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हरीश दिवेकर, BHOPAL. ट्विटर पर आभार, जनता का शुक्रिया, सीएम के इन ट्वीट के क्या मायने। जो नतीजे आ रहे हैं उन्हें देखने के बाद क्या वाकई शिवराज अब भी ये सोच सकते हैं कि प्रदेश की जनता उनके साथ है। इन ट्वीट्स की आड़ में क्या उस टेबल को छुपाने की कोशिश की जा रही है। जिसमें कांग्रेस का ग्राफ बढ़ता दिख रहा है। दो नए बार्स भी इस ग्राफ टेबल में जगह बना चुके हैं और मैराथन बैठकें करके टिकट देने वाली बीजेपी सिर्फ हाथ मलती दिखाई दे रही है।
नगर सरकार में प्रदेश सरकार के बुरे हाल
बीजेपी वो पार्टी है जो अपने संगठन, चुनाव मैनेजमेंट, सीट के अनुसार चुनावी रणनीति बनाने में माहिर है। जिसका संगठन ही उसकी जीत की गारंटी है और मध्यप्रदेश वो प्रदेश है जिसके सिर्फ 15 महीने छोड़ दिए जाएं तो यहां 18 साल से बीजेपी का शासन है। इसके बावजूद नगर सरकार में प्रदेश सरकार के हाल बुरे नजर आ रहे हैं। इससे उलट कांग्रेस जितनी सीटें जीतने का दावा कर रही थी उस दावे के काफी नजदीक पहुंच चुकी है। 11 नगरीय निकाय में से पांच पर अब कांग्रेस का कब्जा है। एक सीट पर आप का कब्जा है और एक सीट बीजेपी की बागी प्रत्याशी के हाथ में जा चुकी है। यानि सात साल से नगर सरकार पर एकछत्र राज करने वाली बीजेपी सत्ता में रहते हुए भी आधी सीटें भी नहीं बचा सकी।
सत्ता पलट की आहट या चुनावी फॉर्मूले और चुनावी रणनीति की हार
ये सत्ता पलट की आहट है या बीजेपी के चुनावी फॉर्मूले और चुनावी रणनीति की करारी हार है। सात सीटें सीधे-सीधे बीजेपी के हाथ से निकल चुकी हैं। ये वही नगर सरकार का चुनाव है जिसका फॉर्मूला तय करने के लिए बीजेपी ने तीन दिन का समय लिया। महापौर का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से होगा या अप्रत्यक्ष प्रणाली से होगा, इस फैसले को तीन बार बनाया और बदला।
बीजेपी को भारी नुकसान
बीजेपी ने बैठकें तो इतनी कर डाली मानो 11 नगर निगम नहीं पूरी 230 विधानसभा का सवाल हो। जिसकी भागदौड़ दिल्ली तक हुई और अब नतीजे सामने हैं तो वही ढाक के तीन पात। ग्यारह नगर निगम में से ग्वालियर, मुरैना, रीवा, सिंगरौली, जबलपुर, छिंदवाड़ा और कटनी बीजेपी के हाथ से निकल चुकी हैं। मालवा और बुंदेलखंड को छोड़ दें तो बाकी जगह पर बीजेपी को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। इससे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि बीजेपी को ये सारी हार उन इलाकों में उठानी पड़ी हैं जहां बीजेपी के कई दिग्गजों का दबदबा है। ये हाल सिर्फ नगर सरकार या फिर महापौर चुनाव के मामले में नहीं है। बल्कि वॉर्ड स्तर पर भी यही हाल है।
दिग्गजों के क्षेत्र के हाल
पहले बात दिग्गजों की करते हैं। पहले चरण में ग्वालियर की सीट हाथ से निकलना बीजेपी के लिए बड़ा खतरा थी। यहां नरेंद्र सिंह तोमर की पसंदीदा उम्मीदवार को टिकट दिया गया था। जिसे कांग्रेस ने मात दे दी। दूसरे चरण में तो मुरैना सीट ही हाथ से निकल गई। जो तोमर का गढ़ है। सुना है यहां जीत की खातिर तोमर कई दिनों तक डेरा भी डाले रहे। महाकौशल की जबलपुर में संघ और वीडी शर्मा की पसंद के प्रत्याशी थे जो नहीं जीत सके। कटनी का हाल और भी बुरा रहा। जो वीडी शर्मा के लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। वहां फैसला इतना गलत हुआ कि अपनी ही पार्टी की बागी के हाथों बीजेपी को शिकस्त मिली। विंध्य क्षेत्र की बात करें जहां से बीजेपी ने विधानसभा में सबसे ज्यादा सीटें हासिल की वहां कि एक सीट रीवा 22 साल बाद कांग्रेस की झोली में है और एक सीट सिंगरौली पर आप का कब्जा हो चुका है।
