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव को दो साल से ज्यादा वक्त है, लेकिन कांग्रेस और बीजेपी ने अपने मोहरे जमाने की कवायद शुरू कर दी है। एक तरफ कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की तबीयत को लेकर राजनीतिक हलकों में गहमागहमी रही। 5 सितंबर को द सूत्र ने कमलनाथ से बात की। पूर्व सीएम ने बताया कि उनकी तबीयत पूरी तरह ठीक है। मेदांता में कुछ टेस्ट कराने हैं। कल यानी 6 सितंबर को बड़वानी जाऊंगा। इस बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी जबलपुर (संभवत: 18 सितंबर) पहुंच रहे हैं। ऊपर से देखने पर तो ये राजनीति की सामान्य खबरें दिख रही हैं, लेकिन पीछे की कहानी जरा अलग है। दरअसल, पूरी कहानी आदिवासियों (आदिवासी वोटों) को अपने पक्ष में करने की है।
कमलनाथ ने बड़वानी क्यों चुना?
बड़वानी, धार, अलीराजपुर (मालवा-निमाड़ क्षेत्र) को जयस (JYAS- जय युवा आदिवासी संगठन) का गढ़ माना जाता है। बीते कुछ वक्त से कांग्रेस, आदिवासियों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है। अगस्त में डेढ़ दिन चले विधानसभा सत्र के दौरान भी देखा गया कि विश्व आदिवासी दिवस के मुद्दे को कांग्रेस ने जमकर उठाया। अब कांग्रेस 2023 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं।
शाह ने जबलपुर क्यों चुना?
अमित शाह जबलपुर में तत्कालीन गोंडवाना राज्य के राजा रहे शंकर शाह और उनके बेटे रघुनाथ शाह को श्रद्धांजलि देने पहुंचेंगे। 18 सितंबर 1858 को ब्रिटिश हुकूमत ने शंकर शाह और रघुनाथ शाह को तोप के मुंह पर बांधकर उड़ा दिया था। मध्यप्रदेश बीजेपी इसको लेकर अभियान शुरू कर रही है। माना जा रहा है कि शाह इसकी शुरुआत करेंगे। वजह चाहे जो हो, बीजेपी की नजर भी आदिवासी वोटों पर ही है।
सियासी दलों के लिए आदिवासी तगड़ा वोट बैंक
मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। सामान्य वर्ग की 31 सीटों पर भी आदिवासी समुदाय निर्णायक भूमिका में हैं। 2003 के पहले आदिवासी वोट बैंक परंपरागत रूप से कांग्रेस का माना जाता था। बीजेपी ने इसमें सेंध लगा दी और आदिवासी कांग्रेस से छिटक गए। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 47 आदिवासी सीटों में से 30 सीटें झटक लीं, बीजेपी को 16 सीटों से संतोष करना पड़ा।
कांग्रेस से छिटक रहा जयस
मौजूदा स्थिति में जयस आदिवासियों के प्रमुख संगठन के रूप में उभरा है। कांग्रेस भी जयस को समर्थन दे रही है। 2018 चुनाव में जयस नेता डॉ. हीरालाल अलावा को कांग्रेस ने टिकट दी और वे जीते। अब हालात थोड़े बदले हैं। कांग्रेस की 15 महीने की सरकार में जयस का कांग्रेस पर से भरोसा खत्म होता दिखा। अब जयस के निशाने पर कांग्रेस-बीजेपी दोनों हैं। उधर, अब बीजेपी आदिवासियों के साथ खड़े होकर 2023 में उनका भरोसा जीतना चाहती है।