MUMBAI: किस करवट बैठेगा शिंदे की राजनीति का ऊंट, क्या है बीजेपी का खेल, क्या ठाकरे मुक्त हो जाएगी शिवसेना, जानें सब 

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Praveen Sharma
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MUMBAI: किस करवट बैठेगा शिंदे की राजनीति का ऊंट, क्या है बीजेपी का खेल, क्या ठाकरे मुक्त हो जाएगी शिवसेना, जानें सब 

MUMBAI. महाराष्ट्र में तीन दिन से मचे सियासी घमासान के बीच शिवसेना सरकार पर संकट बढ़ता जा रहा है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर इस्तीफा देने का दबाव भी चरम पर पहुंच गया है। शिवसेना के साथ गठबंधन करने वाली एनसीपी और कांग्रेस भी अब सरकार को बचाने में असहाय नजर आने लगीं हैं। मगर इस पूरी उठापटक में बीजेपी अभी भी पर्दे के पीछे ही बनी हुई है। सारा खेल ठाकरे सरकार के नगर विकास मंत्री एकनाथ शिंदे ही खेल रहे है, वह भी शिवसेना के बैनर के साथ। अब तक केवल सर्विस प्रोवाइडर की भूमिका में दिख रही बीजेपी आखिर महाराष्ट्र में खेल रही है कौ सा खेल? क्या यही है मिशन लोटस का हिडन एजेंडा? 



मिशन लोटस, पर बीजेपी खामोश



एमएलसी के चुनाव में क्रॉस वोटिंग के साथ 20 जून को महाराष्ट्र में शुरू हुई खींचतान अब सीएम उद्धव ठाकरे के इस्तीफे पर पहुंच गई है। ठाकरे और उनका परिवार सीएम हाउस छोड़ चुका है, अब ​बागियों को इंतजार है सीएम के इस्तीफे का। दूसरी तरफ बगावत का झंडा उठाने वाले मंत्री ​एकनाथ शिंदे मुंबई से बाहर रहकर ही अपनी ताकत बढ़ाते जा रहे हैं। एक तरफ हर पल बदलते सियासी समीकरण देखते हुए ठाकरे का साथ छोड़ने वाले विधायकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है तो अब शिवसेना के सांसद भी एकनाथ का स्वर आलापने लगे हैं। गुजरात के रास्ते गुवाहाटी पहुंचे शिंदे सारे विधायकों को नए ठिकाने पर ले जाने का विचार करने लगे है। ऐसे में बीजेपी अब तक केवल सर्विस प्रोवाइडर की भूमिका में ही सामने आई है। 



चाहे शिवसेना (शिंदे गुट) को रातों रात मुंबई से सूरत ले जाना हो अथवा सूरत की होटल में सारे सुरक्षा प्रबंधों के साथ उनकी व्यवस्था अथवा गुवाहाटी में एयरपोर्ट से होटल तक सारी जमावट, सभी जगह बीजेपी की स्पेशल टीम ही व्यवस्था संभाल रही है, वह भी पर्दे के पीछे से। हालांकि, पहले ही दिन से इस पूरी उठापटक को मिशन लोटस से जोड़कर देखा जा रहा है। मगर बीजेपी अब तक मौन धारण किए हुए है न तो अपने पत्ते खोल रही है और न कोई ऐसी मांग ही कर रही है, जिससे सत्तापलट साफ हो सके। अलबत्ता, शिंदे का हर कदम ठाकरे को कमजोर जरूर रहा है। वहीं सबसे खास बात यह है कि शिंदे अपने हर कदम को शिवसेना से जुड़ा बता रहे हैं। इसके भी राजनीतिक मायने भी खोजे जाने लगे हैं, साथ ही महाराष्ट्र में सरकार पर बीजेपी का शिकंजा भी बढ़ता जा रहा है।



शिंदे क्यों बढ़ा रहे हैं विधायकों की संख्या?