अपने वार्ड को नहीं बचा सके स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी
हालात कितने बुरे हैं ये इस बात से समझिए कि बीजेपी के मंत्री प्रभुराम चौधरी उस वार्ड को भी नहीं बचा सके जहां उनका घर है। बड़े शहरों में वार्डों पर जीत हासिल कर बीजेपी जीत पर इतरा सकती है। लेकिन नतीजों को छुपाना आसान नहीं है। जनपदों में भी कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया है। आप के पार्षदों ने भी मैदान मारने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। कई स्थानों पर निर्दलीय भी धमाल मचा रहे हैं। ऐसे में बीजेपी को अब कम से कम ये जरूर सोचना होगा कि उससे कहां गलती हुई।
इस चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी की कॉमन रणनीति
इस चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी की एक कॉमन रणनीति थी। महापौर को जिताने की जिम्मेदारी विधायकों को सौंपी गई थी। ये रणनीति कांग्रेस में तो कारगर नजर आई लेकिन बीजेपी में क्यों फेल हो गई। क्या वाकई सत्ताधारी दल के विधायक बीते सालों में बंद हवादार कमरों में आराम फरमाने के इतने आदी हो चुके हैं कि अब चुनाव में पांव-पांव चलना, धूप, हवा, पानी में जलना उनके बस की बात नहीं रही या कार्यकर्ताओं की नाराजगी अब नगर सरकार के चुनाव में सतह पर दिखाई देने लगी है। सिर्फ कार्यकर्ताओं की नाराजगी ही क्यों बड़े नेताओं के बीच गुटबाजी भी तो होगी जो अब बीजेपी के डिसिप्लिन को धीरे-धीरे छलनी कर रही है।
शिवराज का कॉन्फिडेंस डिगाने के लिए ये नतीजे काफी
शिवराज का कॉन्फिडेंस डिगाने के लिए ये नतीजे काफी हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस और कमलनाथ नए विश्वास के साथ जनता के बीच पहुंचेंगे। इन सबके बीच आप की दस्तक, वो भी विंध्य क्षेत्र से अनदेखी नहीं की जा सकती। निर्दलीय के वारे न्यारे होना भी इस बात का संकेत है कि जनता किसी भी भरोसेमंद विकल्प को चुनने को तैयार है। भले ही वो निर्दलीय या नोटा ही क्यों न हो।
BJP सरकार के लिए आंकलन की घड़ी, नगर सरकार के नतीजों ने दिखाया आइना
मध्यप्रदेश की बीजेपी सरकार के लिए ये आंकलन की घड़ी है। सत्ता का ओवरकॉन्फिडेंस कहें, चुनाव मैनेजमेंट पर जरूरत से ज्यादा भरोसा कहें या फिर सिस्टम पर कमजोर होती पकड़ कहें। वजह जो भी हो बीजेपी ने बुरी तरह मात खाई है। नंबर्स भले ही बीजेपी के ज्यादा रहे हों लेकिन सच्चाई ये है कि बीजेपी के सिर पर तनी सत्ता की कनात में अब छेद होना शुरू हो चुके हैं। जिन पर सिर्फ चुनावी रणनीति या कार्यकर्ताओं के नाम का पैबंद लगाकर जीत हासिल करना मुश्किल होगा। नगर सरकार के नतीजे बीजेपी को आइना दिखा रहे हैं। इस अक्स को नजरअंदाज किया तो शायद 2023 में इस आइने में बीजेपी और बदशक्ल नजर आएगी।