एकनाथ शिंदे 19 विधायकों को लेकर ठाकरे के खिलाफ बिगुल फूंका था। दलबदल कानून से खुद को और अपने साथियों को बचाते हुए ठाकरे की सरकार गिराने के लिए उन्हें शिवसेना के 37 विधायक चाहिए। सेफ गेम खेलने और सत्तापलट के लिए उनके पास पर्याप्त संख्या बल है, फिर भी वे रुक नहीं रहे। उनके खेमे में बागी विधायकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। 22 जून शाम उन्होंने 46 विधायकों के साथ होने का दावा किया था, आज यह संख्या आधा सैकड़ा तक पहुंच रही है। गुवाहाटी पहुंचने वालों में शिवसेना के साथ ही निर्दलीय विधायक भी शामिल है। लगातार बढ़ते संख्या बल के बाद भी कोई अगला कदम न उठाकर शिंदे ने कई सवाल खड़े कर दिए है, आखिर वे चाहते क्या है। क्योंकि य​दि सत्तापलट उनका मकसद है तो उनके पास अब पर्याप्त संख्या है। वहीं, सीएम पद चाहते हैं तो अपने समर्थकों की लिस्ट भी ओपन करना होगी।



यहीं से सामने आएगी बीजेपी



इस पूरे घटनाक्रम में बीजेपी अभी तक मूकदर्शक बनी हुई है। बीजेपी ने अब तक न तो विधानसभा सत्र बुलाने की मांग रखी है और न शिंदे को ही समर्थन की बात कही है। इतना ही नहीं, बीजेपी ने अभी तक फ्लोर टेस्ट की मांग भी नहीं की। जबकि फ्लोर टेस्ट होने की​ स्थिति में ही बीजेपी सामने आएगी और अगली सरकार को लेकर भी तस्वीर साफ होगी कि शिवसेना की सरकार में बीजेपी रहेगी या बीजेपी की सरकार का हिस्सा बनकर रह जाएगी शिवसेना।



शिंदे की बातों में दिख रहा बीजेपी का एजेंडा



बागी शिंदे ने कभी भी खुद को शिवसेना से अलग करने की बात नहीं की है। वो खुद को बालासाहेब का सच्चा शिवसैनिक बता रहे हैं और उन्होंने शिवसेना से कभी गद्दारी नहीं करने का दावा भी कर रहे हैं। इससे संकेत मिलते हैं कि शिंदे ठाकरे से केवल सीएम की कुर्सी ही नहीं, बल्कि शिवसेना भी छीनना चाहते हैं। माना जा रहा है कि बीजेपी का हिडन एजेंडा भी यही है। बीजेपी भी किसी तरह ठाकरे परिवार को शिवसेना से अलग करने के एजेंडे को आगे बढ़ा रही है। शिवसेना पर शिंदे का कब्जा करवाकर बीजेपी ठाकरे मुक्त शिवसेना के मिशन पर पूरी मुस्तैदी से काम कर रही है, लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता।



तो राज्यपाल से कब करेंगे संपर्क?



संवैधानिक व्यवस्था के चलते फ्लोर टेस्ट के लिए सदन का चलना जरूरी है। विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव के जरिए सदन में वोटिंग करा सकता है। यहां शिंदे को अपनी ताकत दिखाने या ठाकरे के खिलाफ वोटिंग का मौका मिल जाता, लेकिन अभी यह स्थिति नहीं है। ऐसे में अब दूसरे विकल्प पर काम करते हुए शिंदे अपने समर्थन वाले विधायकों की सूची राज्यपाल को सौंप सकते हैं। अल्पमत के कारण ठाकरे की सरकार गिराने के बाद राज्यपाल सबसे बड़े दल को बहुमत साबित करने का मौका दे सकते है। मगर ऐसी कोई मांग न कर बीजेपी ने अभी भी स्थिति को अधर में बना रखा है।


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